HINDI CLASS 10TH QUESTION PAPER 2017 (ICSE)

HINDI

SECTION – A 

प्रश्न 1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :

(i) पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं तथा हमारी सच्ची मित्र एवम् गुरु भी होती हैं। हाल ही में पढ़ी गई अपनी किसी पुस्तक के विषय में बताते हुए लिखिए कि वह आपको पसन्द क्यों आई और आपने उससे क्या सीखा?

(ii) ‘पर्यावरण है तो मानव है’ विषय को आधार बनाकर पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आप क्या-क्या प्रयास कर रहे हैं ? विस्तार से लिखिए।

(iii) कम्प्यूटर तथा मोबाइल मनोरंजन के साथ-साथ हमारी ज़रूरत का साधन अधिक बन गए हैं। हर क्षेत्र में इनसे मिलने वाले लाभों तथा हानियों का वर्णन करते हुए, अपने विचार लिखिए।

(iv) अरे मित्र ! “तुमने तो सिद्ध कर दिया कि तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो” इस पंक्ति से आरम्भ करते हुए कोई कहानी लिखिए।

(v) प्रस्तुत चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई एक कहानी अथवा घटना लिखिए जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।

ICSE Hindi Question Paper 2017 Solved for Class 10 1

उत्तर :

(i) पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं तथा पुस्तकों द्वारा ही हमारा बौद्धिक एवं मानसिक विकास संभव होता है। ज्ञान प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन होने के साथ-साथ, पुस्तकें हमें सामाजिक व्यवहार, संस्कार, कर्तव्यनिष्ठा जैसे गुणों के संवर्धन में सहायक सिद्ध होती हैं तथा प्रबुद्ध नागरिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र एवं गुरु भी होती हैं। अच्छी पुस्तकें चिंतामणि के समान होती हैं, जो हमारा मार्गदर्शन करती हैं तथा हमें असत् से सत् की ओर, तमस से ज्योति की ओर ले जाती हैं। पुस्तकें हमारा अज्ञान दूर करके हमें प्रबुदध नागरिक बनाती हैं।

जिस प्रकार संतुलित आहार हमारे शरीर को पुष्ट करता है, उसी प्रकार पुस्तकें हमारे मस्तिष्क की भूख को मिटाती हैं। समाज के परिष्कार, व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि एवं कार्यक्षमता तथा कार्यकुशलता के पोषण में भी पुस्तकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पुस्तकों के अध्ययन से हमारा एकाकीपन भी दूर होता है।

हाल में ही मैंने श्री विद्यालंकार द्वारा रचित ‘श्रीरामचरित’ नामक पुस्तक पढ़ी जो तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ पर आधारित है। हिंदी में लिखी होने के कारण इसे पढ़ना सुगम है। इस रचना में ‘श्री राम’ की कथा को अत्यंत सरल भाषा में सात सर्गों में व्यक्त किया गया है। पुस्तक मूलत : तुलसी कृत रामचरितमानस का ही हिंदी अनुवाद प्रतीत होती है। यह पुस्तक मुझे बहुत पसंद आई तथा इसीलिए मेरी प्रिय पुस्तक’ बन गई। इस पुस्तक में पात्रों का चरित्र अनुकरणीय है। पुस्तक में लक्ष्मण, भरत और राम का, सीता और राम में पति-पत्नी का, राम और हनुमान में स्वामी-सेवक का, सुग्रीव और राम में मित्र का अनूठा आदर्श चित्रित किया गया है।

यह पुस्तक लोक-जीवन, लोकाचार, लोकनीति, लोक संस्कृति, लोक धर्म तथा लोकादर्श को प्रभावशाली ढंग से रूपायित करती है। श्री राम की आज्ञाकारिता तथा समाज में निम्न मानी जाने वाली जातियों के प्रति स्नेह, उदारता आदि की भावना आज भी अनुकरणीय है। ‘गुह’, ‘केवट’ तथा ‘शबरी’ के प्रति राम की वत्सलता अद्भुत है। श्री राम का मर्यादापुरुषोत्तम रूप आज भी हमें प्रेरणा देता है। उन्होंने जिस प्रकार अनेक दानवों एवं राक्षसों का विध्वंस किया, उससे यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अन्याय का डटकर विरोध ही नहीं करना चाहिए वरन उसके समूल नाश के प्रति कृत संकल्प रहना चाहिए। सीता का चरित्र आज की नारियों को बहुत प्रेरणा दे सकता है। इस पुस्तक की एक ऐसी विशेषता भी है, जो तुलसी कृत रामचरितमानस से भिन्न है।

पुस्तक में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के चरित्र को भी उजागर किया गया है। विवाह के उपरांत लक्ष्मण अपने अग्रज राम के साथ वन को चले गए; पर उनकी नवविवाहिता पत्नी उर्मिला अकेली रह गई। तुलसीदास जैसे महाकवि की पैनी दृष्टि भी उर्मिला के त्याग, संयम, सहनशीलता तथा विरह-वेदना पर नहीं पड़ी। विद्यालंकार जी ने उर्मिला के उदात्त चरित्र को बखूबी चिंत्रित किया है। पुस्तक में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के अंत में रामराज्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख किया गया है।

‘रामराज्य’ की कल्पना हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी की थी। इस प्रकार पुस्तक में वर्णित रामराज्य आज के नेताओं एवं प्रशासन के लिए मार्गदर्शन का कार्य करता है। यद्यपि पुस्तक ‘श्रीराम’ के जीवन चरित्र पर आधारित है तथापि इसमें कहीं भी धार्मिक संकीर्णता आदि का समावेश नहीं है। यह पुस्तक सभी के लिए पठनीय तथा प्रेरणादायिनी है।

(ii) मानव और प्रकृति का संबंध अत्यंत प्राचीन है। प्रकृति ने मानव को अनेक साधन दिए, जिनसे उसका जीवन सुखद बना रहे, लेकिन मानव ने प्रकृति का शोषण करना आरंभ कर दिया तथा प्रकृति को अपनी ‘चेरी’ समझने की भूल करने लगा। वैज्ञानिक प्रगति’ को आधार बनाकर मनुष्य ने अपने पर्यावरण को ही प्रदूषित करना आरंभ कर दिया। वह यह भूल गया कि पर्यावरण है तो जीवन है। सृष्टि के आरंभ में प्रकृति में एक संतुलन बना हुआ था।

धीरे-धीरे बढ़ती जनसंख्या, नगरों की वृद्धि, वैज्ञानिक उपलब्धियों एवं औद्योगिक विकास के कारण प्रदूषण जैसी घातक समस्या का जन्म हुआ। आजकल वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं भूमि प्रदूषण के कारण स्थिति इस हद तक बिगड़ गई है कि अनेक घातक एवं असाध्य रोगों का जन्म हो रहा है तथा वातावरण अत्यंत विषाक्त हो गया है। प्रदूषण एक विश्व व्यापी समस्या है जिसका समाधान करना कठिन है, फिर भी इसकी रोकथाम के लिए समूचे विश्व में प्रयास किए जा रहे हैं; जैसे औद्योगिक इकाइयों को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर स्थापित करना, वाहनों में पेट्रोल तथा डीजल के स्थान पर ऐसी गैसों का प्रयोग करना जो प्रदूषण मुक्त हों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए ‘ट्रीटमेंट प्लांट’ लगाने तथा अपशिष्ट पदार्थों को किसी नदी में प्रवाहित न करने की बाध्यता तथा झुग्गी झोंपड़ियों को घनी आबादी से दूर बसाया जाना।

पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आजकल प्रत्येक नागरिक प्रयासरत है। मैं भी इस दिशा में प्रयासरत हूँ। मैंने अपने मित्रों के साथ मिलकर ‘मित्र मंडल’ नाम से एक टोली बनाई है जो स्थान-स्थान पर जाकर स्वच्छता अभियान चलाती है तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में जाकर उन्हें स्वच्छता रखने की प्रेरणा देती है। हमारी टोली को लोगों ने बहुत पसंद किया है तथा हमारे प्रयास से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता मिली है। कुछ समाजसेवी संस्थाओं की ओर से हमें ऐसे डस्टबिन’ निःशुल्क दिए गए हैं जिन्हें हमने अपने नगर के विभिन्न स्थानों पर रखा है, जिससे कि लोग बेकार की चीजें, कागज़ के टुकड़े, फलों के छिलके आदि इसमें डालें।

हमारा यह प्रयास बहुत सफल रहा है तथा हमारी टोली के साथ बहुत से लोग जुड़ते जा रहे हैं। हम स्थान-स्थान पर जाकर ‘नुक्कड़ नाटकों’ के द्वारा भी लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरुकता लाने का प्रयास कर रहे हैं। सप्ताह में एक दिन हमारी टोली विभिन्न क्षेत्रों में जाकर श्रमदान करके स्वच्छता अभियान चलाते हैं। हमारे प्रयास को देखकर उन क्षेत्रों के निवासी भी स्वच्छता अभियान में संलग्न हो जाते हैं। हमारी टोली द्वारा पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए एक ओर विशेष प्रयास किया है – वह है वृक्षारोपण का कार्यक्रम चलाना।

वृक्षारोपण पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सर्वोत्तम उपाय माना गया है क्योंकि वृक्ष ही हमसे अशुद्ध वायु लेकर हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं। हमने अपने आचार्यों की सहायता से नगर निगम के उद्यान विभाग की ओर से अनेक पौधे प्राप्त कर लिए हैं, जिन्हें हम अपने आचार्यों के मार्गदर्शन में ही शहर के स्थान-स्थान पर लगाते हैं तथा वहाँ के लोगों को भी वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करते हैं। हमारे इस प्रयास की बहुत सराहना की गई है।

हमने एक सतर्कता अभियान भी चलाया है जिसके अंतर्गत पहले से लगे पेड़-पौधों के संरक्षण पर बल दिया जाता है, पहले से लगे पेड़-पौधों को पानी दिया जाता है तथा उन्हें काटने से रोका जाता है। हमारी अपेक्षा है कि हमारी तरह वे भी पर्यावरण को स्वच्छ तथा प्रदूषण मुक्त बनाने में अपना योगदान दें तथा स्वेच्छा से इसी प्रकार की गतिविधियों का संचालन करें जिनसे वातावरण प्रदूषण मुक्त हो सके।

(iii) विज्ञान के आविष्कारों ने आज दुनिया ही बदल दी है तथा मानव जीवन को सुख एवं ऐश्वर्य से भर दिया है। कंप्यूटर तथा मोबाइल फ़ोन भी इनमें अत्यंत उपयोगी एवं विस्मयकारी खोज हैं। कंप्यूटर को यांत्रिक मस्तिष्क भी कहा जाता है। यह अत्यंत तीव्र गति से न्यूनतम समय में अधिक-सेअधिक गणनाएँ कर सकता है तथा वह भी बिल्कुल त्रुटि रहित। आज तो कंप्यूटर को लेपटॉप के रूप में एक छोटे से ब्रीफकेस में बंद कर दिया गया है जिसे जहाँ चाहे वहाँ आसानी से ले जाया जा सकता है।

कंप्यूटर आज के युग की अनिवार्यता बन गया है तथा इसका प्रयोग अनेक क्षेत्रों में किया जा रहा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों आदि अनेक क्षेत्रों में कंप्यूटरों द्वारा कार्य संपन्न किया जा रहा है। आज के युद्ध तथा हवाई हमले कंप्यूटर के सहारे जीते जाते हैं। मुद्रण के क्षेत्र में भी कंप्यूटर ने क्रांति उत्पन्न कर दी है। पुस्तकों की छपाई का काम कंप्यूटर के प्रयोग से अत्यंत तीव्रगामी तथा सुविधाजनक हो गया है। विज्ञापनों को बनाने में भी कंप्यूटर सहायक हुआ है। आजकल यह शिक्षा का माध्यम भी बन गया है।

अनेक विषयों की पढ़ाई में कंप्यूटर की सहायता ली जा सकती है। कंप्यूटर यद्यपि मानव-मस्तिष्क की तरह कार्य करता है परंतु यह मानव की तरह सोच-विचार नहीं कर सकता केवल दिए गए आदेशों का पालन कर सकता है। निर्देश देने में ज़रा-सी चूक हो जाए तो कंप्यूटर पर जो जानकारी प्राप्त होगी वह सही नहीं होगी। कंप्यूटर का दुरुपयोग संभव है। इंटरनेट पर अनेक प्रकार की अवांछित सामग्री उपलब्ध होने के कारण वह अपराध प्रवृत्ति चारित्रिक पतन एवं अश्लीलता बढ़ाने में उत्तरदायी हो सकती है। कंप्यूटर के लगातार प्रयोग से आँखों की ज्योति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

इसका अधिक प्रयोग समय की बरबादी का कारण भी है। एक कंप्यूटर कई आदमियों की नौकरी ले सकता है। भारत जैसे विकासशील एवं गरीब देश में जहाँ बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक है, वहाँ कंप्यूटर इसे और बढ़ा सकता है। कंप्यूटर की भाँति मोबाइल फ़ोन भी आज जीवन की अनिवार्यता बन गया है। आज से कुछ वर्ष पूर्व इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि हम किसी से बात करने के लिए किसी का संदेश सुनाने के लिए किसी छोटे से यंत्र को अपने हाथ में लेकर घूमेंगे। इस छोटे से यंत्र का नाम है, मोबाइल फ़ोन।

मोबाइल फ़ोन से जहाँ चाहे, जिससे चाहें, देश या विदेश में कुछ ही क्षणों में अपना संदेश दूसरों तक पहुँचाया जा सकता है और उनकी बात सुनी जा सकती है। यही नहीं इस उपकरण से (एस.एम.एस.) संदेश भेजे और प्राप्त किए जा सकते हैं। समाचार, चुटकुले, संगीत तथा तरह-तरह के खेलों का आनंद लिया जा सकता है। किसी भी तरह की विपत्ति में मोबाइल फ़ोन रक्षक बनकर हमारी सहायता करता है।

मोबाइल फ़ोन असुविधा का कारण भी है। किसी सभा, बैठक अथवा कक्ष में जब अचानक मोबाइल फ़ोन की घंटी बजती है या घंटी के स्थान पर कोई फ़िल्मी गीत बजता है, तो यह व्यवधान का कारण बन जाता है। आजकल तो अनचाहे फ़ोन बजते रहते हैं जिनमें अनेक प्रकार के अवांछित संदेश प्राप्त होते हैं। किसी को धमकी देने, डराने, बदनाम करने जैसे कुकृत्यों के लिए मोबाइल फ़ोन का ही प्रयोग किया जाता है। आजकल मोबाइल फ़ोन से फ़ोटों खींचे जा सकते हैं। इस सुविधा का प्रायः दुरुपयोग किया जा सकता है।

मोबाइल फ़ोन का सबसे बड़ा दुरुपयोग तब होता है जब वाहन चलाते समय चालक मोबाइल फ़ोन से बातचीत करने लगता है। इसके कारण अनेक दुर्घटनाएँ घटित हो जाती हैं। कुछ भी हो कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन आज के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जिनके बिना जीवन असंभव-सा लगता है।

(iv) “अरे मित्र ! तुमने तो सिद्ध कर दिया कि तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो।” रवि ने अपने मित्र अजय से कहा, “मैं बहत भाग्यशाली हूँ कि मुझे तुम्हारे जैसा मित्र मिला।” रवि और अजय दोनों मित्र थे। दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। अजय जहाँ समृद्ध परिवार से था वहीं रवि की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसा होने पर भी रवि बहुत स्वाभिमानी लड़का था। किसी के आगे हाथ पसारना उसे पसंद नहीं था। रवि पढ़ाई में होशियार होने के साथ खेलकूद में भी हमेशा आगे रहता था। वह अपनी विद्यालय की क्रिकेट टीम का उपकप्तान था। दूसरों की हर संभव सहायता करना उसकी आदत थी।

