HINDI CLASS 10TH QUESTION PAPER 2018 (ICSE)

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HINDI

SECTION – A

प्रश्न 1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :

(i) ‘परोपकार की भावना लोक-कल्याण से पूर्ण होती है।’ हमें भी परोपकार से भरा जीवन ही जीना चाहिए। विषय को स्पष्ट करते हुए अपने विचार लिखिए।

(ii) “आजकल देश में आवासीय विद्यालयों (Boarding Schools) की बाढ़ सी आ गई है। आवासीय विद्यालयों की छात्रों के जीवन में क्या उपयोगिता हो सकती है ?” – इस प्रकार के विद्यालयों की अच्छाइयों एवं बुराइयों के बारे में बताते हुए वर्तमान में इनकी आवश्यकता पर अपने विचार लिखिए।

(iii) संयुक्त परिवार के किसी ऐसे उत्सव के आनंद का विस्तार से वर्णन कीजिए, जहाँ आपके परिवार के बच्चे-बुजुर्ग सभी उपस्थित थे।

(iv) एक ऐसी मौलिक कहानी लिखिए जिसके अंत में यह वाक्य लिखा गया हो-‘अंततः मैं अपनी – योजना में सफल हो सका/हो सकी।’

(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र में होना चाहिए।

ICSE Hindi Question Paper 2018 Solved for Class 10 1

उत्तर :

(i) ‘परोपकार की भावना लोक-कल्याण से पूर्ण होती है। हमें भी परोपकार भरा जीवन ही जीना चाहिए। विषय को स्पष्ट करते हुए अपने विचार लिखिए। परोपकार अथवा परमार्थ या लोक कल्याण की भावना हमारी संस्कृति का अटूट अंग है। हमारे देश के अतीत को देखा जाए तो असंख्य ऐसे परोपकारी महापुरुष मिल जाएँगे जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पित करके परोपकार को महत्त्व दिया। परोपकार और परहित दो-दो शब्दों से मिलकर बने हैं – पर + उपकार, पर + हित । इन दोनों का आशय हैदूसरों का उपकार या हित करना। प्राचीन काल से ही मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ कार्य कर रही हैंस्वार्थ की तथा परमार्थ की। परमार्थ की भावना से किया गया कार्य ही परोपकार के अंतर्गत आता है।

जब व्यक्ति ‘स्व’ की परिधि से निकलकर ‘पर’ की परिधि में प्रवेश करता है, तो उसके इस कृत्य को परोपकार कहा जाता है। संस्कृत में कहा गया है कि फल आने पर वृक्षों की डालियाँ झुक जाती हैं, जिसका आशय है कि फल आने पर वृक्ष अपने फल संसार की सेवा के लिए अर्पित कर देते हैं। प्रकृति का कण-कण परोपकार में लगा हुआ है। नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते, सूर्य स्वयं तपकर दूसरों को प्रकाश तथा ऊष्मा देता है। रहीम ने ठीक ही कहा है

‘वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर

परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर।’

महापुरुषों का जीवन परोपकार के लिए होता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवान भी पृथ्वीवासियों का कल्याण करने के लिए धरती पर अवतीर्ण होते हैं । कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है- ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।’ महर्षि दधीचि ने स्वेच्छा से अपनी अस्थियाँ असुरों के विनाश के लिए दे दी। आधुनिक युग में ईसा मसीह ने मानव मात्र के कल्याण के लिए सूली पर चढ़ना स्वीकार कर लिया। महात्मा गांधी ने अपना सारा जीवन परोपकार में लगा दिया।

मदर टेरेसा ने परोपकार को ही अपना जीवन-लक्ष्य बना लिया। पशु केवल अपने लिए जीता है, पर मनुष्य दूसरों के लिए भी जीता है, इसलिए वह पशु से भिन्न है। यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही चरे, मनुष्य है वहीं कि जो मनुष्य के लिए मरे।’ संसार के सभी विचारकों ने मानवता की सेवा को मनुष्य का परम धर्म स्वीकार किया है। आज का मानव स्वार्थ की भावना से युक्त है। वह पशु-तुल्य जीवन व्यतीत कर रहा है। वह येन-केन प्रकारेण अधिकाधिक धन कमाकर अधिक-से-अधिक सुख एवं ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहता है।

अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने में भी पीछे नहीं हटता। स्वार्थ की इसी प्रवृत्ति के कारण आज चारों ओर ईर्ष्या, वैमनस्य, कटुता, अशांति आदि का बोलबाला हो गया है। हमारा कर्तव्य है कि हम परोपकारी बनें तथा दूसरों को भी सुखी बनाने की चेष्टा करें। हमें भारतीय संस्कृति के इस आदर्श को ध्यान में रखना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि हमारे पूर्वजों ने परोपकार के लिए अपना तन, मन, धन न्योछावर करने की परिपाटी निभाने में कभी कोई कसर नहीं उठा रखी थी।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :

(i) आप अपने विद्यालय के सफाई अभियान दल’ के नेता हैं। एक योजना के अंतर्गत आप छात्रों के एक दल को किसी इलाके में सफाई के प्रति जागरूक करने हेतु ले जाना चाहते हैं। अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य प्रधानाचार्या जी को इसके लिए स्वीकृति हेतु पत्र लिखिए।

(ii) पिछले महीने कुछ प्रयासों द्वारा आपके विद्यालय के छात्रों ने कुछ धनराशि एकत्रित करके मूक-बधिर (deaf and dumb) विद्यालय के विद्यार्थियों की सहायता की थी। इसका वर्णन करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए और बताइए कि हमें समाज के विकलांग लोगों के प्रति कैसा व्यवहार रखना चाहिए व उनकी सहायता के लिए किस प्रकार के प्रयास करने चाहिए।

उत्तर :

(i) सेवा में

प्रधानाचार्य महोदय,

……. उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,

……. नगर।

मान्य महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं कक्षा दसवीं ‘अ’ का छात्र हूँ और विद्यालय के ‘सफाई अभियान दल’ का नेता हूँ। गत सप्ताह नगर के स्वच्छता स्वयं सेवक संघ के सचिव ने हमारे समक्ष प्रस्ताव रखकर तीर्थाटन बस्ती में सफाई अभियान चलाने की प्रेरणा दी। वे हमारे सेवा दल को प्रोत्साहित करने के लिए अपना तीस सदस्यों का दल तथा अल्पाहार की सामग्री भेजेंगे।

मेरी आपसे प्रार्थना है कि हमारे विद्यालय के ‘सफाई अभियान दल’ के एक सौ छात्रों को इस अभियान में शामिल होने की अनुमति प्रदान की जाए। अति धन्यवादी होऊँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,

क.ख. ग.

कक्षा दसवीं ‘अ’

दिनांक – 6 जुलाई, 20…..

(ii) परीक्षा भवन

………… नगर।

20 जनवरी, 20….।

प्रिय मित्र सुकेत,

नमस्कार।

मैं यह पत्र एक विशेष उद्देश्य से लिख रहा हूँ। गत मास हमारे विद्यालय के कुछ छात्रों ने विशेष प्रयास करके चंदे के रूप में तेरह हज़ार रुपए की धनराशि एकत्र की थी। स्वयं सेवक छात्रों के इस प्रयास को प्रधानाचार्य महोदय ने विशेष रूप में पसंद किया और इसे जनहित कार्य में लगाने की प्रेरणा दी। जब हमारी समिति के सदस्यों की बैठक हुई तो सभी ने एकमत होकर नगर के मूक-बधिर विद्यालय के विद्यार्थियों की सहायता में उक्त धनराशि लगाने का निर्णय लिया। सात सदस्यों का एक दल गठित किया गया जो हमारे सामाजिक विज्ञान के अध्यापक के साथ जाकर उक्त धनराशि को सुपात्र विकलांग विद्यार्थियों में बाँटेगा।

मित्र, मुझे मूक-बधिर विद्यालय में जाकर ऐसा अनुभव हुआ कि हम समर्थ व स्वस्थ लोगों को उस समाज की अवश्य सहायता करनी चाहिए जो शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग है। अब हमने निर्णय लिया है कि अपनी-अपनी कक्षा में एक दान-पात्र रखा जाएगा जिस में एकत्र राशि ऐसे ही लोगों पर खर्च होगी। मेरा प्रस्ताव है कि आपको भी अपने नगर में ऐसा प्रयास करना चाहिए।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,

क. ख. ग.

प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए :

सूर्य अस्त हो रहा था। पक्षी चहचहाते हुए अपने नीड़ की ओर जा रहे थे। गाँव की कुछ स्त्रियाँ अपने घड़े लेकर कुएँ पर जा पहुँची। पानी भरकर कुछ स्त्रियाँ तो अपने घरों को लौट गई, परंतु चार स्त्रियाँ कुएँ की पक्की जगत पर ही बैठकर आपस में बातचीत करने लगीं। तरह-तरह की बातचीत करते-करते बात बेटों पर जा पहुँची। उनमें से एक की उम्र सबसे बड़ी लग रही थी। वह कहने लगी-“भगवान सबको मेरे जैसा ही बेटा दे। वह लाखों में एक है। उसका कंठ बहुत मधुर है। उसके गीत को सुनकर कोयल और मैना भी चुप हो जाती है। सच में मेरा बेटा तो अनमोल हीरा है।”

उसकी बात सुनकर दूसरी अपने बेटे की प्रशंसा करते हुए बोली-“बहन मैं तो समझती हूँ कि मेरे बेटे की बराबरी कोई नहीं कर सकता। वह बहुत ही शक्तिशाली और बहादुर है। वह बड़े-बड़े पहलवानों को भी पछाड़ देता है। वह आधुनिक युग का भीम है। मैं तो भगवान से कहती हूँ कि वह मेरे जैसा बेटा सबको दे।” दोनों स्त्रियों की बात सुनकर तीसरी भला क्यों चुप रहती ? वह भी अपने को रोक न सकी। वह बोल उठी”मेरा बेटा साक्षात् बृहस्पति का अवतार है। वह जो कुछ पढ़ता है, एकदम याद कर लेता है। ऐसा लगता है बहन, मानों उसके कंठ में सरस्वती का वास हो।”