वैसे तो उसके अनेक मित्र थे परंतु अजय उसका सबसे प्रिय मित्र था। रवि के माता-पिता एक कारखाने में काम करते थे। एक दिन कारखाने में काम करते हुए उसके पिता दुर्घटनाग्रस्त हो गए। उनका दाँया हाथ मशीन में आ गया। डॉक्टर ने बताया कि हाथ को ठीक होने में तीनचार महीने का वक्त लगेगा। इसलिए तुम्हें तीन महीने घर पर रहकर आराम करना पड़ेगा। इसी विवशता के कारण वे नौकरी पर नहीं जा रहे थे। पिता के वेतन के अभाव में घर की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ गई। अब घर का खर्च केवल उसकी माता के वेतन पर ही चलता था।

रवि की वार्षिक परीक्षा निकट आ गई। रवि को अंतिम सत्र की फ़ीस तथा परीक्षा शुल्क जमा करना था पर रवि असमंजस में था कि करे तो क्या करे। एक दिन कक्षाध्यापिका ने रवि को अपने कक्ष में बुलाया और उसे अंतिम तिथि तक फ़ीस न जमा करवाने की बात कही। ऐसी स्थिति में परीक्षा में न बैठने तथा विद्यालय से नाम काटने की चेतावनी भी दी। कक्षाध्यापिका के कक्ष से निकलकर जब रवि कक्षा में पहुँचा तो वह बड़ा हताश लग रहा था।

उसे उदास देखकर अजय बोला, “मित्र ! क्या हुआ तुम बहुत उदास दिखाई दे रहे हो।” रवि पहले तो मौन रहा, पर बार-बार पूछने पर उसने सारी बात अपने मित्र को बता दी।। अजय बोला, “चिंता ना करो मित्र, ईश्वर बहुत दयालु है। वह कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालेगा।” रवि ने अगले दिन से विद्यालय आना छोड़ दिया। जब रवि तीन-चार दिन स्कूल नहीं आया, तो अजय को चिंता हुई। उसने शाम को उसके घर जाने की सोची। जिस समय अजय वहाँ पहुँचा रवि अपने पिता जी को दवा पिला रहा था, उसकी माँ खाना बना रही थी।

अजय को देखकर रवि खुश हो गया। वह बोला, “अरे मित्र ! तुम विद्यालय क्यों नहीं आ रहे ?” तभी रवि की माँ बोली, “बेटा ! अभी फ़ीस के पैसों का इंतजाम नहीं हुआ है। मैं कोशिश कर रही हूँ।” रवि अगले दिन भी विद्यालय नहीं आया। उससे अगले दिन अजय जल्दी ही रवि के घर पहुंचा और उसे समझा-बुझाकर किसी तरह विद्यालय ले आया। रवि जब कक्षा में पहुँचा तो सीधे कक्षाध्यापिका के कक्ष में गया।

इससे पहले कि वह कुछ कहता कक्षाध्यापिका मुसकराकर बोली, “तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं। तुम्हारी फ़ीस जमा हो चुकी है।” यह सुनकर रवि चौंका। कक्षाध्यापिका ने उसे बताया कि तुम्हारी फ़ीस तुम्हारे मित्र अजय ने जमा कर दी है। तभी छुट्टी की घंटी बज गई। रवि जब अजय के पास पहुँचा, तो उसकी आँखों में आँसू थे। अजय को देखते ही उसने उसे गले से लगा लिया और बोला, “मैं आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा। मैं तुम्हारे पैसे भी जल्दी चुका दूंगा।” किसी ने ठीक कहा है कि संकट के समय ही सच्ची मित्रता की पहचान होती है।

(v) प्रस्तुत चित्र का संबंध बाल मजदूरी से है। चित्र में कुछ लड़कियाँ संभवत : बीड़ी बना रही हैं। लड़कियों की आयु 8-10 वर्ष के बीच है। वे सभी अत्यंत निर्धन वर्ग से संबंधित हैं जिन्हें जीविकोपार्जन के लिए इस प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। यद्यपि बाल श्रम कानून की दृष्टि से जुर्म है तथापि भारत में असंख्य बच्चे इस बुराई में संलग्न हैं, ऐसे बच्चों का बचपन उदास है, जो आयु उनके खेलने-कूदने की तथा हाथों में कलम दवात एवं पुस्तकें लेने की है उसी आयु में वे अत्यंत घृणित एवं दयनीय वातावरण में बाल मजदूरी करने को विवश हैं ।

बाल मज़दूरी में लिप्त इन बच्चों को अत्यंत गंदे वातावरण में दस से बारह घंटे काम करना पड़ता है तथा वेतन के नाम पर इन्हें गिने-चुने सिक्के मिलते हैं। निर्धनता तथा किसी अन्य प्रकार की विवशता के कारण इन्हें मज़दूरी करनी पड़ती है। . इतना काम करने के बाद भी इन्हें दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते। हर समय मालिक या ठेकेदार की डाँट-फटकार और झिड़कियाँ सुनने को मिलती हैं। सरकार की ओर से बाल मजदूरी रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए और बाल मजदूरी के लिए विवश करने वालों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।

 

प्रश्न 2.निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :

(i) आपके क्षेत्र में एक ही साधारण-सा सरकारी अस्पताल है, जिसके कारण आम जनता को बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन परेशानियों का उल्लेख करते हुए एक और सुविधायुक्त सरकारी अस्पताल खुलवाने का अनुरोध करते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

(ii) ओलम्पिक में अपने देश के बढ़ते कदम देख कर आपको बहुत ही प्रसन्नता हो रही है। इस वर्ष के ओलम्पिक की उपलब्धियों को बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

उत्तर :

(i) स्वास्थ्य अधिकारी

(स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार)

शास्त्री भवन,

नई दिल्ली।

दिनांक ………..

विषय – अपने क्षेत्र में सरकारी अस्पताल खुलवाने के संबंध में।

मान्यवर महोदय,

मैं रोहिणी सेक्टर – 26 का निवासी दयाराम गर्ग हूँ तथा अपने क्षेत्र के विकास मंडल’ का अध्यक्ष भी हूँ। इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान क्षेत्र के निवासियों की चिकित्सा संबंधी परेशानियों की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ।

मान्यवर, हमारे क्षेत्र में केवल एक ही सरकारी अस्पताल है, वह भी अत्यंत साधारण तथा छोटे आकार का है। क्षेत्र की आम जनता को अपने इलाज के लिए बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हमारा क्षेत्र घनी आबादी वाला क्षेत्र है। जिसके अधिकांश निवासी निम्न आय वर्ग के हैं। जिसके कारण वे बड़े-बड़े निजी अस्पतालों में इलाज नहीं करवा सकते। आपसे अनुरोध है कि वर्तमान सरकारी अस्पताल में आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाएँ तथा इस क्षेत्र में एक और सुविधायुक्त सरकारी अस्पताल खुलवाने के संबंध में तत्काल आवश्यक कार्यवाही की जाए।

धन्यवाद

भवदीय

दयाराम गर्ग

अध्यक्ष विकास मंडल, रोहिणी सेक्टर – 26।

(ii) परीक्षा भवन

………… नगर।

दिनांक ……..

प्रिय मित्र दिनेश,

सस्नेह नमस्कार।

मैं यहाँ कुशल हूँ। आशा है तुम भी सकुशल होंगे। तुम्हें जानकर प्रसन्नता होगी कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में खेलों के स्तर पर सुधार हुआ है। नए उदीयमान खिलाड़ियों ने विभिन्न खेलों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, जिसे देखकर लगता है कि वे दिन दूर नहीं जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भारत विशेष स्थान प्राप्त करेगा।

रियो ओलंपिक 2016 में भारत की ओर से 124 खिलाड़ियों का सबसे बड़ा दल भेजा गया। ओलंपिक में स्वर्ण जीत चुके अभिनव बिंद्रा भारतीय दल के ध्वजवाहक बने और समापन पर साक्षी मलिक ने यह उत्तरदायित्व निभाया। यद्यपि हमारे खिलाड़ियों ने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया परंतु केवल पी. वी. सिंधू एकल महिला बैडमिंटन में रजत और साक्षी मलिक फ्रीस्टाइल 58 कि. ग्रा. कुश्ती मे कांस्य पदक जीतने में सफल रही।

दीपा कर्माकर ने ओलंपिक में पहली बार भारतीय जिमनास्ट के रूप में पदार्पण किया और चौथे स्थान पर रही तथा प्रोदुनोवा वोल्ट सफलतापूर्वक करने वाली विश्व की पाँच जिमनास्टों में से एक बनी। बाईस वर्ष बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम क्वार्टर फाइनल तक पहुँची। इसी प्रकार मुक्केबाज़ विकास कृष्ण यादव मिडल वेट स्पर्धा में क्वार्टर फाइनल तक पहँचे। सानिया मिर्जा तथा रोहन बोपन्ना की जोडी टेनिस के मिश्रित युगल में मेडल के करीब तक पहुँची।

अभिनव बिंद्रा 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग के मात्र आधे अंक से पदक से चूक गए। इस प्रकार भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा जितना कि उनसे अपेक्षा की जा रही थी। परंतु खिलाड़ियों तथा भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने अगले ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करने का संकल्प लिया है, जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत है।

अंकल-आंटी को मेरी नमस्ते कहना और चिंटू को प्यार।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,

क. ख. ग.।

 

प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए :

पंजाब में उस वर्ष भयंकर अकाल पड़ा था। उन दिनों वहाँ महाराणा रणजीत सिंह का राज था। उन्होंने यह घोषणा करवा दी, “महाराज के आदेश से शाही भण्डार-गृह हर जरूरतमंद के लिए खुला है। प्रत्येक ज़रूरतमंद एक बार में जितना उठा सके, ले जाए।” यह घोषणा सुनते ही गाँवों व शहरों से ज़रूरतमंदों की भीड़ राजमहल में उमड़ पड़ी। उन दिनों लाहौर में एक सद्गृहस्थ बूढ़े सज्जन रहते थे। वे कट्टर सनातनी विचारों के थे। उन्होंने जीवन में कभी भी किसी के आगे अपना हाथ नहीं फैलाया था। अँधेरा होने पर वह शाही भण्डार के दरवाजे पर पहुँचे।

द्वार खुला था किसी तरह की कोई जाँच-पड़ताल नहीं हुई। उन्होंने बड़े संकोच से अपनी चादर को फैलाया, उसके कोने में थोड़ा सा अनाज बाँध लिया। ज्यादा अनाज उठाना उनके लिए मुश्किल था। इतने में पगड़ी बाँधे एक व्यक्ति वहाँ आया। उसने कहा, “भ्राताजी आपने तो काफी कम अनाज लिया है।” बूढ़े सज्जन ने कहा, “असल में मैं बूढ़ा लाचार हूँ। इस अकाल में तो थोड़ा अनाज लेना ही सही है, जिससे सब ज़रूरतमंदों को मिल जाए।” उस व्यक्ति ने बूढ़े की गठरी खोल दी। उसमें भरपूर अनाज भर दिया।

बूढ़े सज्जन ने कहा, “मैं इतना अनाज नहीं उठा सकता और न ही इसकी मजदूरी का पैसा दे सकता हूँ।” इतने में उस अजनबी ने बूढ़े की गठरी अपने कन्धों पर ले ली और बूढ़े के पीछे-पीछे चल पड़ा। जब वे बूढ़े के घर के द्वार पर पहुँचे तो वहाँ दो बच्चे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें देखते ही वे बोले – “बाबा, कहाँ चले गए थे?” बूढ़ा खामोश रहा। अजनबी ने कहा, “घर में कोई बड़ा लड़का नहीं है ?” बूढ़ा बोला, “लड़का था लेकिन काबुल की लड़ाई में शहीद हो गया।

अब बहू है तथा मेरे ये पोते हैं।” वह अजनबी बोला, “भाई जी धन्य हैं आप, जिनका बेटा देश के लिए शहीद हो गया।” रोशनी में बूढ़े ने उस अजनबी को पहचान लिया। वे खुद महाराजा रणजीत सिंह थे। बूढ़े ने पोतों से कहा, “इनके सामने दंडवत प्रणाम करो।” और स्वयं भी प्रणाम करने लगे और थोड़ी देर बाद बोले, “आज मुझसे बड़ा पाप हो गया। आपसे बोझा उठवाया।””नहीं, यह पाप नहीं, मेरा सौभाग्य था कि मैं शहीद के परिवार की सेवा कर सका। आप सबकी सेवा करना मेरा फ़र्ज है। अब आप जीवन भर हमारे साथ रहिए और हमें कृतार्थ कीजिए।”

(i) राज्य को किस विपत्ति का सामना करना पड़ा था ? उन दिनों वहाँ के राजा कौन थे और उन्होंने उस समस्या का क्या समाधान निकाला? 

(ii) राजा ने राज्य में क्या घोषणा करवाई और क्यों ? 

(iii) बूढ़े आदमी के बारे में आप क्या जानते हैं ? उनका पूर्ण परिचय दीजिए। 

(iv) बूढ़े आदमी ने थोड़ा-सा अनाज ही क्यों लिया था ? कारण स्पष्ट करते हुए बताइए कि उस अजनबी व्यक्ति ने उस बूढ़े की कैसे सहायता की ? 

(v) इस गद्यांश से मिलने वाली शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर :

(i) पंजाब राज्य को भयंकर अकाल का सामना करना पड़ा था। उन दिनों पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह का राज था। भयंकर अकाल को देखते हुए उन्होंने निश्चय किया कि जनता को अनाज की कमी न रहे। इसका समाधान करने के लिए राज्य के शाही भंडार-गृह को सबके लिए खोल दिया जाना चाहिए।

(ii) राजा, महाराजा रणजीत सिंह ने घोषणा करवा दी कि राज्य का शाही भंडार-गृह सबके लिए खोल दिया गया है। जिस व्यक्ति को अनाज की आवश्यकता हो, वह एक बार में जितना अनाज उठा सके, शाही भंडार-गृह से ले जा सकता है।

(iii) बूढ़ा आदमी लाहौर का रहने वाला था। वह कट्टर सनातनी विचारों का था, अत्यंत स्वाभिमानी था तथा उसने जीवन में कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया था। अकाल ग्रस्त होने के कारण उसे भी विवशता में शाही भंडार-गृह से अनाज लेने जाना पड़ा।

(iv) बूढ़े आदमी ने अपनी चादर में थोड़ा-सा अनाज ही लिया, क्योंकि अधिक अनाज उठाना उसके लिए मुश्किल था। वृद्धावस्था एवं शारीरिक दुर्बलता के कारण वह अधिक अनाज नहीं उठा सकता था। पगड़ी बाँधे आए एक अजनबी ने उसकी चादर में भरपूर अनाज भर दिया और उस गठरी को अपने कंधों पर रखकर बूढ़े के घर तक पहुँचाया।

(v) इस गद्यांश से ये शिक्षाएँ मिलती हैं कि :

  1. देश के राजा को विनम्र, दयालु तथा परोपकारी होना चाहिए। किसी भी प्रकार की विपत्ति आने पर उसका हर संभव समाधान करना चाहिए।
  2. हमें वरिष्ठ नागरिकों तथा बड़े-बूढ़ों की हर प्रकार से सहायता करनी चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।
  3. हमें शहीदों के परिवारों की हर प्रकार से सहायता करनी चाहिए।

 

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए :

(i) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए : आनंद, पुत्र, राक्षस।

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से दो शब्दों के विलोम लिखिए : आलस्य, सदाचार, सामिष, कृत्रिम।

(iii) निम्नलिखित शब्दों में से दो शब्दों को शुद्ध कीजिए : प्रतीष्ठा, ग्रन्थ, परीस्थती।

(iv) निम्नलिखित में से किसी एक मुहावरे की सहायता से वाक्य बनाइए : अपना उल्लू सीधा करना, हाथ मलना।

(v) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :

(a) विद्यार्थी को जानने की इच्छा रखने वाला होना चाहिए। (रेखांकित शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कीजिए।) –

(b) इतनी आयु होने पर भी वह विवाहित नहीं है। (‘नहीं’ हटाइए परन्तु वाक्य का अर्थ न बदले।)

(c) रात में सर्दी बढ़ जाएगी। (अपूर्ण वर्तमान काल में बदलिए।)

(d) अन्याय का सब विरोध करते हैं। (रेखांकित का विशेषण लिखते हुए वाक्य पुनः लिखिए।)

उत्तर :

(i) आनंद – हर्ष, प्रसन्नता

पुत्र – बेटा, सुत

राक्षस – दानव, निशाचर

(ii) आलस्य – स्फूर्ति

सदाचार – दुराचार

सामिष – निरामिष

कृत्रिम – स्वाभाविक

(iii) प्रतिष्ठा, ग्रंथ, परिस्थिति।

(iv) अपना उल्लू सीधा करना – अधिकांश लोग धनी एवं प्रभावशाली लोगों से अपना उल्लू सीधा करने के लिए मित्रता का ढोंग रचाते हैं।

हाथ मलना – समय पर काम न करने वाले लोग हाथ मलते रह जाते हैं।

(v) (a) विद्यार्थी को जिज्ञासु होना चाहिए।

(b) इतनी आयु होने पर भी वह अविवाहित है।

(c) रात में सर्दी बढ़ रही है।

(d) अन्याय के सब विरोधी हैं।

SECTION – B

साहित्य सागर – संक्षिप्त कहानियाँ

प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“उसने कोई बहाना न बनाया। चाहता तो कह सकता कि यह साजिश है। मैं नौकरी नहीं करना चाहता इसीलिए हलवाई से मिलकर मुझे फँसा रहे हैं, पर एक और अपराध करने का साहस वह न जुटा पाया। उसकी आँखें खुल गई थीं।”

[बात अठन्नी की – सुदर्शन]

(i) किसे कौन फँसा रहा था ? उसने क्या अपराध किया था ? 