तीनों की बात सुनकर चौथी स्त्री चुपचाप बैठी रही। उसका भी एक बेटा था। परंतु उसने अपने बेटे के बारे में कुछ नहीं कहा। जब पहली स्त्री ने उसे टोकते हुए पूछा कि उसके बेटे में क्या गुण है, तब चौथी स्त्री ने सहज भाव से कहा”मेरा बेटा ना गंधर्व-सा गायक है, न भीम-सा बलवान और न ही बृहस्पति-सा बुद्धिमान।” यह कह कर वह शांत बैठ गई। कुछ देर बाद जब वे घड़े सिर पर रखकर लौटने लगीं, तभी किसी के गीत का मधुर स्वर सुनाई पड़ा, गीत सुनकर सभी स्त्रियाँ ठिठक गईं। पहली स्त्री शीघ्र ही बोल उठी-“मेरा हीरा गा रहा है। तुम लोगों ने सुना, उसका कंठ कितना मधुर है।” तीनों स्त्रियाँ बड़े ध्यान से उसे देखने लगी। वह गीत गाता हुआ उसी रास्ते से निकल गया।

उसने अपनी माँ की तरफ ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद दूसरी का बेटा दिखाई दिया। दूसरी स्त्री ने बड़े गर्व से कहा, “देखो मेरा बलवान बेटा आ रहा है। वह बातें कर ही रही थी कि उसका बेटा भी उसकी ओर ध्यान दिए बगैर निकल गया।” तभी तीसरी स्त्री का बेटा उधर से संस्कृत के श्लोकों का पाठ करता हुआ निकला। तीसरी ने बड़े गद्गद् स्वर में कहा “देखो, मेरे बेटे के कंठ में सरस्वती का वास है। वह भी माँ की ओर देखे बिना आगे बढ़ गया। वह अभी थोड़ी दूर गया होगा कि चौथी स्त्री का बेटा भी अचानक उधर से आ निकला।

वह देखने में बहुत सीधा-सादा और सरल प्रकृति का लग रहा था। उसे देखकर चौथी स्त्री ने कहा, “बहन, यही मेरा बेटा है।” तभी उसका बेटा पास आ पहुँचा। अपनी माँ को देखकर रुक गया और बोला, “माँ लाओ मैं तुम्हारा घड़ा पहुँचा दूँ। माँ ने मना किया, फिर भी उसने माँ के सिर से पानी का घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। तीनों स्त्रियाँ बड़े ही आश्चर्य से देखती रहीं। एक वृद्ध महिला बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थी। वह उनके पास आकर बोली, “देखती क्या हो? यही सच्चा हीरा है।”

(i) पहली तथा दूसरी स्त्री ने अपने-अपने बेटे के विषय में क्या कहा? 

(ii) तीसरी स्त्री ने अपने बेटे को ‘बृहस्पति का अवतार’ क्यों कहा? 

(iii) पहली स्त्री द्वारा पूछे जाने पर चौथी स्त्री ने क्या कहा? 

(iv) चौथी स्त्री के बेटे ने अपनी माँ के साथ कैसा व्यवहार किया, यह देखकर तीनों स्त्रियों को कैसा लगा? 

(v) बच्चों को अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ? समझाइए। 

उत्तर :

(i) पहली स्त्री ने अपने बेटे की प्रशंसा करते हुए उसे मधुर गायक बताया। दूसरी स्त्री ने अपने पुत्र को शक्तिशाली योद्धा बताया जो बड़े-बड़े पहलवानों को हरा देता है।

(ii) तीसरी स्त्री ने अपने पुत्र को बृहस्पति का अवतार बताया क्योंकि उसे पढ़ते ही सब कुछ कंठस्थ हो जाता था। जैसे उसके गले में सरस्वती का निवास हो।

(iii) पहली स्त्री द्वारा पूछे जाने पर चौथी स्त्री ने कहा कि उसके बेटे में उक्त तीनों स्त्रियों के पुत्रों जैसा कोई भी गुण नहीं है।

(iv) चौथी स्त्री के बेटे ने अपनी माँ का सिर पर धरा पानी का घड़ा ले लिया ताकि उसे घर पहुँचाने में सहायता कर सके। यह सहयोग व सम्मान देखकर तीनों स्त्रियों को आश्चर्य हुआ।

(v) बच्चों को अपने माता-पिता की हर संभव सहायता करनी चाहिए। छोटे से छोटे काम में दिया गया सहयोग माता-पिता को प्रसन्न करता है। यह ऐसी भक्ति है जिसका फल सदैव अनुकूल तथा सकारात्मक होगा।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए :

(i) निम्नलिखित शब्दों में से दो शब्दों के विलोम लिखिए : कीर्ति, निर्मल, विजय, निर्दोष ।

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए : धनवान, किनारा, दूध।

(ii) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए : अपेक्षा, गुण।

(iv) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए : प्रदर्षनी, लच्छमी, अपरीचीत।