(ii) रसीला कौन है ? उसका परिचय दीजिए। 

(iii) हमें अपने नौकरों से कैसा व्यवहार करना चाहिए ? कहानी के आधार पर उदाहरण देकर समझाइए। 

(iv) इस कहानी में लेखक ने समाज की कौन-सी बुराई को प्रकट करने का प्रयास किया है ? क्या वे अपने प्रयास में सफल हुए ? समझाकर लिखिये। 

उत्तर :

(i) रसीला को कोई फँसा नहीं रहा था। हाँ, यदि वह चाहता तो कोई बहाना बनाकर कह सकता था कि उसके मालिक जगत सिंह हलवाई से मिलकर उसे फँसा रहे हैं। रसीला ने अपने मालिक द्वारा पाँच रुपये की जलेबी मँगाये जाने पर उसमें से अठन्नी की हेरा-फेरी की थी।

(ii) रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर था, जिसे दस रुपया मासिक वेतन मिलता था। वह इसीवेतन से गाँव में रहने वाले अपने बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़कों का पालन-पोषण करता था।

(iii) हमें नौकरों से मानवता से भरा व्यवहार करना चाहिए। हमें उनकी हर समस्या तथा कठिनाई आदि का ध्यान रखना चाहिए। जहाँ तक संभव हो, उसका समाधान करना चाहिए। हमें प्रतिवर्ष उनके वेतन में भी वृद्धि करनी चाहिए। हमें सोचना चाहिए, जो व्यक्ति हमारी इतनी सेवा करता है यदि कभी उनसे थोडीबहुत भूल-चूक हो भी जाए तो उसे क्षमा कर देना चाहिए। जगत सिंह को जब पता चला कि रसीला ने जलेबियाँ लाने में अठन्नी की हेरा-फेरी की है तथा उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है तो उसका पहला अपराध समझकर उसे क्षमा कर देना चाहिए था।

(iv) इस कहानी में लेखक ने समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी एवं भ्रष्टाचार जैसी बुराई को प्रकट करने का प्रयास किया है। समाज के उच्च तथा प्रतिष्ठित पदों पर आसीन लोग रिश्वत लेकर भी सम्मानित जीवन व्यतीत करते हैं जबकि एक निर्धन व्यक्ति केवल अठन्नी की हेरा-फेरी करने के जुर्म में छह महीने का कारावास भोगने पर मजबूर है। कहानी में बाबू जगतसिंह की हृदयहीनता का भी पर्दाफाश किया गया है। लेखक अपने प्रयास में पूरी तरह सफल रहा है, क्योंकि रसीला द्वारा अठन्नी की हेरा-फेरी करने का अपराध स्वीकार कर लेने तथा उसके पहले अपराध को क्षमा किए जाने की प्रार्थना के बावजूद उसे छह महीने का कारावास हो गया।

 

प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फ़ौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो …’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि में यह सफल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी।”

[नेताजी का चश्मा – स्वयं प्रकाश]

(i) मूर्ति किसकी थी और वह कहाँ लगाई गई थी ? 

(ii) यह मूर्ति किसने बनाई थी और इसकी क्या विशेषताएँ थीं? 

(iii) मूर्ति में क्या कमी थी ? उस कमी को कौन पूरा करता था और कैसे ? 

(iv) नेताजी का परिचय देते हुए बताइए कि चौराहे पर उनकी मूर्ति लगाने का क्या उद्देश्य रहा होगा ? क्या उस उद्देश्य में सफलता प्राप्त हुई ? स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) मूर्ति नेताजी सुभाषचंद्र बोस की थी, जो संगमरमर की थी। इसे शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर लगाया गया था।

(ii) यह मूर्ति कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी द्वारा बनाई गई थी। मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची थी- जिसे कहते हैं बस्ट और सुंदर थी। नेताजी फ़ौजी वर्दी में थे।

(iii) शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर लगी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति में एक चीज़ की कमी थी नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। अर्थात् चश्मा संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। मूर्ति को चश्मा पहनाने का काम चश्मा बेचने वाला एक बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी करता था जिसे कैप्टन कहते थे जो घूम-घूमकर चश्में बेचा करता था। वह अपने चश्मों में से एक चश्मा मूर्ति पर लगा देता था। जब किसी ग्राहक को मूर्ति पर लगे चश्मे को खरीदने की इच्छा होती तो वह मूर्ति से चश्मा हटाकर वहाँ कोई दूसरा फ्रेम लगा देता था।

(iv) नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक महान देशभक्त और क्रांतिकारी थे। इन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया तथा विदेश में जाकर आज़ाद हिंद फौज का गठन किया। इन्होंने ‘दिल्ली चलो’ तथा ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ जैसे नारे दिए। चौराहे पर इनकी मूर्ति लगाने का उद्देश्य यही रहा होगा कि इन्हें देखकर लोगों को देशभक्ति की प्रेरणा मिले। इस उद्देश्य में सफलता अवश्य मिली, क्योंकि मूर्ति देखकर लोगों को उनके नारे याद आते थे और उनमें देशभक्ति की भावना हिलोरें लेने लगती थी।

 

प्रश्न 7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :”बड़े भोले हैं आप सरकार ! अरे मालिक, रूप-रंग बदल देने से तो सुना है आदमी तक बदल जाते हैं। फिर ये तो सियार है।”

भेड़े और भेड़िए – हरिशंकर परसाई]

(i) उपर्युक्त कथन कौन, किससे क्यों कह रहा है ? 

(ii) बूढ़े सियार ने भेड़िये का रूप किस प्रकार बदला ?

(iii) यह कैसी कहानी है, बूढ़े सियार ने किन तीन बातों का ख्याल रखने के लिए कहा ? क्यों कहा? 

(iv) सियारों को किन-किन रंगों में रंगा गया ? वे किसके प्रतीक थे ? इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन सियार ने भेड़िये का हाथ चूमकर कहा है। बूढ़ा सियार अपने साथ तीन रँगे सियारों को लाया था उसने भेड़िये से कहा था कि ये आपकी सेवा करेंगे और आपके चुनाव का प्रचार भी करेंगे। जब भेडिये ने रँगे सियारों के प्रति आशंका प्रकट की तब बूढ़े सियार ने उपर्युक्त कथन कहा।

(ii) बूढे सियार ने सियारों को रँगने के साथ-साथ भेडिये का रूप भी बदला। उसके मस्तक पर तिलक लगाया। गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस दिए। इस प्रकार उसने भेड़िए को पूरा संत बना दिया।

(iii) प्रस्तुत कहानी प्रतीकात्मक है जिसमें तीखा व्यंग्य समाहित है। कहानी में स्पष्ट किया गया है कि प्रजातंत्र के नाम पर स्वार्थी, ढोंगी और चालाक राजनेता जनता को भ्रमित कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। बूढ़े सियार ने भेड़िये को तीन बातों का ख्याल रखने को कहा – अपनी हिंसक आँखों को ऊपर मत उठाना हमेशा ज़मीन की ओर देखना और कुछ मत बोलना क्योंकि इन पर अमल न करने से पोल खुल जाएगी और बना बनाया काम बिगड़ जाएगा।

(iv) बूढे सियार ने सियारों को तीन रंगों में रँगा। पहले सियार को पीले रंग में रंगा जिसे विद्वान, कवि, विचारक और लेखक बताया गया। दूसरे सियार को नीले रंग में रंगा, जो नेता और पत्रकार का प्रतीक बताया गया। तीसरे सियार को हरे रंग में रंगा गया तथा उसे धर्मगुरु बताया गया। इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें धोखेबाज़, झूठे, ढोंगी एवं चालाक राजनेताओं के बहकावे में नहीं आना चाहिए तथा उनसे सावधान रहना चाहिए।

साहित्य सागर – पद्य भाग

प्रश्न 8. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“मेघ आए बड़े बन-ठन के,

सँवर के आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,

दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली,

पाहुन ज्यों आये हों, गाँव में शहर के !

मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के !”

[मेघ आए – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना]

(i) मेघ कहाँ आए हुए हैं ? कवि को मेघ देखकर क्या प्रतीत हो रहा है ? 

(ii) ‘बयार’ शब्द से आप क्या समझते हैं ? कवि इसके बारे में क्या बताना चाहता है ? 

(iii) दरवाज़े-खिड़कियाँ क्यों खुलने लगी हैं ? किसका स्वागत कहाँ पर किस प्रकार किया जाने लगा है ? कवि के भाव स्पष्ट कीजिए। 

(iv) कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए। 

उत्तर :

(i) मेघ बन-ठन कर आसमान में आए हुए हैं। मेघों को देखकर कवि को ऐसा लगा जैसे शहर से बन-ठन कर सज-सँवर कर कोई मेहमान (दामाद) किसी गाँव में आया हुआ हो।

(ii) बयार’ शब्द का अर्थ है – ‘हवा’। कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जिस प्रकार किसी मेहमान के आगे-आगे नाचती-गाती कोई नटी या नर्तकी चलती है उसी प्रकार मेघों के घिरने तथा वर्षा के आगमन की खुशी में हवा चलने लगी।

(iii) बादल रूपी मेहमान (दामाद) बन-ठन कर, सज-सँवर कर आ रहे हैं, जिसके सामने नाचती-गाती हवा चल रही है, तो उस अतिथि को देखने के लिए लोगों ने प्रसन्न होकर अपने घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ खोल दी हैं। बूढ़े पीपल ने मेघ रूपी अतिथि का अभिवादन किया। हर्षित ताल परात भरकर पानी लाया। नदी ने यूंघट सरकाकर बाँकी चितवन से उसे उसी प्रकार देखा जैसे कोई प्रियतमा अपने प्रियतम को देखती है। पेड़ों ने भी उचक-उचककर अतिथि की ओर निहारा।

(iv) श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित ‘मेघ आए’ शीर्षक कविता में मेघों के आगमन का शब्द चित्र उपस्थित किया गया है। मेघों के बन-ठन कर आगमन पर हवा नाचते-गाते चल रही है। पेड़ गरदन उचकाकर मेघों की ओर निहार रहे हैं। नदी चूँघट सरकाकर बाँकी चितवन से मेघों को देख रही है। धूल घाघरा उठाकर भाग रही है। बूढ़े पीपल ने मेघों का अभिवादन किया। इन सभी प्रयोगों से मेघों का आगमन चित्रात्मक बन गया है।

 

प्रश्न 9. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पायँ।”

बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताय।।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।

प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि ।।

[साखी – कबीर दास]

(i) कवि किसके बारे में क्या सोच रहे हैं ? 

(ii) कवि किसके ऊपर न्योछावर (समर्पण) हो जाना चाहते हैं तथा क्यों ? 

(iii) ईश्वर का वास कहाँ नहीं होता है ? कवि हमें क्या त्यागने की प्रेरणा दे रहें हैं ? कवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए। 

(iv) ‘साँकरी’ शब्द का क्या अर्थ है ? प्रेम गली से कवि का क्या तात्पर्य है ? उसमें कौन दो एक साथ नहीं रह सकते हैं समझाइए। 

उत्तर :

(i) कवि कबीरदास ईश्वर एवं अपने गुरु के बारे में सोच रहे हैं कि उसके सामने दोनों खड़े हैं। वह असमंजस में है कि इन दोनों में से वह किसके चरण सबसे पहले स्पर्श करे- अपने गुरु के या ईश्वर के ?

(ii) कबीरदास अपने समक्ष गुरु एवं ईश्वर को पाकर अपने गुरु पर न्योछावर हो रहे हैं। अर्थात् वे अपने गुरु पर बलिहारी जा रहे हैं, क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक पहुँचने का मार्ग बताया था, अर्थात् गुरु की कृपा के बिना वे ईश्वर को नहीं पा सकते थे।

(iii) आम आदमी ईश्वर को खोजने के लिए जगह-जगह भटकता फिरता है। वह धार्मिक स्थानों में, पूजागृहों में, तीर्थ स्थानों में, ईश्वर की खोज में भटकता फिरता है। वह पवित्र नदियों पर जाकर भी ईश्वर को खोजता है, परंतु कवि के अनुसार इन सब स्थानों में ईश्वर का निवास नहीं होता। कवि ने इन सब प्रकार के ढोंगों को त्यागने की सलाह दी है। कबीर निर्गणवादी संत कवि थे, जो ढोंग-ढकोसलों तथा आडंबरों के विरोधी थे। उनके अनुसार ईश्वर का निवास स्थान मनुष्य के हृदय में है तथा ईश्वर निराकार एवं घट-घट वासी है। कबीर मूर्ति पूजा के विरोधी थे तथा उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को उनके अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों के कारण फटकारा।

(iv) ‘साँकरी’ का अर्थ है – ‘तंग’। ‘प्रेम की गली’ का अर्थ है – ईश्वर से साक्षात्कार करने का मार्ग। अर्थात् वह मार्ग जिसका अनुसरण करके ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है। जिस प्रकार कोई गली इतनी तंग हो कि उसमें दो व्यक्तियों को भी स्थान नहीं मिल सके, उसी प्रकार ईश्वर को पाने के मार्ग में दो बातों को स्थान नहीं दिया जा सकता-अहंकार एवं ईश्वर। अर्थात् जब तक व्यक्ति के हृदय में अहंकार विद्यमान है तब तक वह ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर सकता। ईश्वर से मिलन के लिए अहंकार को छोड़ना आवश्यक है

 

प्रश्न 10. निम्नलिखितं पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

सुनूँगी माता की आवाज़

रहूँगी मरने को तैयार।

कभी भी उस वेदी पर देव

न होने दूंगी अत्याचार।।

न होने दूंगी अत्याचार

चलो, मैं हों जाऊँ बलिदान

मातृ मंदिर से हुई पुकार,

चढ़ा दो मुझको, हे भगवान।।

[मातृ मंदिर की ओर – सुभद्रा कुमारी चौहान]

(i) ‘मातृ मंदिर’ से क्या तात्पर्य है ? वहाँ से कवयित्री को क्या पुकार सुनाई दे रही है ? 

(ii) कवयित्री अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए क्या करने को तैयार है और क्यों? 

(iii) मंदिर तक पहुँचने के मार्ग में कवयित्री को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ? 

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री की किस भावना को दर्शाया गया है ? वह इस कविता के माध्यम से पाठकों को क्या सन्देश देना चाहती हैं ? 