(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए : आसमान से बातें करना, उड़ती चिड़िया पहचानना।

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :

(a) मोहन और रमेश सच्चे मित्र थे। ‘ (‘मित्रता’ शब्द का प्रयोग कीजिए।)

(b) मुझसे कोई भी बात कहने में संकोच न करें। (रेखांकित के लिए एक शब्द का प्रयोग करते हुए वाक्य को पुनः लिखिए।)

(c) शिक्षक ने अपने शिष्य को आदेश दिया। (वचन बदलिए।)

उत्तर :

(i) कीर्ति – अपकीर्ति

निर्मल – मैला

विजय – पराजय

निर्दोष – दोषपूर्ण

(ii) धनवान – धनी, धनपति

किनारा – कूल, तट

दूध – पय, क्षीर

(iii) अपेक्षा – अपेक्षित

गुण – गुणी/गुणज्ञ

(iv) प्रदर्शिनी, लक्ष्मी, अपरिचित

(v) आसमान से बातें करना- महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक आसमान से बातें करता था। उड़ती चिड़िया पहचानना – सुधीर इतना कुशाग्रबुद्धि है कि उड़ती चिड़िया को पहचान लेता है।

(vi) (a) मोहन और रमेश में सच्ची मित्रता थी।

(b) मुझसे कोई भी बात निस्संकोच करें।

(c) शिक्षकों ने अपने शिष्यों को आदेश 

SECTION – B

साहित्य सागर – संक्षिप्त कहानियाँ

प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

आनंदी की त्यौरी चढ़ गई। झुंझलाहट के मारे बदन में ज्वाला-सी दहक उठी। बोली, “जिसने तुमसे यह आग लगाई है, उसे पाऊँ तो मुँह झुलस दूं।”

                                                                           [‘बड़े घर की बेटी’ – प्रेमचंद] 

(i) आनंदी की त्यौरी क्यों चढ़ी हुई थी ? वह किसका इंतजार कर रही थी ? 

(ii) श्रीकंठ सिंह ने आनंदी से क्या जानना चाहा ? 

(iii) इससे पहले लालबिहारी और बेनीमाधव सिंह श्रीकंठ सिंह से क्या कह चुके थे ? 

(iv) आनंदी से घटना का हाल जानकर श्रीकंठ सिंह को कैसा लगा? उन्होंने अपने पिता से क्या कहा? 

उत्तर :

(i) आनंदी का अपने देवर लालबिहारी के साथ विवाद हो गया था। इसी कारण उसकी त्यौरी चढ़ी हुई थी। वह अपने पति श्रीकंठ सिंह का इंतजार कर रही थी।

(ii) श्रीकंठ सिंह ने अपनी पत्नी आनंदी से जानना चाहा था कि घर में मचे उपद्रव का वास्तविक कारण क्या था ?

(iii) इससे पहले बेनीमाधव सिंह ने लालबिहारी की ओर से साक्षी देते हुए कहा कि बहू-बेटियों का यह स्वभाव अच्छा नहीं कि वे पुरुषों के मुँह लगें। लालबिहारी का तर्क था कि आनंदी अपने मायके का रौब झाड़ती रहती है।

(iv) आनंदी से घटना की जानकारी लेकर श्रीकंठ सिंह को बहुत बुरा लगा और वह अलग घर बसाने का निर्णय लेकर अपने पिता से कहने लगा कि उसका इस संयुक्त परिवार में निर्वाह नहीं होगा।

प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“रात को बड़े जोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरियट के लॉन में जामुन का पेड़ गिरा। सुबह को जब माली ने देखा, तो उसे पता चला कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।”

                                                             [“जामुन का पेड़’ – कृष्ण चंदर] 

(i) माली ने यह देखकर क्या किया और क्यों ? 

(ii) पहले दूसरे और तीसरे क्लर्क ने क्या कहा ? क्या तीसरे क्लर्क को उस दबे हुए आदमी से सहानुभूति थी? 

(iii) माली ने क्या सुझाव दिया ? मोटे चपरासी की बात सुनकर माली क्या बोला ? 

(iv) कहानी के अंत में क्या हुआ था ? देर से मिलने वाला न्याय महत्त्वहीन होता है कैसे? 

उत्तर :

(i) माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी को देखा तो वह दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी क्लर्क के पास और क्लर्क सुपरिटेंडेंट के पास गया।

(ii) पहले क्लर्क ने जामुन के फलदार पेड़ की प्रशंसा की, दूसरे ने उसकी रसीली जामुनों की प्रशंसा की तो तीसरे ने कहा कि फलों के मौसम में वह जामुनें ले जाता था जिन्हें उसके बच्चे चाव से खाते थे।

(iii) माली ने सुझाव दिया कि पेड़ को हटाकर उसके नीचे दबे व्यक्ति को जल्दी से निकाल लेना चाहिए। यह सुनकर एक सुस्त कामचोर और मोटा चपरासी बोला कि पेड़ का तना बहुत मोटा और वज़नी है।

(iv) कहानी के अंत में कागजी कार्यवाही पूरी होते ही कवि के जीवन की फाइल भी पूर्ण हो जाती है। – इससे सिद्ध होता है कि व्यवस्था की प्रक्रिया मानववादी न होकर कठोर व मानवविरोधी सिद्ध होती है। व्यावहारिक उपचार न किए जाने से प्रक्रिया की प्रविधि ने एक मानव का अंत कर डाला।

प्रश्न 7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“पर, ‘सब दिन होत न एक समान’ अकस्मात् दिन फिरे और सेठ को गरीबी का मुँह देखना पड़ा। संगीसाथियों ने भी मुँह फेर लिया और नौबत यहाँ तक आ गई कि सेठ व सेठानी भूखे मरने लगे।”

                                                                          [महायज्ञ का पुरस्कार – यशपाल]

(i) अकस्मात् बुरा समय किसका आ गया था तथा बुरा समय आने से पहले उसकी दशा कैसी थी? 

(ii) अपना बुरा समय दूर करने के लिए सेठ ने क्या उपाय सोचा ? इस उपाय के लिए उन्हें किसके पास जाना पड़ा? 

(iii) सेठ के मार्ग में कौन-सा महायज्ञ किया था। क्या वह वास्तव में महायज्ञ था। समझाकर लिखिए। 

(iv) कहानी का उद्देश्य लिखिए। 

उत्तर:

(i) धनी सेठ का बुरा समय आ गया था। इससे पहले उसकी दशा अति विनम्र, उदार और धर्मपरायण दानी सेठ की थी। उसके द्वार से कोई खाली न जाता था। वह यज्ञ करवाया करता था।

(ii) अपनी बुरी दशा दूर करने के लिए सेठ ने एक यज्ञ बेचने का उपाय सोचा। उसने कुंदनपुर की सेठानी के पास जाकर एक यज्ञ बेचने का निर्णय किया।

(iii) सेठ ने मार्ग में एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दी और स्वयं केवल जल से संतोष किया। कुत्ता रोटी की शक्ति पाकर समर्थ व स्वस्थ हो उठा। यही सेठ का महायज्ञ था क्योंकि इसमें सच्ची सेवा-भावना थी न कि अपने धनी होने का घमंड।

(iv) प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य दान और परोपकार के सच्चे स्वरूप से परिचित कराना है। यज्ञ कमाने की इच्छा से व धन-दौलत लुटाकर किए गए दान-यज्ञ आदि से पुण्य की प्राप्ति नहीं होती। निःस्वार्थ भाव से, अभिमान और अहं त्यागकर किया गया दान या यज्ञ ही वास्तव में सच्चा महायज्ञ है।

साहित्य सागर – पद्य भाग

प्रश्न 8. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग। गहरि, नदी, नारी जहाँ, वहाँ बचावै अंग।। वहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे। दुश्मन दावागीर, होयँ तिनहूँ को झारै।। कह ‘गिरिधर कविराय’ सुनो हो धूर के बाठी।। सब हथियार के छाँड़ि, हाथ महँ लीजै लाठी।।”

                                                                       [कुंडलियाँ – गिरिधर कविराय]

(i) इस कुंडली में किसकी उपयोगिता बताई गई है ? कवि ने किस समय मनुष्य को लाठी रखने का परामर्श दिया है? 

(ii) लाठी हमारे शरीर की सुरक्षा किस प्रकार करती है 

(iii) लाठी किन तीनों से निपटने में सहायक होती है और किस प्रकार? 

(iv) कवि सब हथियार छोड़कर लाठी लेने की बात क्यों कर रहे हैं? अपने विचार व्यक्त करते हुए कुंडलियाँ लेखन का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) प्रस्तुत कुंडली में कवि ने लाठी के गुणों तथा उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। कवि ने गहरी नदी, नाला आदि से सामना होने पर लाठी की उपयोगिता का वर्णन किया है। लाल

(ii) यदि कुत्ते या शत्रु से कभी भी सामना हो जाए और उस समय हमारे पास लाठी हो, तो किसी भी प्रकार की शारीरिक हानि नहीं हो सकती।

(iii) लाठी कुत्ते, दुश्मन और नदी नाले से निपटने में सहायक होती है। कुत्ते और दुश्मन को लाठी से भगाया जा सकता है। नदी-नाले की गहराई नापकर लाठी द्वारा उन्हें पार किया जा सकता है।

(iv) कवि लाठी को सब हथियारों से ऊपर मानते हैं। लाठी से गहरी नदी-नाले का सामना किया जा सकता है। इससे कुत्ते और दुश्मन को डरा या धमकाकर भगा सकते हैं। अतः यह हथियार सहज व कारगर सिद्ध होता है।

प्रश्न 9. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए। ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा। अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम, तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।”

                                               [भिक्षुक – सूर्यकान्त त्रिपाठी – “निराला’]

(i) पहली दो पंक्तियों में कवि ने क्या दृश्य प्रस्तुत किया है ? 

(ii) इस भावुक दृश्य से हमारे हृदय में क्या भाव उत्पन्न होते हैं ? 