उत्तर :

(i) कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी मातृभूमि को ‘मातृ मंदिर’ के समान बताया है तथा अपनी पावन . धरती को ही मातृमंदिर कहा है। कवयित्री को मातृभूमि के प्रांगण से बलिदान के लिए स्वरों की गूंज सुनाई दे रही है। अर्थात् उसकी मातृभूमि उससे बलिदान की अपेक्षा कर रही है।

(ii) कवयित्री अपनी मातृभूमि पर अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार है। अर्थात् अपने देश को पाप और अत्याचार से बचाने के लिए अपने प्राणों की बलि देने को तत्पर है, क्योंकि वह स्वयं को मातृभूमि की सुपुत्री मानती है। जिस प्रकार कोई पुत्र अथवा पुत्री अपनी माता के कष्टों के निवारण के लिए हर संभव प्रयास करता है, उसी प्रकार वह भी अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का वहन करना चाहती है।

(iii) मातृभूमि रूपी ‘मातृमंदिर’ तक पहुँचने में कवयित्री को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहाँ तक पहुँचने का मार्ग कठिन है तथा चारों ओर बहुत से पहरेदार हैं। मातृमंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ भी ऊँची हैं जिन पर चढ़ने पर पैर भी फिसलते हैं। कवयित्री के चरण दुर्बल हैं। अर्थात् मातृभूमि पर विदेशी शासक अत्याचार कर रहे हैं। ये शासक अत्यंत शक्तिशाली हैं, जिनसे टक्कर लेना आसान नहीं है फिर भी कवयित्री उनसे टकराने का संकल्प करती है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान अपनी पावन धरती के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते हुए उसकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प करती है। कविता आत्मबलिदान की भावना से ओतप्रोत है जिसमें देश के प्रति गहरे अनुराग का सुंदर चित्रण किया गया है।

कवयित्री मातृभूमि के चरणों में शीघ्रातिशीघ्र पहुँच जाना चाहती है। इस कविता के माध्यम से वह पाठकों को संदेश देना चाहती है कि उन्होंने जिस पावन धरती पर जन्म लिया है, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ है उन्हें उस धरती के दुख-दर्द मिटाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को उद्यत रहना चाहिए।

नया रास्ता – (सुषमा अग्रवाल)

प्रश्न 11. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“माँ को लगा, शायद अमित सरिता के रिश्ते को तैयार नहीं है। इसलिए वह बोली”, “बेटे, व्यवहार का तो किसी का भी पता नहीं है। न सरिता के बारे में ही कुछ कहा जा सकता है और न ही मीनू के बारे में व्यवहार का तो साथ रहने पर ही पता चलता है।”

(i) माँ को कैसे पता चलता है कि अमित सरिता के रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं ? 

(ii) अमित के पिता मायाराम जी सरिता के रिश्ते को क्यों नहीं स्वीकार करना चाहते हैं ? 

(iii) अमित और सरिता का रिश्ता तय होने के लिए माँ किसको और क्यों उकसाती है ? माँ की ऐसी धारणा से उनके स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है ? समझाकर लिखिये। 

(iv) शादी के विषय में समाज की क्या परम्परा है ? आप इससे कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिये। 

उत्तर :

(i) अमित की माँ मायाराम जी की बेटी सरिता से अपने बेटे का विवाह कराना चाहती थी, इसीलिए उसने उसके फ़ोटो को देखकर उसके रंग-रूप की प्रशंसा करते हुए कहा कि उसके नाक-नक्श तीखे हैं। सरिता के बाल कटे हुए थे पर वह दयाराम की बेटी मीनू से ज्यादा अच्छी नहीं थी। तभी अमित ने अपनी माँ से पूछा कि सरिता बड़े घर की लड़की है, क्या वह तुम्हारे साथ रह सकेगी और हमारे घर के वातावरण में घुल सकेगी ? अमित की यह बात सुनकर उसकी माँ को लगा शायद अमित सरिता के रिश्ते को तैयार नहीं

(ii) अमित के पिता को लगा कि बड़े घर की लडकी सरिता ढेर सारा दहेज़ अपने साथ लाएगी और शायद परिवारवालों के साथ मिलकर नहीं रह पाएगी। साथ ही मायाराम जी दहेज़ विरोधी थे। वे नहीं चाहते थे कि एक बड़े घर की लड़की लेकर अपने बेटे को बेच डालें। उन्हें दयाराम जी की बेटी मीनू के बात करने का तौर-तरीका बहुत पसंद आया था। उन्हें पढ़ी-लिखी मीनू साधारण परिवार की होकर भी काफ़ी गुणवती लगी। इन्हीं कारणों से वे सरिता के रिश्ते को स्वीकार नहीं करना चाहते थे।

(iii) जब अमित ने अपनी माँ से पूछा कि क्या एक बड़े घर की लडकी सरिता हमारे घर के वातावरण में घुल-मिल सकेगी, तो माँ ने अपने ढंग से अमित को उकसाया। वह बोली कि मीनू और सरिता दोनों में से किसी के व्यवहार का पता नहीं है। व्यवहार का पता तो साथ रहकर ही चलता है। वास्तव में माँ ने धन के सपने देखने शुरू कर दिए थे। इसलिए उसने अपनी बातों के सामने किसी की एक न चलने दी। माँ की ऐसी धारणा को देखकर सरलता से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि माँ दहेज़ की लोभी थी तथा वह हर कीमत पर सरिता से अपने बेटे का रिश्ता करवाना चाहती है।

(iv) हमारे समाज में विवाह के संबंध में प्राचीन काल से ही यह परंपरा प्रचलित है कि वर पक्ष के माता-पिता अपने पुत्र के लिए लड़की देखते हैं। पूरा परिवार लड़की देखने जाता है और सब पहलुओं पर विचार करके कुछ निर्णय लेता है। वर एवं वधू पक्ष में शादी के आयोजन तथा लेन-देन आदि पर भी विचार-विमर्श किया जाता है। कन्या पक्ष विवाह में अपनी हैसियत के मुताबिक खर्च करने का प्रस्ताव रखता है। इन बातों के उपरांत ही शादी निश्चित होती है।

मैं इस व्यवस्था से बहुत सहमत नहीं हूँ, क्योंकि इसमें वर तथा वधू की इच्छाओं का बहुत कम ध्यान रखा जाता है दूसरे दहेज़ और धन का लालच देकर वर पक्ष को फुसलाया जा सकता है। अधिकांश लोग दहेज़ के लोभी होते हैं वे लड़की के रंग-रूप एवं गुणों की अपेक्षा दहेज़ को प्राथमिकता देते हैं। मेरे विचार में लड़की का चयन उसके गुणों के आधार पर किया जाना चाहिए इसीलिए आजकल शिक्षित युवक-युवतियाँ इन परंपराओं को न मानकर प्रेम-विवाह कर लेते हैं।

प्रश्न 12. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“मीनू ने अमित के कमरे में प्रवेश किया, तो देखा कि अमित अपने पलंग पर लेटा हुआ है। मीनू को देखकर उन्होंने उसे प्रेमपूर्वक बैठाया। उसे देखकर अमित के मुरझाये चेहरे पर भी खुशी की लहर दौड़ गई।”

(i) मीनू अमित को देखने कहाँ गई थी ? जाते समय वह मन में क्या सोच रही थी ? 

(ii) कमरे में प्रवेश करते ही उसने क्या देखा ? अमित की माँ ने मीनू से क्या पूछा ? उसने क्या उत्तर दिया ? 

(iii) मीनू के वकालत पास करने पर अमित की माँ को विशेष खुशी क्यों हो रही थी ? क्या उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। 

(iv) मीनू के हृदय में बचपन से ही किसके प्रति दया की भावना थी ? वह उनकी किस प्रकार सहायता करने का निश्चय कर रही है ? 

उत्तर :

(i) मीनू अमित को देखने अस्पताल में गई थी। जाते समय उसके मन में अंतद्वंद्व चल रहा था कि क्या उसका अस्पताल जाना उचित होगा या नहीं कई बार उसके पाँव वापस मुड़े। वह फ़ैसला नहीं कर पा रही थी। फिर भी उसके कदम अस्पताल की ओर बढ़ते चले गए।

(ii) अस्पताल के कमरे में प्रवेश करते ही मीनू ने देखा कि अमित अपने पलंग पर लेटा हुआ है और अपनी माँ से बातें कर रहा है। मीनू की माँ ने उससे पूछा कि क्या उसकी वकालत पूरी हो गई है ? मीनू ने अत्यंत विनम्रता एवं सम्मान के साथ हाँ कहा और बताया उसने प्रथम श्रेणी में वकालत पास कर ली है और मेरठ में प्रैक्टिस भी शुरू कर दी है।

(iii) मीनू के वकालत पास करने का समाचार सुनकर अमित की माँ को विशेष खुशी हुई, क्योंकि संभवत: वह मन ही मन पुत्रवधू के रूप में मीनू को चाहने लगी थी और मीनू से अपने बेटे का विवाह संबंध जोड़ने पर उसे पश्चाताप भी हो रहा था। वह जानती थी कि अमित सरिता से अधिक मीनू को चाहता है, इसलिए वह अपने निर्णय पर पश्चाताप कर रही होगी।

(iv) मीनू के हृदय में बचपन से ही अपंगों के प्रति दया की भावना थी। मीनू मन ही मन निश्चय कर रही थी कि वह अपने विवाह के फालतू खर्च में से कुछ रुपये बचाकर राजो के चचेरे भाई मनोहर की सहायता करेगी। उसने निश्चय किया कि वह अपने घर के सामने उसे एक पान की दुकान खुलवा देगी और पाँच हजार खर्च करेगी। समय आने पर उसने उसे पान की दुकान खुलवा दी और उसकी जिंदगी सुधार दी।

 

प्रश्न 13.  निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“अमित का नाम सुनते ही दरवाज़े की ओर पीठ किए बैठी मीनू ने मुड़कर देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गई। मीनू जब भी अमित को देखती, उसके मन में अजीब सी घृणा उत्पन्न हो जाती। अमित व उसके सभी मित्र वहाँ आ चुके थे परन्तु मीनू अभी भी सोच में डूबी हुई थी।”

(i) मीनू इस समय कहाँ थी ? वहाँ अमित से उसकी कैसे मुलाकात हो गई ? 

(ii) मीनू और अमित के बीच क्या सम्बन्ध था ? वह उससे घृणा क्यों करती थी? 

(iii) उसे वहाँ किस सच्चाई का पता चला ? उन बातों का उसपर क्या प्रभाव पड़ा? 

(iv) “मीनू परिस्थितियों से हार मानने वाली कोई साधारण नारी नहीं थी” – स्पष्ट कीजिए कि उसने अपने जीवन को कैसे नई दिशा दी ? 

उत्तर :

(i) मीनू मेरठ में वकालत की पढ़ाई कर रही थी। वह अपनी सहेली नीलिमा के घर पर थी जहाँ वह उसके नवजात शिशु के नामकरण के दिन शिशु के लिए उपहार लेकर पहुंची थी। नीलिमा के पति सुरेंद्र अमित के मित्र थे। मीन और नीलिमा बैठे बातें कर रही थीं कि तभी अमित भी उसी कार्यक्रम में आ गया और इस प्रकार मीन और अमित की मुलाकात हो गई।

(ii) अमित अपने माता-पिता के साथ अपने विवाह के लिए मीनू को देखने उसके घर गया था। परंतु यह रिश्ता नहीं हो सका था, क्योंकि तभी एक धनाढ्य व्यक्ति दयाराम अपनी बेटी का रिश्ता लेकर अमित के घर पहुँचा। उसने दहेज़ देने का लालच भी दिया। मीनू अमित से घृणा करती थी, क्योंकि पढ़ी-लिखी और कुरूप न होने पर भी अमित और उसके परिवार ने उसका रिश्ता अस्वीकार कर दिया जिसके कारण उसके हृदय में हीन भावना घर कर गई कि शायद वह विवाह के योग्य ही नहीं है।

(iii) मीनू को वहाँ अमित के बारे में एक सच्चाई का पता चला कि मेरठ में ही किसी बहुत बड़े घर में उसका रिश्ता तय हुआ था, परंतु शादी से एक महीना पहले लड़की वालों ने कुछ ऐसी तीखी बात कह दी कि रिश्ता तोड़ना पड़ा। यह रिश्ता दयाराम की बेटी सरिता से संबंधित था। नीलिमा से मीनू को यह भी पता चला कि दयाराम जी अपनी बेटी को एक फ्लैट देना चाहते थे जिससे कि वह सास-ससुर से अलग रह सके, परंतु अमित उस लड़की से शादी करने का इच्छुक नहीं था।

नीलिमा को यह बात ज्ञात नहीं थी कि अमित ने मीरापुर में कोई लड़की देखी थी जो उसे बेहद पसंद थी पर उसके माता-पिता की ग़लती से वह रिश्ता नहीं हो पाया था। वह लड़की मीन ही थी। जब नीलिमा ने बताया कि अमित आज भी उस लड़की (मीन) से शादी करना चाहते हैं तो मीनू को बुरा नहीं लग रहा था। आज ये सब बातें सुनकर वह मन-ही-मन अमित से घृणा नहीं कर रही थी।

(iv) मीनू परिस्थितियों से हार मानने वाली कोई साधारण नारी नहीं थी। जब उसे वर पक्ष द्वारा कई बार अस्वीकार कर दिया गया तथा थोड़े समय के लिए उसमें निराशा व्याप्त हो गई, फिर भी उसने हार नहीं मानी। उसने निश्चय किया कि वह विवाह नहीं करेगी। उसने अपने पिता जी से अपनी छोटी बहन आशा की शादी करने को कह दिया। जब उसके पिता ने यह कहा कि बड़ी बहन की अपेक्षा छोटी बहन का विवाह करने पर समाज क्या कहेगा, तो उसने उनसे समाज की चिंता न करने को कहा। मीन ने अपने पैरों पर खड़ा होने का दृढ़-संकल्प किया तथा वकालत की पढ़ाई करके प्रैक्टिस करने का संकल्प दोहराया और सचमुच उसके इस संकल्प ने उसके जीवन को नई दिशा दी।

एकांकी संचय

प्रश्न 14.  निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :”दहेज़ देना तो दूर, बारात की खातिर भी ठीक से नहीं की गई। मेरे नाम पर जो धब्बा लगा, मेरी शान में जो ठेस पहुँची, भरी बिरादरी में जो हँसी हुई, उस करारी चोट का घाव आज भी हरा है। जाओ, कह देना अपनी माँ से कि अगर बेटी को विदा कराना चाहती है तो पहले उस घाव के लिए मरहम भेजे।”

[बहू की विदा – विनोद रस्तोगी]

(i) प्रस्तुत कथन किसने, किससे कहा ? सन्दर्भ सहित उत्तर लिखिए। 

(ii) ‘मरहम’ का क्या अर्थ है ? यहाँ मरहम से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए। 

(iii) वक्ता के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए। 

(iv) प्रस्तुत एकांकी में किस समस्या को उठाया गया है ? उस समस्या को दूर करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं ? अपने विचार दीजिए।

(i) प्रस्तुत कथन जीवनलाल ने कमला के भाई प्रमोद से तब कहा जब वह अपनी बहन को उसके पहले सावन के लिए विदा कराने आया था। जीवनलाल ने कमला को विदा करने से साफ़ इंकार करते हुए कहा कि कमला के विवाह में पूरा दहेज़ नहीं दिया गया और बरात की खातिर भी ठीक से नहीं की गई। यदि विदा कराना ही है, तो मेरी प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुँची है उसकी भरपाई के लिए दहेज़ के रूप में धन भेजें।

(ii) ‘मरहम’ का शाब्दिक अर्थ तो किसी घाव पर लगाया जाने वाला गाढ़ा और चिकना लेप है, परंतु यहाँ वह प्रतीकात्मक अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है। जीवनलाल के अनुसार उसके बेटे के विवाह में कम दहेज़ देकर और बरात की ठीक से खातिर न होने के कारण बिरादरी में उसकी हँसी हुई तथा उसकी शान को ठेस पहुँची जिसका घाव आज भी विद्यमान है। उस घाव का इलाज केवल धन रूपी मरहम से हो सकता है। जीवनलाल ने कमला के भाई प्रमोद से कहा कि यदि वह अपनी बहन को विदा कराना चाहता है, तो धन लेकर आए।