(iii) क्या भिक्षुकों की मदद करना मानवीय धर्म नहीं है ? यहाँ अभिमन्यु का उदाहरण कवि ने क्यों दिया 

(iv) प्रस्तुत कविता का केंद्रीय भाव लिखिए। 

उत्तर:

(i) कवि ने प्रथम दो पंक्तियों में सड़क पर जूठी पत्तल चाट रहे लोगों तथा उनसे वे पत्तलें छीन लेने के प्रयास में सक्रिय कुत्तों का वर्णन किया है।

(ii) इन भावुक दृश्य से हमारे हृदय में करुणा व संवेदना के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके मूल में सामाजिक विषमता का वर्णन हुआ है।

(iii) भिक्षुकों की सहायता करना मानवीय धर्म हो सकता है यदि उन्हें सकारात्मक रोज़गार की ओर प्रेरित किया जाए। कवि ने भिक्षुक को प्रेरणा देते हुए अभिमन्यु की भाँति अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा की है।

(iv) प्रस्तुत कविता में कवि ने भिक्षुक की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए सामाजिक वर्ग-भेद की ओर संकेत किया है। कवि उस व्यवस्था को कोस रहे हैं जिसमें किसी भी सामाजिक को भीख माँगने जैसा घृणित व अपमानजनक कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 10. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“मैं पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता ही रहा प्रत्येक पग पर कुछ-न-कुछ रोड़ा अटकता ही रहा पर हो निराशा क्यों मुझे ? जीवन इसी का नाम है। चलना हमारा काम है।”

                                                             [चलना हमारा काम है – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’]

(i) कवि ने मनुष्य के जीवन के बारे में क्या कहा है तथा क्यों ? 

(ii) कवि के अनुसार जीवन का महत्त्व किसमें है ? स्पष्ट कीजिए। 

(iii) जीवन में सुख-दुख और आशा-निराशा के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए ? अपने दुखों और निराशा के लिए हमें किसको दोष देना उचित नहीं है तथा क्यों ? समझाकर लिखिए। 

(iv) प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने पाठकों को क्या संदेश दिया है ? 

उत्तर :

(i) कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने जीवन को अपूर्ण कहा है। जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। कभी कुछ मिल जाता है तो कभी कुछ खो जाता है। आशा-निराशा निरंतर सक्रिय रहती है। ऐसा जीवन पूर्ण नहीं कहा जा सकता।

(ii) कवि के अनुसार जीवन का महत्त्व पथ में आने वाली बाधाओं के बावजूद निरंतर अग्रसर होने में है। बाधाओं से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि इन बाधाओं को पार करना ही तो जीवन है।

(iii) कवि के अनुसार आशा-निराशा एवं सुख-दुख जीवन के अनिवार्य अंग है। अपने दुखों और निराशा के लिए विधाता को दोष देना उचित नहीं है क्योंकि दृढ़ता से अविचल भाव से पथ की बाधाओं या कठिनाइयों को दूर करना ही जीवन है।

(iv) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का मानना है कि जीवन के पथ पर अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आया करती हैं। अनेक साथी हमें बीच मार्ग छोड़कर चले जाते हैं। इन बातों से निराश नहीं होना चाहिए। जो राही अपने पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहेगा, उसी को सफलता प्राप्त होगी।

नया रास्ता – (सुषमा अग्रवाल)

प्रश्न 11. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

अमित मेज पर बैठा खाना खाने लगा। माँ भी उसके पास बैठ गईं। बैठे-बैठे वह न जाने किन विचारों में खो गईं और एकटक अमित की ओर ही देखती रहीं।

(i) माँ अमित की तरफ देखते हुए क्या सोच रही थी ? 

(ii) दीपक कौन है ? उन्हें किस बात का कार्ड मिला ? 

(iii) मधु के बारे में माँ ने अमित से क्या कहा ? 

(iv) माँ को घर में बहू की कमी क्यों अखरती थी ? 

उत्तर:

(i) अमित की माँ सोच रही थी कि दीपक अमित से दो वर्ष छोटा है। उसका विवाह हो रहा है। परंतु अमित उससे बड़ा होते हुए भी अभी तक शादी नहीं कर पाया था।

(ii) दीपक मधु का ममेरा भाई है। उन्हें उसकी शादी का कार्ड मिला है। शनिवार के दिन शादी और रविवार को प्रीतिभोज है।

(ii) माँ अमित से कहती है कि मधु भी अब विवाह के योग्य हो गई है। वह उसकी शादी तो करना चाहती है परंतु साथ ही यह चाहती है कि अमित की शादी पहले हो जाए क्योंकि वह मधु से सात वर्ष बड़ा है।

(iv) माँ का विचार था कि मधु के विवाह के सारे काम वह अकेले नहीं कर सकती। यदि घर में बहू हो तो काम सरल व सहज ढंग से हो जाएँगे।

प्रश्न 12. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :”दूसरे ही क्षण मीनू उसके सामने आ गई और खुशी से उसके हाथ चूम लिये। अरे मीनू, आज तो बहुत प्रसन्न दिखाई दे रही हो। क्या बात है ? नीलिमा ने पूछा”

(i) मीनू कौन है ? उसकी प्रसन्नता का कारण क्या है ? 