(iii) जीवनलाल एक धनी व्यापारी है परंतु धन का अत्यंत लोभी भी है। अपने बेटे के विवाह में कम दहेज़ मिलने के कारण वह खफ़ा है और इसी कारण अपनी पुत्रवधू को उसके पहले सावन पर उसके भाई के साथ विदा नहीं करता। इसी आक्रोश के कारण वह प्रमोद को अत्यंत जली-कटी सुनाता है। स्वयं उसकी पत्नी के अनुसार उन्हें इंसान से ज़्यादा पैसा प्यारा है। जब जीवनलाल का बेटा भी अपनी बहन को उसकी ससुराल से विदा कराकर नहीं ला सका क्योंकि उसके ससुरालवालों ने भी दहेज़ कम दिए जाने की शिकायत की थी, परंतु उसकी आँखें खुल गईं और उसका हृदय परिवर्तित हो गया और उसने अपनी पुत्रवधू को विदा करने का निश्चय कर लिया।

(iv) प्रस्तुत एकांकी में दहेज़ की समस्या को उजागर किया गया है, जो समाज के लिए भयानक अभिशाप है। यद्यपि इस समस्या के उन्मूलन के लिए हर दिशा से प्रयास हो रहे हैं, सरकार द्वारा कानून बनाकर भी इस पर रोक का प्रावधान किया गया है तथापि इस पर काबू नहीं पाया जा सका। दहेज़ विरोधी कानून के अंतर्गत दहेज़ लेने और देने को अपराध घोषित किया गया है, फिर भी चोरी-छिपे यह समस्या बढ़ती जा रही है। हाँ, आजकल के शिक्षित युवक-युवतियाँ प्रेम-विवाह करके दहेज़ लेने-देने को अस्वीकार कर रहे हैं। यह अच्छा संकेत है। मेरे विचार से सरकार को दहेज़ विरोधी कानून को अत्यंत कड़ा करके उस पर सख्ती से अम्ल करवाना चाहिए।

 

प्रश्न  15. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“प्राण जाएँ पर वचन न जाएँ ” – यह हमारे जीवन का मूलमंत्र है। जो तीर तरकश से निकलकर कमान से छूट गया, उसे बीच में लौटाया नहीं जा सकता। मेरी प्रतिज्ञा कठिनाई से पूरी होगी, यह मैं जानता हूँ और इस बात की हाल के युद्ध में पुष्टि भी हो चुकी है कि हाड़ा जाति वीरता में हम लोगों से किसी प्रकार हीन नहीं है।”

[मातृभूमि का मान – हरिकृष्ण ‘प्रेमी’]

(i) उपरोक्त कथन के वक्ता और श्रोता का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(ii) वक्ता ने क्या प्रतिज्ञा ली थी? कारण सहित लिखिए। 

(iii) हाड़ा वंश के राजा कौन थे ? हाड़ा लोगों की क्या विशेषताएँ थीं? उनपर प्रकाश डालिए। 

(iv) ‘प्राण जाएँ पर वचन न जाएँ’ – इस कहावत का क्या अर्थ है ? एकांकी के सन्दर्भ में समझाइए। 

उत्तर :

(i) यह उपर्युक्त कथन मेवाड़ के महाराणा लाखा का है। जो उन्होंने अपने सेनापति अभयसिंह से कहा है। महाराणा लाखा को मुट्ठी भर हाड़ाओं द्वारा नीमरा के मैदान में बूंदी के राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा था जिसके कारण उसके आत्म-गौरव को बहुत ठेस पहुंची थी। अब उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि वे जब तक बूंदी के दुर्ग में सेना सहित प्रवेश नहीं कर लेंगे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। महाराणा का सेनापति अभय सिंह अत्यंत बुद्धिमान एवं चतुर व्यक्ति है। वह पूरा प्रयास करता है कि महाराणा ऐसी प्रतिज्ञा न करें।

(ii) वक्ता (महाराणा लाखा) को नीमरा के मैदान में बूंदी के राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा था। मुट्ठी भर हाडाओं से मिली हार पर उसकी आत्मा उसे धिक्कार रही थी। महाराणा अपने आत्म-सम्मान एवं प्रतिष्ठा पर लगे इस कलंक को धोना चाहता था। इसलिए उसने प्रतिज्ञा की कि जब तक वह अपनी सेना के साथ बूंदी के किले में प्रवेश नहीं कर लेगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगा।

(iii) हाड़ा वंश के राजा राव हेमू थे। हाड़ा लोग अत्यंत वीर थे। वे युद्ध करने में यम से भी नहीं डरते थे। वे वीरता में मेवाड़ की सेना से किसी प्रकार कम नहीं थे। यद्यपि शक्ति और साधनों में वे मेवाड़ के उन्नत राज्य से छोटे थे, परंतु ऐसा होने पर भी उनकी शक्ति एवं सामर्थ्य को किसी भी प्रकार कम नहीं आँका जा सकता। हाड़ा लोग अपनी मातृभूमि का अपमान कभी नहीं सह सकते थे। बूंदी के हाड़ा सुख-दुख में मेवाड़ के साथ रहते थे।

(iv) ‘प्राण जाएँ पर वचन न जाएँ’ कहावत का अर्थ है कि अपने वचन या अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा में दृढ रहना तथा उसे पूरा करने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करना है। ‘मातृभूमि का मान’ शीर्षक एकांकी में मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा ने भी इसी प्रकार की एक प्रतिज्ञा की थी जिसके अनुसार वे जब तक बूंदी के दुर्ग में अपनी सेना के साथ प्रवेश नहीं कर लेंगे तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगे। अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए वे अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करेंगे।

 

प्रश्न 16. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“मेरी आकाँक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ फले-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के स्पर्श से झूमें और सरसराएँ। विटप से अलग होने वाली डाली की कल्पना ही मुझे सिहरा देती है।”

[सूखी डाली – उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’]

(i) उपर्युक्त कथन कौन, किससे किस संदर्भ में कह रहा है ? 

(ii) सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने से क्या आशय है ? ‘डालियाँ’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ? 

(iii) किसकी आकांक्षा है कि सब खुशहाल रहें और क्यों ? इस एकांकी से आपको क्या शिक्षा मिलती है ? 

(iv) प्रस्तुत कथन से वक्ता की किस चारित्रिक विशेषता का पता चलता है ? अपने विचार भी प्रस्तुत कीजिये। 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन दादा कर्मचंद अपनी पोती इंदु से तब कह रहा है जब उसे पता चला कि छोटी बहू बेला का मन परिवार में नहीं लग रहा है। दादा कर्मचंद ने परिवार के सभी सदस्यों को एक विशेष अभिप्राय से बुलाया है। वे चाहते हैं कि कोई इस कुटुंब से अलग न हो। वे इंदु और मँझली बहू से कहते हैं कि उन्हें बेला की कभी हँसी नहीं उड़ानी चाहिए। उससे कभी लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए बल्कि उसका सम्मान करना चाहिए।

(ii) सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने का आशय है – परिवार के सभी सदस्य प्रेम और स्नेह से मिल-जुल कर एक साथ रहें, किसी से लड़े-झगड़े नहीं बल्कि मेल-जोल से रहें और एक-दूसरे का आदर करें। ‘डालियाँ’ शब्द परिवार के सदस्यों के लिए प्रयुक्त हुआ है। यदि परिवार में सब लोग मिल-जुल कर रहेंगे, एक-दूसरे का सम्मान करेंगे तो परिवार का कोई सदस्य कभी परिवार से अलग होने की नहीं सोचेगा।

(iii) दादा कर्मचंद की इच्छा है कि उसके परिवार के सभी सदस्य सुख-शांति, मेल-जोल तथा स्नेह-सम्मान से रहें। सभी हर प्रकार से खुशहाल हों और उन्हें परिवार के किसी सदस्य से किसी प्रकार की कोई शिकायत न हो। इस एकांकी से शिक्षा मिलती है कि संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों को पारस्परिक स्नेह, सम्मान तथा आपसी मेलजोल से रहना चाहिए। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए तथा कभी ऐसी स्थिति नहीं आने देनी चाहिए जिससे संयुक्त परिवार के बिखरने का खतरा हो । संयुक्त परिवार एक महान वृक्ष की तरह होता है जिसकी डालियाँ कभी अलग होने की बात नहीं सोचतीं।

(iv) उपर्युक्त कथन ‘सूखी डाली’ शीर्षक एकांकी के प्रमुख पात्र दादा कर्मचंद का है। वे परिवार के मुखिया हैं। उन्होंने बड़ी सूझ-बूझ एवं बुद्धिमानी से अपने परिवार को एक वट वृक्ष की भाँति एकता के सूत्र में बाँध रखा है, जब उन्हें पता चलता है कि छोटी बहू बेला के कारण परिवार में अशांति का वातावरण होने लगा है, तो उन्होंने घर के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाया और कहा कि बेला को सभी के द्वारा उचित आदर-सम्मान मिलना चाहिए। दादा जी कभी नहीं चाहते कि कोई परिवार से अलग हो जाए। यही नहीं वे चेतावनी भी देते हैं कि यदि मैंने सुन लिया कि किसी ने बेला की हँसी उड़ाई है, किसी ने बहू का निरादर किया है तो इस घर से मेरा नाता सदा के लिए टूट जाएगा। दादा जी की इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा और परिवार टूटने से बच गया।

HINDI CLASS 10TH QUESTION PAPER 2018 (ICSE)

HINDI

SECTION – A

प्रश्न 1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :

(i) ‘परोपकार की भावना लोक-कल्याण से पूर्ण होती है।’ हमें भी परोपकार से भरा जीवन ही जीना चाहिए। विषय को स्पष्ट करते हुए अपने विचार लिखिए।

(ii) “आजकल देश में आवासीय विद्यालयों (Boarding Schools) की बाढ़ सी आ गई है। आवासीय विद्यालयों की छात्रों के जीवन में क्या उपयोगिता हो सकती है ?” – इस प्रकार के विद्यालयों की अच्छाइयों एवं बुराइयों के बारे में बताते हुए वर्तमान में इनकी आवश्यकता पर अपने विचार लिखिए।

(iii) संयुक्त परिवार के किसी ऐसे उत्सव के आनंद का विस्तार से वर्णन कीजिए, जहाँ आपके परिवार के बच्चे-बुजुर्ग सभी उपस्थित थे।

(iv) एक ऐसी मौलिक कहानी लिखिए जिसके अंत में यह वाक्य लिखा गया हो-‘अंततः मैं अपनी – योजना में सफल हो सका/हो सकी।’

(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र में होना चाहिए।

ICSE Hindi Question Paper 2018 Solved for Class 10 1

उत्तर :

(i) ‘परोपकार की भावना लोक-कल्याण से पूर्ण होती है। हमें भी परोपकार भरा जीवन ही जीना चाहिए। विषय को स्पष्ट करते हुए अपने विचार लिखिए। परोपकार अथवा परमार्थ या लोक कल्याण की भावना हमारी संस्कृति का अटूट अंग है। हमारे देश के अतीत को देखा जाए तो असंख्य ऐसे परोपकारी महापुरुष मिल जाएँगे जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पित करके परोपकार को महत्त्व दिया। परोपकार और परहित दो-दो शब्दों से मिलकर बने हैं – पर + उपकार, पर + हित । इन दोनों का आशय हैदूसरों का उपकार या हित करना। प्राचीन काल से ही मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ कार्य कर रही हैंस्वार्थ की तथा परमार्थ की। परमार्थ की भावना से किया गया कार्य ही परोपकार के अंतर्गत आता है।

जब व्यक्ति ‘स्व’ की परिधि से निकलकर ‘पर’ की परिधि में प्रवेश करता है, तो उसके इस कृत्य को परोपकार कहा जाता है। संस्कृत में कहा गया है कि फल आने पर वृक्षों की डालियाँ झुक जाती हैं, जिसका आशय है कि फल आने पर वृक्ष अपने फल संसार की सेवा के लिए अर्पित कर देते हैं। प्रकृति का कण-कण परोपकार में लगा हुआ है। नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते, सूर्य स्वयं तपकर दूसरों को प्रकाश तथा ऊष्मा देता है। रहीम ने ठीक ही कहा है

‘वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर

परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर।’

महापुरुषों का जीवन परोपकार के लिए होता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवान भी पृथ्वीवासियों का कल्याण करने के लिए धरती पर अवतीर्ण होते हैं । कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है- ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।’ महर्षि दधीचि ने स्वेच्छा से अपनी अस्थियाँ असुरों के विनाश के लिए दे दी। आधुनिक युग में ईसा मसीह ने मानव मात्र के कल्याण के लिए सूली पर चढ़ना स्वीकार कर लिया। महात्मा गांधी ने अपना सारा जीवन परोपकार में लगा दिया।

मदर टेरेसा ने परोपकार को ही अपना जीवन-लक्ष्य बना लिया। पशु केवल अपने लिए जीता है, पर मनुष्य दूसरों के लिए भी जीता है, इसलिए वह पशु से भिन्न है। यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही चरे, मनुष्य है वहीं कि जो मनुष्य के लिए मरे।’ संसार के सभी विचारकों ने मानवता की सेवा को मनुष्य का परम धर्म स्वीकार किया है। आज का मानव स्वार्थ की भावना से युक्त है। वह पशु-तुल्य जीवन व्यतीत कर रहा है। वह येन-केन प्रकारेण अधिकाधिक धन कमाकर अधिक-से-अधिक सुख एवं ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहता है।

अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने में भी पीछे नहीं हटता। स्वार्थ की इसी प्रवृत्ति के कारण आज चारों ओर ईर्ष्या, वैमनस्य, कटुता, अशांति आदि का बोलबाला हो गया है। हमारा कर्तव्य है कि हम परोपकारी बनें तथा दूसरों को भी सुखी बनाने की चेष्टा करें। हमें भारतीय संस्कृति के इस आदर्श को ध्यान में रखना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि हमारे पूर्वजों ने परोपकार के लिए अपना तन, मन, धन न्योछावर करने की परिपाटी निभाने में कभी कोई कसर नहीं उठा रखी थी।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :

(i) आप अपने विद्यालय के सफाई अभियान दल’ के नेता हैं। एक योजना के अंतर्गत आप छात्रों के एक दल को किसी इलाके में सफाई के प्रति जागरूक करने हेतु ले जाना चाहते हैं। अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य प्रधानाचार्या जी को इसके लिए स्वीकृति हेतु पत्र लिखिए।

(ii) पिछले महीने कुछ प्रयासों द्वारा आपके विद्यालय के छात्रों ने कुछ धनराशि एकत्रित करके मूक-बधिर (deaf and dumb) विद्यालय के विद्यार्थियों की सहायता की थी। इसका वर्णन करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए और बताइए कि हमें समाज के विकलांग लोगों के प्रति कैसा व्यवहार रखना चाहिए व उनकी सहायता के लिए किस प्रकार के प्रयास करने चाहिए।

उत्तर :

(i) सेवा में

प्रधानाचार्य महोदय,

……. उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,

……. नगर।

मान्य महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं कक्षा दसवीं ‘अ’ का छात्र हूँ और विद्यालय के ‘सफाई अभियान दल’ का नेता हूँ। गत सप्ताह नगर के स्वच्छता स्वयं सेवक संघ के सचिव ने हमारे समक्ष प्रस्ताव रखकर तीर्थाटन बस्ती में सफाई अभियान चलाने की प्रेरणा दी। वे हमारे सेवा दल को प्रोत्साहित करने के लिए अपना तीस सदस्यों का दल तथा अल्पाहार की सामग्री भेजेंगे।

मेरी आपसे प्रार्थना है कि हमारे विद्यालय के ‘सफाई अभियान दल’ के एक सौ छात्रों को इस अभियान में शामिल होने की अनुमति प्रदान की जाए। अति धन्यवादी होऊँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,

क.ख. ग.

कक्षा दसवीं ‘अ’

दिनांक – 6 जुलाई, 20…..

(ii) परीक्षा भवन

………… नगर।

20 जनवरी, 20….।

प्रिय मित्र सुकेत,

नमस्कार।

मैं यह पत्र एक विशेष उद्देश्य से लिख रहा हूँ। गत मास हमारे विद्यालय के कुछ छात्रों ने विशेष प्रयास करके चंदे के रूप में तेरह हज़ार रुपए की धनराशि एकत्र की थी। स्वयं सेवक छात्रों के इस प्रयास को प्रधानाचार्य महोदय ने विशेष रूप में पसंद किया और इसे जनहित कार्य में लगाने की प्रेरणा दी। जब हमारी समिति के सदस्यों की बैठक हुई तो सभी ने एकमत होकर नगर के मूक-बधिर विद्यालय के विद्यार्थियों की सहायता में उक्त धनराशि लगाने का निर्णय लिया। सात सदस्यों का एक दल गठित किया गया जो हमारे सामाजिक विज्ञान के अध्यापक के साथ जाकर उक्त धनराशि को सुपात्र विकलांग विद्यार्थियों में बाँटेगा।

मित्र, मुझे मूक-बधिर विद्यालय में जाकर ऐसा अनुभव हुआ कि हम समर्थ व स्वस्थ लोगों को उस समाज की अवश्य सहायता करनी चाहिए जो शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग है। अब हमने निर्णय लिया है कि अपनी-अपनी कक्षा में एक दान-पात्र रखा जाएगा जिस में एकत्र राशि ऐसे ही लोगों पर खर्च होगी। मेरा प्रस्ताव है कि आपको भी अपने नगर में ऐसा प्रयास करना चाहिए।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,

क. ख. ग.

प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए :

सूर्य अस्त हो रहा था। पक्षी चहचहाते हुए अपने नीड़ की ओर जा रहे थे। गाँव की कुछ स्त्रियाँ अपने घड़े लेकर कुएँ पर जा पहुँची। पानी भरकर कुछ स्त्रियाँ तो अपने घरों को लौट गई, परंतु चार स्त्रियाँ कुएँ की पक्की जगत पर ही बैठकर आपस में बातचीत करने लगीं। तरह-तरह की बातचीत करते-करते बात बेटों पर जा पहुँची। उनमें से एक की उम्र सबसे बड़ी लग रही थी। वह कहने लगी-“भगवान सबको मेरे जैसा ही बेटा दे। वह लाखों में एक है। उसका कंठ बहुत मधुर है। उसके गीत को सुनकर कोयल और मैना भी चुप हो जाती है। सच में मेरा बेटा तो अनमोल हीरा है।”

उसकी बात सुनकर दूसरी अपने बेटे की प्रशंसा करते हुए बोली-“बहन मैं तो समझती हूँ कि मेरे बेटे की बराबरी कोई नहीं कर सकता। वह बहुत ही शक्तिशाली और बहादुर है। वह बड़े-बड़े पहलवानों को भी पछाड़ देता है। वह आधुनिक युग का भीम है। मैं तो भगवान से कहती हूँ कि वह मेरे जैसा बेटा सबको दे।” दोनों स्त्रियों की बात सुनकर तीसरी भला क्यों चुप रहती ? वह भी अपने को रोक न सकी। वह बोल उठी”मेरा बेटा साक्षात् बृहस्पति का अवतार है। वह जो कुछ पढ़ता है, एकदम याद कर लेता है। ऐसा लगता है बहन, मानों उसके कंठ में सरस्वती का वास हो।”

तीनों की बात सुनकर चौथी स्त्री चुपचाप बैठी रही। उसका भी एक बेटा था। परंतु उसने अपने बेटे के बारे में कुछ नहीं कहा। जब पहली स्त्री ने उसे टोकते हुए पूछा कि उसके बेटे में क्या गुण है, तब चौथी स्त्री ने सहज भाव से कहा”मेरा बेटा ना गंधर्व-सा गायक है, न भीम-सा बलवान और न ही बृहस्पति-सा बुद्धिमान।” यह कह कर वह शांत बैठ गई। कुछ देर बाद जब वे घड़े सिर पर रखकर लौटने लगीं, तभी किसी के गीत का मधुर स्वर सुनाई पड़ा, गीत सुनकर सभी स्त्रियाँ ठिठक गईं। पहली स्त्री शीघ्र ही बोल उठी-“मेरा हीरा गा रहा है। तुम लोगों ने सुना, उसका कंठ कितना मधुर है।” तीनों स्त्रियाँ बड़े ध्यान से उसे देखने लगी। वह गीत गाता हुआ उसी रास्ते से निकल गया।

उसने अपनी माँ की तरफ ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद दूसरी का बेटा दिखाई दिया। दूसरी स्त्री ने बड़े गर्व से कहा, “देखो मेरा बलवान बेटा आ रहा है। वह बातें कर ही रही थी कि उसका बेटा भी उसकी ओर ध्यान दिए बगैर निकल गया।” तभी तीसरी स्त्री का बेटा उधर से संस्कृत के श्लोकों का पाठ करता हुआ निकला। तीसरी ने बड़े गद्गद् स्वर में कहा “देखो, मेरे बेटे के कंठ में सरस्वती का वास है। वह भी माँ की ओर देखे बिना आगे बढ़ गया। वह अभी थोड़ी दूर गया होगा कि चौथी स्त्री का बेटा भी अचानक उधर से आ निकला।

वह देखने में बहुत सीधा-सादा और सरल प्रकृति का लग रहा था। उसे देखकर चौथी स्त्री ने कहा, “बहन, यही मेरा बेटा है।” तभी उसका बेटा पास आ पहुँचा। अपनी माँ को देखकर रुक गया और बोला, “माँ लाओ मैं तुम्हारा घड़ा पहुँचा दूँ। माँ ने मना किया, फिर भी उसने माँ के सिर से पानी का घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। तीनों स्त्रियाँ बड़े ही आश्चर्य से देखती रहीं। एक वृद्ध महिला बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थी। वह उनके पास आकर बोली, “देखती क्या हो? यही सच्चा हीरा है।”

(i) पहली तथा दूसरी स्त्री ने अपने-अपने बेटे के विषय में क्या कहा? 

(ii) तीसरी स्त्री ने अपने बेटे को ‘बृहस्पति का अवतार’ क्यों कहा? 

(iii) पहली स्त्री द्वारा पूछे जाने पर चौथी स्त्री ने क्या कहा? 

(iv) चौथी स्त्री के बेटे ने अपनी माँ के साथ कैसा व्यवहार किया, यह देखकर तीनों स्त्रियों को कैसा लगा? 

(v) बच्चों को अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ? समझाइए। 

उत्तर :

(i) पहली स्त्री ने अपने बेटे की प्रशंसा करते हुए उसे मधुर गायक बताया। दूसरी स्त्री ने अपने पुत्र को शक्तिशाली योद्धा बताया जो बड़े-बड़े पहलवानों को हरा देता है।

(ii) तीसरी स्त्री ने अपने पुत्र को बृहस्पति का अवतार बताया क्योंकि उसे पढ़ते ही सब कुछ कंठस्थ हो जाता था। जैसे उसके गले में सरस्वती का निवास हो।

(iii) पहली स्त्री द्वारा पूछे जाने पर चौथी स्त्री ने कहा कि उसके बेटे में उक्त तीनों स्त्रियों के पुत्रों जैसा कोई भी गुण नहीं है।

(iv) चौथी स्त्री के बेटे ने अपनी माँ का सिर पर धरा पानी का घड़ा ले लिया ताकि उसे घर पहुँचाने में सहायता कर सके। यह सहयोग व सम्मान देखकर तीनों स्त्रियों को आश्चर्य हुआ।

(v) बच्चों को अपने माता-पिता की हर संभव सहायता करनी चाहिए। छोटे से छोटे काम में दिया गया सहयोग माता-पिता को प्रसन्न करता है। यह ऐसी भक्ति है जिसका फल सदैव अनुकूल तथा सकारात्मक होगा।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए :

(i) निम्नलिखित शब्दों में से दो शब्दों के विलोम लिखिए : कीर्ति, निर्मल, विजय, निर्दोष ।

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए : धनवान, किनारा, दूध।

(ii) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए : अपेक्षा, गुण।

(iv) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए : प्रदर्षनी, लच्छमी, अपरीचीत।

(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए : आसमान से बातें करना, उड़ती चिड़िया पहचानना।

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :

(a) मोहन और रमेश सच्चे मित्र थे। ‘ (‘मित्रता’ शब्द का प्रयोग कीजिए।)

(b) मुझसे कोई भी बात कहने में संकोच न करें। (रेखांकित के लिए एक शब्द का प्रयोग करते हुए वाक्य को पुनः लिखिए।)

(c) शिक्षक ने अपने शिष्य को आदेश दिया। (वचन बदलिए।)

उत्तर :

(i) कीर्ति – अपकीर्ति

निर्मल – मैला

विजय – पराजय

निर्दोष – दोषपूर्ण

(ii) धनवान – धनी, धनपति

किनारा – कूल, तट

दूध – पय, क्षीर

(iii) अपेक्षा – अपेक्षित

गुण – गुणी/गुणज्ञ

(iv) प्रदर्शिनी, लक्ष्मी, अपरिचित

(v) आसमान से बातें करना- महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक आसमान से बातें करता था। उड़ती चिड़िया पहचानना – सुधीर इतना कुशाग्रबुद्धि है कि उड़ती चिड़िया को पहचान लेता है।

(vi) (a) मोहन और रमेश में सच्ची मित्रता थी।

(b) मुझसे कोई भी बात निस्संकोच करें।

(c) शिक्षकों ने अपने शिष्यों को आदेश 

SECTION – B

साहित्य सागर – संक्षिप्त कहानियाँ

प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

आनंदी की त्यौरी चढ़ गई। झुंझलाहट के मारे बदन में ज्वाला-सी दहक उठी। बोली, “जिसने तुमसे यह आग लगाई है, उसे पाऊँ तो मुँह झुलस दूं।”

                                                                           [‘बड़े घर की बेटी’ – प्रेमचंद] 

(i) आनंदी की त्यौरी क्यों चढ़ी हुई थी ? वह किसका इंतजार कर रही थी ? 

(ii) श्रीकंठ सिंह ने आनंदी से क्या जानना चाहा ? 

(iii) इससे पहले लालबिहारी और बेनीमाधव सिंह श्रीकंठ सिंह से क्या कह चुके थे ? 

(iv) आनंदी से घटना का हाल जानकर श्रीकंठ सिंह को कैसा लगा? उन्होंने अपने पिता से क्या कहा? 

उत्तर :

(i) आनंदी का अपने देवर लालबिहारी के साथ विवाद हो गया था। इसी कारण उसकी त्यौरी चढ़ी हुई थी। वह अपने पति श्रीकंठ सिंह का इंतजार कर रही थी।

(ii) श्रीकंठ सिंह ने अपनी पत्नी आनंदी से जानना चाहा था कि घर में मचे उपद्रव का वास्तविक कारण क्या था ?

(iii) इससे पहले बेनीमाधव सिंह ने लालबिहारी की ओर से साक्षी देते हुए कहा कि बहू-बेटियों का यह स्वभाव अच्छा नहीं कि वे पुरुषों के मुँह लगें। लालबिहारी का तर्क था कि आनंदी अपने मायके का रौब झाड़ती रहती है।

(iv) आनंदी से घटना की जानकारी लेकर श्रीकंठ सिंह को बहुत बुरा लगा और वह अलग घर बसाने का निर्णय लेकर अपने पिता से कहने लगा कि उसका इस संयुक्त परिवार में निर्वाह नहीं होगा।

प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“रात को बड़े जोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरियट के लॉन में जामुन का पेड़ गिरा। सुबह को जब माली ने देखा, तो उसे पता चला कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।”

                                                             [“जामुन का पेड़’ – कृष्ण चंदर] 

(i) माली ने यह देखकर क्या किया और क्यों ? 

(ii) पहले दूसरे और तीसरे क्लर्क ने क्या कहा ? क्या तीसरे क्लर्क को उस दबे हुए आदमी से सहानुभूति थी? 

(iii) माली ने क्या सुझाव दिया ? मोटे चपरासी की बात सुनकर माली क्या बोला ? 

(iv) कहानी के अंत में क्या हुआ था ? देर से मिलने वाला न्याय महत्त्वहीन होता है कैसे? 

उत्तर :

(i) माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी को देखा तो वह दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी क्लर्क के पास और क्लर्क सुपरिटेंडेंट के पास गया।

(ii) पहले क्लर्क ने जामुन के फलदार पेड़ की प्रशंसा की, दूसरे ने उसकी रसीली जामुनों की प्रशंसा की तो तीसरे ने कहा कि फलों के मौसम में वह जामुनें ले जाता था जिन्हें उसके बच्चे चाव से खाते थे।

(iii) माली ने सुझाव दिया कि पेड़ को हटाकर उसके नीचे दबे व्यक्ति को जल्दी से निकाल लेना चाहिए। यह सुनकर एक सुस्त कामचोर और मोटा चपरासी बोला कि पेड़ का तना बहुत मोटा और वज़नी है।

(iv) कहानी के अंत में कागजी कार्यवाही पूरी होते ही कवि के जीवन की फाइल भी पूर्ण हो जाती है। – इससे सिद्ध होता है कि व्यवस्था की प्रक्रिया मानववादी न होकर कठोर व मानवविरोधी सिद्ध होती है। व्यावहारिक उपचार न किए जाने से प्रक्रिया की प्रविधि ने एक मानव का अंत कर डाला।

प्रश्न 7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“पर, ‘सब दिन होत न एक समान’ अकस्मात् दिन फिरे और सेठ को गरीबी का मुँह देखना पड़ा। संगीसाथियों ने भी मुँह फेर लिया और नौबत यहाँ तक आ गई कि सेठ व सेठानी भूखे मरने लगे।”

                                                                          [महायज्ञ का पुरस्कार – यशपाल]

(i) अकस्मात् बुरा समय किसका आ गया था तथा बुरा समय आने से पहले उसकी दशा कैसी थी? 

(ii) अपना बुरा समय दूर करने के लिए सेठ ने क्या उपाय सोचा ? इस उपाय के लिए उन्हें किसके पास जाना पड़ा? 

(iii) सेठ के मार्ग में कौन-सा महायज्ञ किया था। क्या वह वास्तव में महायज्ञ था। समझाकर लिखिए। 

(iv) कहानी का उद्देश्य लिखिए। 

उत्तर:

(i) धनी सेठ का बुरा समय आ गया था। इससे पहले उसकी दशा अति विनम्र, उदार और धर्मपरायण दानी सेठ की थी। उसके द्वार से कोई खाली न जाता था। वह यज्ञ करवाया करता था।

(ii) अपनी बुरी दशा दूर करने के लिए सेठ ने एक यज्ञ बेचने का उपाय सोचा। उसने कुंदनपुर की सेठानी के पास जाकर एक यज्ञ बेचने का निर्णय किया।

(iii) सेठ ने मार्ग में एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दी और स्वयं केवल जल से संतोष किया। कुत्ता रोटी की शक्ति पाकर समर्थ व स्वस्थ हो उठा। यही सेठ का महायज्ञ था क्योंकि इसमें सच्ची सेवा-भावना थी न कि अपने धनी होने का घमंड।

(iv) प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य दान और परोपकार के सच्चे स्वरूप से परिचित कराना है। यज्ञ कमाने की इच्छा से व धन-दौलत लुटाकर किए गए दान-यज्ञ आदि से पुण्य की प्राप्ति नहीं होती। निःस्वार्थ भाव से, अभिमान और अहं त्यागकर किया गया दान या यज्ञ ही वास्तव में सच्चा महायज्ञ है।

साहित्य सागर – पद्य भाग

प्रश्न 8. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग। गहरि, नदी, नारी जहाँ, वहाँ बचावै अंग।। वहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे। दुश्मन दावागीर, होयँ तिनहूँ को झारै।। कह ‘गिरिधर कविराय’ सुनो हो धूर के बाठी।। सब हथियार के छाँड़ि, हाथ महँ लीजै लाठी।।”

                                                                       [कुंडलियाँ – गिरिधर कविराय]

(i) इस कुंडली में किसकी उपयोगिता बताई गई है ? कवि ने किस समय मनुष्य को लाठी रखने का परामर्श दिया है? 

(ii) लाठी हमारे शरीर की सुरक्षा किस प्रकार करती है 

(iii) लाठी किन तीनों से निपटने में सहायक होती है और किस प्रकार? 