(ii) ‘उसके’ सर्वनाम का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(iii) मीनू के चेहरे पर किस बात को सोचकर उदासी छा जाती है ? मीनू की उदासी कब और किस प्रकार दूर होती है ? समझाकर लिखिए। 

(iv) प्रस्तुत उपन्यास का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) मीनू और नीलिमा दोनों सहेलियाँ हैं। मीनू दयाराम की बड़ी पुत्री है। वह रोहित तथा आशा की बड़ी बहन है। उसकी प्रसन्नता का कारण यह है कि उसका फोटो मेरठ वालों ने पसंद कर लिया है।

(ii) ‘उसके’ सर्वनाम का प्रयोग नीलिमा के लिए किया गया है। वह मीनू की सखी है और उससे कहीं अधिक सुंदर है।

(iii) मीनू के चेहरे पर उदासी छा जाती है क्योंकि उसको कई लड़कों ने विवाह के प्रसंग में देखा था परंतु किसी ने भी उसे पसंद नहीं किया था क्योंकि वह अधिक सुंदर नहीं है। मीनू की उदासी दूर हो जाती है जब उसे पता चलता है कि वह प्रथम श्रेणी में और नीलिमा द्वितीय श्रेणी में पास हुई है।

(iv) प्रस्तुत उपन्यास में दिखाया गया है कि समाज में सफलता के लिए साहस की आवश्यकता है। आज समय आ चुका है कि सभी युवतियाँ साहस व धैर्य से काम लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करें और दहेज की महामारी का उन्मूलन करें ताकि किसी को आत्म हत्या न करनी पड़े।

प्रश्न 13. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“परंतु तुम ये तो सोचो कि आजकल शादी के बाद ही दावत दी जाती है। यदि हम प्रीतिभोज नहीं देंगे तो दुनिया वाले क्या कहेंगे और फिर बड़े घर की लकड़ी आ रही है। दावत नहीं देंगे तो सब लोग बात बनाएंगे।”

(i) उपर्युक्त कथन किसने, किस अवसर पर कहा था ? 

(ii) ‘बड़े घर की लड़की’ किसको कहा गया है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(iii) उपर्युक्त कथन के विषय में अमित के क्या विचार हैं ? वह इस शादी से सहमत क्यों नहीं है ? धनीमल जी ने शादी के प्रस्ताव के साथ क्या लालच दिया था ? 

(iv) आजकल के मध्यमवर्गीय परिवारों में विवाह आदि रीति-रिवाज़ों के अवसर पर होने वाले फिजूलखर्चे पर अपने विचार लिखिए। 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन अमित के पिता मायाराम ने अपनी पत्नी से कहा था। यह कथन अमित के विवाह की तैयारियों के प्रसंग में कहा गया है।

(ii) ‘बड़े घर की लड़की’ सरिता को कहा गया है। वह अमित की मंगेतर है और धनीमल की पुत्री है। धनी पिता की पुत्री होने के कारण उसकी घर के काम-काज में कोई विशेष रुचि नहीं है। उसका विचार है कि वह शादी के बाद उसके पिता उसके साथ एक नौकर भेज देंगे, जो घर का काम करेगा।

(iii) अमित के विचार शादी के संदर्भ में दिखावे का विरोध करते हैं। उपर्युक्त वार्तालाप सुनकर उसके हृदय में तूफ़ान आ जाता है। वह सरिता के पिता की ललचाने वाली प्रवृत्ति से भी नाराज़ है क्योंकि वह अलग फ़्लैट देकर सरिता को सास-ससुर से अलग रखने का षड्यंत्र करना चाहता है।

(iv) मेरे विचार में विवाह के अवसर पर हर प्रकार की फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए। रीति-रिवाज़ों व परंपराओं के नाम पर ठगे जाना बुद्धिमानी नहीं है। विवाहों पर किए गए खर्च व लिए गए अपार ऋण बाद के जीवन को नरक बना देते हैं। सादा विवाह वर व वधू दोनों के लिए उचित है। दहेज का कलंक तो जड़ समेंत उखाड़ना होगा, तभी स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा।

एकांकी संचय

(Ekanki Sanchay)

प्रश्न 14. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“काश कि मैं निर्मम हो सकती, काश कि मैं संस्कारों की दासता से मुक्त हो सकती ! हो पाती तो कुल, धर्म और जाति का भूत मुझे संग न करता और मैं अपने बेटे से न बिछुड़ती।”

                                                                            [संस्कार और भावना – विष्णु प्रभाकर]

(i) वक्ता कौन है ? यह वाक्य वह किसे कह रही है ? 

(ii) ‘संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’ यह कथन एकांकी में किसका है ? उसने ऐसा क्यों कहा ? 

(iii) संस्कारों की दासता के कारण वक्ता को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? 

(iv) प्रस्तुत एकांकी द्वारा एकांकीकार ने क्या संदेश दिया है ? 