(iv) कवि सब हथियार छोड़कर लाठी लेने की बात क्यों कर रहे हैं? अपने विचार व्यक्त करते हुए कुंडलियाँ लेखन का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) प्रस्तुत कुंडली में कवि ने लाठी के गुणों तथा उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। कवि ने गहरी नदी, नाला आदि से सामना होने पर लाठी की उपयोगिता का वर्णन किया है। लाल

(ii) यदि कुत्ते या शत्रु से कभी भी सामना हो जाए और उस समय हमारे पास लाठी हो, तो किसी भी प्रकार की शारीरिक हानि नहीं हो सकती।

(iii) लाठी कुत्ते, दुश्मन और नदी नाले से निपटने में सहायक होती है। कुत्ते और दुश्मन को लाठी से भगाया जा सकता है। नदी-नाले की गहराई नापकर लाठी द्वारा उन्हें पार किया जा सकता है।

(iv) कवि लाठी को सब हथियारों से ऊपर मानते हैं। लाठी से गहरी नदी-नाले का सामना किया जा सकता है। इससे कुत्ते और दुश्मन को डरा या धमकाकर भगा सकते हैं। अतः यह हथियार सहज व कारगर सिद्ध होता है।

प्रश्न 9. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए। ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा। अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम, तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।”

                                               [भिक्षुक – सूर्यकान्त त्रिपाठी – “निराला’]

(i) पहली दो पंक्तियों में कवि ने क्या दृश्य प्रस्तुत किया है ? 

(ii) इस भावुक दृश्य से हमारे हृदय में क्या भाव उत्पन्न होते हैं ? 

(iii) क्या भिक्षुकों की मदद करना मानवीय धर्म नहीं है ? यहाँ अभिमन्यु का उदाहरण कवि ने क्यों दिया 

(iv) प्रस्तुत कविता का केंद्रीय भाव लिखिए। 

उत्तर:

(i) कवि ने प्रथम दो पंक्तियों में सड़क पर जूठी पत्तल चाट रहे लोगों तथा उनसे वे पत्तलें छीन लेने के प्रयास में सक्रिय कुत्तों का वर्णन किया है।

(ii) इन भावुक दृश्य से हमारे हृदय में करुणा व संवेदना के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके मूल में सामाजिक विषमता का वर्णन हुआ है।

(iii) भिक्षुकों की सहायता करना मानवीय धर्म हो सकता है यदि उन्हें सकारात्मक रोज़गार की ओर प्रेरित किया जाए। कवि ने भिक्षुक को प्रेरणा देते हुए अभिमन्यु की भाँति अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा की है।

(iv) प्रस्तुत कविता में कवि ने भिक्षुक की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए सामाजिक वर्ग-भेद की ओर संकेत किया है। कवि उस व्यवस्था को कोस रहे हैं जिसमें किसी भी सामाजिक को भीख माँगने जैसा घृणित व अपमानजनक कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 10. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“मैं पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता ही रहा प्रत्येक पग पर कुछ-न-कुछ रोड़ा अटकता ही रहा पर हो निराशा क्यों मुझे ? जीवन इसी का नाम है। चलना हमारा काम है।”

                                                             [चलना हमारा काम है – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’]

(i) कवि ने मनुष्य के जीवन के बारे में क्या कहा है तथा क्यों ? 

(ii) कवि के अनुसार जीवन का महत्त्व किसमें है ? स्पष्ट कीजिए। 

(iii) जीवन में सुख-दुख और आशा-निराशा के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए ? अपने दुखों और निराशा के लिए हमें किसको दोष देना उचित नहीं है तथा क्यों ? समझाकर लिखिए। 

(iv) प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने पाठकों को क्या संदेश दिया है ? 

उत्तर :

(i) कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने जीवन को अपूर्ण कहा है। जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। कभी कुछ मिल जाता है तो कभी कुछ खो जाता है। आशा-निराशा निरंतर सक्रिय रहती है। ऐसा जीवन पूर्ण नहीं कहा जा सकता।

(ii) कवि के अनुसार जीवन का महत्त्व पथ में आने वाली बाधाओं के बावजूद निरंतर अग्रसर होने में है। बाधाओं से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि इन बाधाओं को पार करना ही तो जीवन है।

(iii) कवि के अनुसार आशा-निराशा एवं सुख-दुख जीवन के अनिवार्य अंग है। अपने दुखों और निराशा के लिए विधाता को दोष देना उचित नहीं है क्योंकि दृढ़ता से अविचल भाव से पथ की बाधाओं या कठिनाइयों को दूर करना ही जीवन है।

(iv) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का मानना है कि जीवन के पथ पर अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आया करती हैं। अनेक साथी हमें बीच मार्ग छोड़कर चले जाते हैं। इन बातों से निराश नहीं होना चाहिए। जो राही अपने पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहेगा, उसी को सफलता प्राप्त होगी।

नया रास्ता – (सुषमा अग्रवाल)

प्रश्न 11. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

अमित मेज पर बैठा खाना खाने लगा। माँ भी उसके पास बैठ गईं। बैठे-बैठे वह न जाने किन विचारों में खो गईं और एकटक अमित की ओर ही देखती रहीं।

(i) माँ अमित की तरफ देखते हुए क्या सोच रही थी ? 

(ii) दीपक कौन है ? उन्हें किस बात का कार्ड मिला ? 

(iii) मधु के बारे में माँ ने अमित से क्या कहा ? 

(iv) माँ को घर में बहू की कमी क्यों अखरती थी ? 

उत्तर:

(i) अमित की माँ सोच रही थी कि दीपक अमित से दो वर्ष छोटा है। उसका विवाह हो रहा है। परंतु अमित उससे बड़ा होते हुए भी अभी तक शादी नहीं कर पाया था।

(ii) दीपक मधु का ममेरा भाई है। उन्हें उसकी शादी का कार्ड मिला है। शनिवार के दिन शादी और रविवार को प्रीतिभोज है।

(ii) माँ अमित से कहती है कि मधु भी अब विवाह के योग्य हो गई है। वह उसकी शादी तो करना चाहती है परंतु साथ ही यह चाहती है कि अमित की शादी पहले हो जाए क्योंकि वह मधु से सात वर्ष बड़ा है।

(iv) माँ का विचार था कि मधु के विवाह के सारे काम वह अकेले नहीं कर सकती। यदि घर में बहू हो तो काम सरल व सहज ढंग से हो जाएँगे।

प्रश्न 12. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :”दूसरे ही क्षण मीनू उसके सामने आ गई और खुशी से उसके हाथ चूम लिये। अरे मीनू, आज तो बहुत प्रसन्न दिखाई दे रही हो। क्या बात है ? नीलिमा ने पूछा”

(i) मीनू कौन है ? उसकी प्रसन्नता का कारण क्या है ? 

(ii) ‘उसके’ सर्वनाम का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(iii) मीनू के चेहरे पर किस बात को सोचकर उदासी छा जाती है ? मीनू की उदासी कब और किस प्रकार दूर होती है ? समझाकर लिखिए। 

(iv) प्रस्तुत उपन्यास का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) मीनू और नीलिमा दोनों सहेलियाँ हैं। मीनू दयाराम की बड़ी पुत्री है। वह रोहित तथा आशा की बड़ी बहन है। उसकी प्रसन्नता का कारण यह है कि उसका फोटो मेरठ वालों ने पसंद कर लिया है।

(ii) ‘उसके’ सर्वनाम का प्रयोग नीलिमा के लिए किया गया है। वह मीनू की सखी है और उससे कहीं अधिक सुंदर है।

(iii) मीनू के चेहरे पर उदासी छा जाती है क्योंकि उसको कई लड़कों ने विवाह के प्रसंग में देखा था परंतु किसी ने भी उसे पसंद नहीं किया था क्योंकि वह अधिक सुंदर नहीं है। मीनू की उदासी दूर हो जाती है जब उसे पता चलता है कि वह प्रथम श्रेणी में और नीलिमा द्वितीय श्रेणी में पास हुई है।

(iv) प्रस्तुत उपन्यास में दिखाया गया है कि समाज में सफलता के लिए साहस की आवश्यकता है। आज समय आ चुका है कि सभी युवतियाँ साहस व धैर्य से काम लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करें और दहेज की महामारी का उन्मूलन करें ताकि किसी को आत्म हत्या न करनी पड़े।

प्रश्न 13. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“परंतु तुम ये तो सोचो कि आजकल शादी के बाद ही दावत दी जाती है। यदि हम प्रीतिभोज नहीं देंगे तो दुनिया वाले क्या कहेंगे और फिर बड़े घर की लकड़ी आ रही है। दावत नहीं देंगे तो सब लोग बात बनाएंगे।”

(i) उपर्युक्त कथन किसने, किस अवसर पर कहा था ? 

(ii) ‘बड़े घर की लड़की’ किसको कहा गया है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(iii) उपर्युक्त कथन के विषय में अमित के क्या विचार हैं ? वह इस शादी से सहमत क्यों नहीं है ? धनीमल जी ने शादी के प्रस्ताव के साथ क्या लालच दिया था ? 

(iv) आजकल के मध्यमवर्गीय परिवारों में विवाह आदि रीति-रिवाज़ों के अवसर पर होने वाले फिजूलखर्चे पर अपने विचार लिखिए। 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन अमित के पिता मायाराम ने अपनी पत्नी से कहा था। यह कथन अमित के विवाह की तैयारियों के प्रसंग में कहा गया है।

(ii) ‘बड़े घर की लड़की’ सरिता को कहा गया है। वह अमित की मंगेतर है और धनीमल की पुत्री है। धनी पिता की पुत्री होने के कारण उसकी घर के काम-काज में कोई विशेष रुचि नहीं है। उसका विचार है कि वह शादी के बाद उसके पिता उसके साथ एक नौकर भेज देंगे, जो घर का काम करेगा।

(iii) अमित के विचार शादी के संदर्भ में दिखावे का विरोध करते हैं। उपर्युक्त वार्तालाप सुनकर उसके हृदय में तूफ़ान आ जाता है। वह सरिता के पिता की ललचाने वाली प्रवृत्ति से भी नाराज़ है क्योंकि वह अलग फ़्लैट देकर सरिता को सास-ससुर से अलग रखने का षड्यंत्र करना चाहता है।

(iv) मेरे विचार में विवाह के अवसर पर हर प्रकार की फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए। रीति-रिवाज़ों व परंपराओं के नाम पर ठगे जाना बुद्धिमानी नहीं है। विवाहों पर किए गए खर्च व लिए गए अपार ऋण बाद के जीवन को नरक बना देते हैं। सादा विवाह वर व वधू दोनों के लिए उचित है। दहेज का कलंक तो जड़ समेंत उखाड़ना होगा, तभी स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा।

एकांकी संचय

(Ekanki Sanchay)

प्रश्न 14. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“काश कि मैं निर्मम हो सकती, काश कि मैं संस्कारों की दासता से मुक्त हो सकती ! हो पाती तो कुल, धर्म और जाति का भूत मुझे संग न करता और मैं अपने बेटे से न बिछुड़ती।”

                                                                            [संस्कार और भावना – विष्णु प्रभाकर]

(i) वक्ता कौन है ? यह वाक्य वह किसे कह रही है ? 

(ii) ‘संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’ यह कथन एकांकी में किसका है ? उसने ऐसा क्यों कहा ? 

(iii) संस्कारों की दासता के कारण वक्ता को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? 

(iv) प्रस्तुत एकांकी द्वारा एकांकीकार ने क्या संदेश दिया है ? 

उत्तर :

(i) वक्ता ‘संस्कार और भावना’ शीर्षक एकांकी की पात्र माँ है। वह उक्त वाक्य अपने छोटे पुत्र अतुल की पत्नी उमा से कह रही है।

(ii) ‘संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’-यह वाक्य माँ के सबसे बड़े बेटे ने कहा था जिसे इस समय माँ स्मरण कर रही है। उसने ऐसा इसलिए कहा था कि उसकी माँ अपनी बड़ी बहू के विषय में अच्छा नहीं सोचती थी।

(iii) संस्कारों की दासता के कारण माँ अपने बड़े पुत्र अविनाश तथा उसकी पत्नी से बिछुड़ जाती है। उसे इस बात का गहरा दुख था कि अविनाश ने एक विजातीय बंगाली लड़की से विवाह किया था।

(iv) प्रस्तुत एकांकी द्वारा लेखक ने बताना चाहा है कि जाति, धर्म, क्षेत्रीयता आदि मानव विरोधी नहीं हो सकते हम संस्कारों के नाम पर अपनी संतान से दूर नहीं हो सकते।

प्रश्न 15. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“जानता हूँ युधिष्ठिर ! भली भाँति जानता हूँ। किन्तु सोच लो, मैं थककर चूर हो गया हूँ, मेरी सभी सेना तितर-बितर हो गई है, मेरा कवच फट गया है, मेरे शास्त्रास्त्र चुक गए हैं। मुझे समय दो युधिष्ठिर! क्या भूल गए मैंने तुम्हें तेरह वर्ष का समय दिया था ?”

                                                                        [महाभारत की एक साँझ – भारत भूषण अग्रवाल]

(i) वक्ता कौन है ? वह क्या जानता था ? 

(ii) वक्ता इस समय असहाय क्यों हो गया था ? क्या वह वास्तव में असहाय था ?

(iii) श्रोता कौन है ? श्रोता को तेरह वर्ष का समय कैसे दिया था ? इस कथन को आप कितना सही – मानते हैं ? 

(iv) वक्ता ने जो समय दिया था उसका उद्देश्य क्या था ? क्या वह अपने उद्देश्य में सफल हो सका? स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) प्रस्तुत संवाद का वक्ता दुर्योधन है। वह जानता था कि उसने कालाग्नि को वर्षों घी देकर उभारा है और उसकी लपटों में सभी साथी स्वाहा हो गए।

(ii) वक्ता दुर्योधन वास्तव में असहाय हो गया था क्योंकि इतने लंबे युद्ध ने उसे निराशा और अवसाद के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया था। 

(iii) श्रोता युधिष्ठिर है। उसे तेरह वर्ष का वनवास दिया गया था। दुर्योधन ने पांडवों को वनवास देकर उन्हें अपने मार्ग से हटाना चाहा था।

(iv) दुर्योधन ने जो वनवास का समय दिया था, वह पांडवों को क्षीण करने के लिए दिया था। वह सोचता था कि पांडव बिखर जाएँगे और उन पर विजय पाना सरल हो जाएगा। परंतु यह उसकी भूल थी।

प्रश्न 16. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :

“आज कुसमय नाच-रंग की बात सुनकर मेरे मन में शंका हुई थी। इसलिये मैंने कुँवर को वहाँ जाने से रोक दिया था। संभव था कि कुँवर वहाँ जाते और बनवीर अपने सहायकों से कोई काण्ड रच देता।”

                                                                                              [दीपदान – डॉ. रामकुमार वर्मा]

(i) उपर्युक्त कथन का वक्ता कौन है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(ii) नाच-रंग का आयोजन किसने और किस उद्देश्य से किया था ? 