उत्तर :

(i) वक्ता ‘संस्कार और भावना’ शीर्षक एकांकी की पात्र माँ है। वह उक्त वाक्य अपने छोटे पुत्र अतुल की पत्नी उमा से कह रही है।

(ii) ‘संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’-यह वाक्य माँ के सबसे बड़े बेटे ने कहा था जिसे इस समय माँ स्मरण कर रही है। उसने ऐसा इसलिए कहा था कि उसकी माँ अपनी बड़ी बहू के विषय में अच्छा नहीं सोचती थी।

(iii) संस्कारों की दासता के कारण माँ अपने बड़े पुत्र अविनाश तथा उसकी पत्नी से बिछुड़ जाती है। उसे इस बात का गहरा दुख था कि अविनाश ने एक विजातीय बंगाली लड़की से विवाह किया था।

(iv) प्रस्तुत एकांकी द्वारा लेखक ने बताना चाहा है कि जाति, धर्म, क्षेत्रीयता आदि मानव विरोधी नहीं हो सकते हम संस्कारों के नाम पर अपनी संतान से दूर नहीं हो सकते।

प्रश्न 15. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“जानता हूँ युधिष्ठिर ! भली भाँति जानता हूँ। किन्तु सोच लो, मैं थककर चूर हो गया हूँ, मेरी सभी सेना तितर-बितर हो गई है, मेरा कवच फट गया है, मेरे शास्त्रास्त्र चुक गए हैं। मुझे समय दो युधिष्ठिर! क्या भूल गए मैंने तुम्हें तेरह वर्ष का समय दिया था ?”

                                                                        [महाभारत की एक साँझ – भारत भूषण अग्रवाल]

(i) वक्ता कौन है ? वह क्या जानता था ? 

(ii) वक्ता इस समय असहाय क्यों हो गया था ? क्या वह वास्तव में असहाय था ?

(iii) श्रोता कौन है ? श्रोता को तेरह वर्ष का समय कैसे दिया था ? इस कथन को आप कितना सही – मानते हैं ? 

(iv) वक्ता ने जो समय दिया था उसका उद्देश्य क्या था ? क्या वह अपने उद्देश्य में सफल हो सका? स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) प्रस्तुत संवाद का वक्ता दुर्योधन है। वह जानता था कि उसने कालाग्नि को वर्षों घी देकर उभारा है और उसकी लपटों में सभी साथी स्वाहा हो गए।

(ii) वक्ता दुर्योधन वास्तव में असहाय हो गया था क्योंकि इतने लंबे युद्ध ने उसे निराशा और अवसाद के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया था। 

(iii) श्रोता युधिष्ठिर है। उसे तेरह वर्ष का वनवास दिया गया था। दुर्योधन ने पांडवों को वनवास देकर उन्हें अपने मार्ग से हटाना चाहा था।

(iv) दुर्योधन ने जो वनवास का समय दिया था, वह पांडवों को क्षीण करने के लिए दिया था। वह सोचता था कि पांडव बिखर जाएँगे और उन पर विजय पाना सरल हो जाएगा। परंतु यह उसकी भूल थी।

प्रश्न 16. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“आज कुसमय नाच-रंग की बात सुनकर मेरे मन में शंका हुई थी। इसलिये मैंने कुँवर को वहाँ जाने से रोक दिया था। संभव था कि कुँवर वहाँ जाते और बनवीर अपने सहायकों से कोई काण्ड रच देता।”

                                                                                              [दीपदान – डॉ. रामकुमार वर्मा]

(i) उपर्युक्त कथन का वक्ता कौन है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(ii) नाच-रंग का आयोजन किसने और किस उद्देश्य से किया था ? 

(iii) बनवीर कौन है ? उसका परिचय देते हुए उसका चरित्र-चित्रण कीजिए। 

(iv) ‘दीपदान’ एकांकी के शीर्षक की सार्थकता बताइए तथा एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने क्या शिक्षा दी है ? 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन की वक्ता पन्ना है। वह कुँवर उदय सिंह का संरक्षण करने वाली धाय है। वह चंदन की माँ भी है जिसकी आयु अभी 30 वर्ष है।

(ii) नाच-रंग का आयोजन बनवीर ने करवाया था। वह महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र था। उसकी आयु लगभग 32 वर्ष थी। उसने नाच-रंग का आयोजन करवाया था ताकि कुँवर उदय सिंह की हत्या की जा सके।

(iii) बनवीर प्रस्तुत एकांकी का खलनायक है। वह महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी से उत्पन्न पुत्र था। वह क्रूर, अत्याचारी तथा दुष्ट था। वह महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करता है और राजसिंहासन पाने के लिए उदयसिंह के प्राण लेने की योजना बनाता है।

(iv) प्रस्तुत एकांकी में डॉ० रामकुमार वर्मा ने राजपूताने की वीरांगना पन्ना धाय में अभूतपूर्व बलिदान का चित्रण किया है। इस ऐतिहासिक एकांकी द्वारा राष्ट्र-भक्ति तथा राष्ट्र-प्रेम का चित्रण किया गया है। सच्चे देशभक्त पन्ना धाय की तरह अपने पुत्र की बलि चढ़ाकर भी देश के हित की रक्षा करते हैं।

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