(iii) बनवीर कौन है ? उसका परिचय देते हुए उसका चरित्र-चित्रण कीजिए। 

(iv) ‘दीपदान’ एकांकी के शीर्षक की सार्थकता बताइए तथा एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने क्या शिक्षा दी है ? 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन की वक्ता पन्ना है। वह कुँवर उदय सिंह का संरक्षण करने वाली धाय है। वह चंदन की माँ भी है जिसकी आयु अभी 30 वर्ष है।

(ii) नाच-रंग का आयोजन बनवीर ने करवाया था। वह महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र था। उसकी आयु लगभग 32 वर्ष थी। उसने नाच-रंग का आयोजन करवाया था ताकि कुँवर उदय सिंह की हत्या की जा सके।

(iii) बनवीर प्रस्तुत एकांकी का खलनायक है। वह महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी से उत्पन्न पुत्र था। वह क्रूर, अत्याचारी तथा दुष्ट था। वह महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करता है और राजसिंहासन पाने के लिए उदयसिंह के प्राण लेने की योजना बनाता है।

(iv) प्रस्तुत एकांकी में डॉ० रामकुमार वर्मा ने राजपूताने की वीरांगना पन्ना धाय में अभूतपूर्व बलिदान का चित्रण किया है। इस ऐतिहासिक एकांकी द्वारा राष्ट्र-भक्ति तथा राष्ट्र-प्रेम का चित्रण किया गया है। सच्चे देशभक्त पन्ना धाय की तरह अपने पुत्र की बलि चढ़ाकर भी देश के हित की रक्षा करते हैं।

HINDI CLASS 10TH QUESTION PAPER 2019 (ICSE)

हिन्दी

(Second Language)

भाग -A

प्रश्न.1 निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए –

(i) आपके विद्यालय में एक मेले का आयोजन किया गया था। यह किस अवसर पर, किस  उद्देश्य से किया गया था ? उसके लिए आपने क्या-क्या तैयारियाँ कीं ? आपने और आपके मित्रों ने एवम शिक्षकों ने उसमें क्या सहयोग दिया था ? इन बिन्दुओं को आधार बनाकर एक प्रस्ताव विस्तार से लिखिए। 

(ii) यात्रा एक उत्तम रुचि है। यात्रा करने से ज्ञान तो बढ़ता ही है, स्थान विशेष की संस्-ति तथा परंपराओं का परिचय भी मिलता है। अपनी किसी यात्रा के अनुभव तथा रोमांच का वर्णन करते हुए एक प्रस्ताव लिखिए। 

(iii) ‘वन है तो भविष्य है’ आज हम उसी भविष्य को नष्ट कर रहे हैं, कैसे ? कथन को स्पष्ट करते हुए जीवन में वनों के महत्व पर अपने विचार लिखिए। 

(iv) एक मौलिक कहानी लिखिए जिसका अन्त प्रस्तुत वाक्य से किया गया हो – और मैंने राहत की साँस लेते हुए सोचा कि आज मेरा मानव जीवन सफल हो गया। 

(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिये, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध, चित्र से होना चाहिये। 

उत्तर :

(i) मेरे विद्यालय में मेले का आयोजन

आज का युग विज्ञापन व प्रदर्शन का युग है। इस भौतिकवादी युग में नगरों तथा ग्रामों में तरह-तरह के मेलों का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे ही आयोजन विद्यालयों व महाविद्यालयों में किए जा रहे हैं। ऐसी ही कई प्रदर्शनियाँ हमारे नगर में भी लगती रहती हैं जिनका संबंध पुस्तकों, विज्ञान के उपकरणों, वस्त्रों आदि से होता है। मैं गत रविवार अपने विद्यालय में आयोजित ऐसे ही एक भव्य मेले में गया। मुझे बताया गया था कि वह प्रदर्शनी जैसे स्वरूप का मेला अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी है जिसमें देशविदेश की कई बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और निर्माता अपने उत्पादों को प्रदर्शित कर रहे हैं।

इसी बात को ध्यान में रखकर मैं अपने पिताजी के साथ उस ‘एपेक्स ट्रेड फेयर’ नामक त्रि-दिवसीय मेले में चला गया।। मेला सचमुच विशाल एवं भव्य था। विद्यालय के सभागार के अतिरिक्त बाहर के पंडालों में भी शामियाने के नीचे स्टाल लगे हुए थे। हम पहले हॉल में गए। वहाँ सबसे पहले मोबाइल कंपनियों के स्टाल थे। नोकिया, सैमसंग, एयरटेल, वोडाफ़ोन, पिंग, रिलायंस आदि मुख्य कंपनियाँ थीं। सभी ने छूट और पैकेज की सूचनाएं लगा रखी थीं। सेल्समैन आगंतुकों को लुभाने के लिए अपनी-अपनी बातें रख रहे थे।

आगे बढ़े तो इलेक्ट्रॉनिक का सामान दिखाई दिया जिसमें मुख्यतः माइक्रोवेव, एल.सी.डी., डी.वी.डी., कार स्टीरियो, कार टी.वी., ब्लैंडर, मिक्सर, ग्राईंडर, जूसर, वैक्यूम क्लीनर, इलैक्ट्रिक चिमनी, हेयर कटर, हेयर ड्रायर, गीजर, हीटर, कन्वैक्टर, एयर कंडीशनर आदि अनेकानेक उत्पादों से जुड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि अपना-अपना उत्पाद गर्व सहित प्रदर्शित कर रहे थे।

इन मेलों का मुख्य लाभ यही है कि हम इनमें प्रदर्शन (फ्री डैमो) की क्रिया भी देख सकते हैं कि कौन-सा उत्पाद कैसे संचालित होगा और उसका परिणाम क्या सामने आएगा। अगले स्टालों पर गृह-सज्जा का सामान प्रदर्शित किया गया था। उसमें पर्दो, कालीनों और फानूसों की अधिकता थी। हॉल से बाहर आए तो हमें सबसे पहले खाद्य-पदार्थों और पेय-पदार्थों के स्टॉल दिखाई दिए। इनमें नमकीन, भुजिया, बिस्कुट, चॉकलेट, पापड़ी, अचार, चटनी, जैम, कैंडी, स्क्वैश, रस, मुरब्बे, सवैया आदि से जुड़े तरह-तरह के ब्रांड प्रदर्शित किए गए थे। चखने के लिए कटोरों में नमकीन रखे गए थे। पेय-पदार्थों को भी चख कर देखा जा रहा था।

मेले के अगले चरण में वस्त्रों को दिखाया जा रहा था। इन स्टालों पर पुरुषों और स्त्रियों के वस्त्र प्रदर्शित किए गए थे। पोशाकों पर उनके नियत दाम भी लिखे गए थे। साड़ियों की तो भरमार थी। उसके आगे आभूषणों और साज-सज्जा (मेकअप) के सामान प्रदर्शित किए थे। इन उत्पादों में महिलाओं की अधिक रुचि होती है। यही कारण था कि इस कोने में स्त्रियां ही स्त्रियाँ दिखाई दे रही थीं।

इसके साथ ही हस्तशिल्प, हथकरघा और कुटीर उद्योगों द्वारा बना सामान दिखाया जा रहा था। हाथ के बने खिलौनों की खूब बिक्री हो रही थी। कुछ लोग हाथ से बुने थैले, स्वैटर और मैट खरीद रहे थे। सबके बाद मूर्तियों तथा तैल चित्रों को दिखाने का प्रबंध था। यह विलासिता का कोना था क्योंकि उनमें से कोई भी वस्तु पांच हजार रुपयों से कम मूल्य की नहीं थी। वहाँ इक्का-दुक्का लोग थे।

इस प्रकार हमने मेले में जाकर न केवल उत्पादों के दर्शन किए परंतु उनके उपयोग की विधियों की भी जानकारी ली। खरीद के नाम पर हमने दो लखनवी कुर्ते, एक थैला, दो प्रकार के आचार तथा एक छोटा-सा लकड़ी का खिलौना खरीदा। सचमुच इस प्रकार के मेले आज के विज्ञापन तथा प्रतिस्पर्धा के युग में विशेष महत्व रखते हैं। मेले के साथ-साथ हमारे विद्यालय का नाम भी सुर्खियों में आ गया।

 

प्रश्न.2 निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए –

(i) आप अपने परिवार के साथ किसी एक प्रदर्शनी (Exhibition) को देखने गए थे। वहाँ पर आपने क्या-क्या देखा ? वहाँ कौन-कौन सी चीजों ने आकर्षित किया ? जीवन में उनकी क्या उपयोगिता है ? अपना अनुभव बताते हुए अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखिये। 

(ii) दिन-प्रतिदिन बढ़ते हुए जल संकट की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए नगर-पालिका के अध्यक्ष को एक पत्र लिखिए जिसमें वर्षा के जल का संचयन (rain water harvesting)करने के लिए व्यापक स्तर पर परियोजना चलाने का सुझाव दिया गया हो।

उत्तर :

(i) परीक्षा भवन,

——– नगर।

दिनांक : 18.9.20…….

प्रिय मित्र सुमंत,

सप्रेम नमस्कार। आशा है तुम स्वस्थ एवं सानंद होंगे। आज मैं तुम्हें अपना ऐसा अनुभव बताने जा रहा हूँ जिसे मैंने अपने परिवार के साथ एक प्रदर्शनी में जाकर प्राप्त किया। मित्र! गत सप्ताह हमारे नगर में हस्तशिल्प की एक भव्य प्रदर्शनी आयोजित की गई। प्रदर्शनी पूरे सप्ताह चलने वाली थी, परंतु हम दूसरे ही दिन प्रदर्शनी देखने चले गए क्योंकि मुझे हस्तशिल्प के प्रति विशेष उत्साह था। मैं प्रदर्शनी में लोगों की कारीगरी देखकर दंग रह गया।

मैंने प्राचीन हस्तकला के ऐसे नमूने कभी नहीं देखे थे। सबसे बड़ा विस्मय इस बात पर हुआ कि ग्रामीण लोगों ने कूड़ा समझी जाने वाली तुच्छ वस्तुओं से सुंदर कालीन, पायदान, चित्र, पत्रिका-स्टैंड, फ्रेम, मेजपोश, टोकरियाँ, आसन-न जाने कितनी आकर्षक वस्तुएँ बना डाली थीं। शहतूत और बाँस की टहनियों से बनी वस्तुओं का तो रूप ही निराला था। वस्त्रों में रेशम, पशमीना व सूती कपड़ों पर भव्य कारीगरी दिखाई गई थी। हमने भी कुछ वस्त्र खरीदे और शाम होने पर घर आए। ऐसी ही प्रदर्शनी कभी फिर लगी, तो तुम्हें अवश्य सूचित करूँगा। तुम्हें बहुत आनंद आएगा।

तुम्हारा अभिन्न मित्र

क.ख. ग.

(ii) सेवा में,

अध्यक्ष महोदय,

नगरपालिका,

——- नगर।

विषय : नगर में बढ़ रहा जल संकट।

मान्य महोदय,

मैं इस पत्र द्वारा आपका ध्यान नगर में दिन-प्रतिदिन बढ़ते जल संकट की ओर दिलाना चाहता हूँ। महोदय, हमारे नगर में जल सुविधाएँ नाममात्र हैं। प्रातः जल आपूर्ति पाँच से सात तक रहती है। दुपहर को आपूर्ति बंद रहती है। संध्या समय सात से आठ तक पानी आता है। जिन लोगों के घरों में हैंडपंप लगे हैं, उन्हें भी भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि जल-स्तर बहुत नीचे चला गया है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि नगर में शिविर लगाकर लोगों को वर्षा के जल का संचयन करने की ओर प्रेरित किया जाए।

संभव हो तो ऐसी व्यवस्था करने के लिए अनुदान की भी कुछ-न-कुछ व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे लोगों को तो राहत मिलेगी ही, साथ ही साथ नगरपालिका के कार्य में भी सहजता आ सकेगी। राजस्थान के लोग वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting) में अत्यंत दक्ष हैं। हमें उनसे प्रेरणा लेकर इस जल संकट का समाधान करना चाहिए।

सधन्यवाद।

भवदीय,

क. ख. ग.

207/40

न्यू शीतल नगर

——– प्रदेश

दिनांक : 20-06-20…….

 

प्रश्न.3 निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए –

     एक रियासत थी। उसका नाम था कंचनगढ़। वहाँ बहुत गरीबी थी। लोग कमज़ोर थे और धरती में कुछ उगता न था। चारों और भुखमरी थी। एक दिन राजा कंचनदेव राज्य की दशा से चिंतित हो उठे। अचानक उनके पास एक साधु आए। राजा ने उन्हें प्रणाम किया। राजा ने साधु को अपने राज्य के बारे में बताया और कुछ उपाय करने की प्रार्थना की। साधु मुस्कराकर बोले -‘‘कंचनगढ़ के नीचे सोने की खान है।’’ इतना कहकर साधु चले गए। 

       राजा ने खुदाई करवाई। वहाँ सोने की खान निकली। राजा का खजाना सोने से भर गया। राजा ने अपने राज्य में जगह-जगह मुफ़्त भोजनालय बनवाए, दवाखाने खुलवाए, चारागाह बनवाए तथा अन्य सुख-सुविधा के साधन उपलब्ध करा दिए। अब वहाँ कोई दुखी नहीं था। सब लोग खुश थे। धीरे-धीरे लोग आलसी हो गए। कोई काम नहीं करता था। भोजन तक मुफ़्त में मिलने लगा था। मंत्री ने राजा को बहुत समझाया और कहा – ‘‘महाराज, लोग आलसी होते जा रहे हैं। उनको काम दिया जाए।’’ परंतु राजा ने मंत्री की बात को टाल दिया। 

        कंचनगढ़ की समृद्धि को देखकर पड़ोसी रियासत के राजा को ईर्ष्या हुई। उसने अचानक कंचनगढ़ पर चढ़ाई कर दी और माँग की – ‘‘सोना दो या लड़ो।’’ कंचनगढ़ के आलसी लोगों ने राजा से कहा – ‘‘हमारे पास बहुत सोना है, कुछ दे दें। बेकार खून क्यों बहाया जाए ?’’ राजा ने लोगों की बात मान ली और सोना दे दिया। कुछ दिनों बाद उसी पड़ोसी राजा ने कंचनगढ़ पर फिर चढ़ाई कर दी। इस बार उसका लालच और बढ़ गया था। इसी प्रकार उसने कई बार चढ़ाई कर-करके कंचनगढ़ से सोना ले लिया। यह सब देखकर राजा का मंत्री बहुत परेशान हो गया। वह राजा को समझाना चाहता था, किन्तु राजा के सम्मुख कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। अंत में उसने युक्ति से काम लिया। 

       एक दिन मंत्री कंचनदेव को घुमाने के लिए नगर के पूर्व की ओर बने गुलाब के बाग़ की ओर ले गया। राजा कंचनदेव ने देखा कि बाग में दाने बिखरे पड़े हैं। कबूतर दाना चुग रहे हैं। थोड़ी दूर कुछ कबूतर मरे पड़े हैं। कुछ भी समझ में न आने पर राजा ने मरे हुए कबूतरों के बारे में मंत्री से पूछा। 

          मंत्री ने बताया – ‘‘महाराज, इन्हें शिकारी पक्षियों ने मारा है।’’ राजा ने पूछा – ‘‘तो कबूतर भागते क्यों नहीं’’ ‘‘भागते हैं लेकिन लालच में फिर से आ जाते हैं, क्योंकि उनके लिए यहाँ, आपकी आज्ञा से दाना डाला जाता है।’’ – मंत्री ने बताया। राजा ने कहा – ‘‘दाना डलवाना बंद कर दो।’’ मंत्री ने वैसा ही किया।

          राजा अगले दिन फिर घूमने निकले। उन्होंने देखा कि दाना तो नहीं है, किन्तु कबूतर आ-जा रहे हैं। राजा ने मंत्री से इसका कारण पूछा। मंत्री ने बताया – ‘‘महाराज, इन्हें बिना प्रयास के ही दाना मिल रहा था। यह अब दाने-चारे की तलाश की आदत भूल चुके हैं, आलसी हो गए हैं। शिकारी पक्षी इस बात को जानते हैं कि कबूतर तो यहीं आएँगे अतः वे इन्हें आसानी से मार डालते हैं।’’ राजा चिंता में पड़ गए। उन्होंने शाम को मंत्री को बुलाकर कहा – ‘‘नगर के सारे मुफ़्त भोजनालय बंद करवा दो। जो मेहनत करे, वही खाए। लोग निकम्मे और आलसी होते जा रहे हैं। और हाँ, एक बात और। मैं अब शत्रु को सोना नहीं दूँगा, बल्कि उससे लड़ाई करूँगा। जाओ, सेना को मज़बूत करो।’’ मंत्री राजा की बात सुनकर बहुत खुश हो गया। 

 

(i) राजा कंचनदेव की चिन्ता का क्या कारण था ? उन्होंने साधु से क्या प्रार्थना की ?

(ii) साधु ने राजा को क्या बताया ? उसके बाद राजा ने राज्य के लिए क्या-क्या कार्य किये ? 

(iii) पड़ोसी राजा के आक्रमण करने पर कंचनगढ़ का राजा क्या करता था और क्यों ? 

(iv) कबूतरों की दशा कैसी थी ? उस दशा को देखकर राजा ने क्या सीखा ? 

(v) राजा ने मंत्री को क्या आदेश दिए ? आदेश सुनकर मंत्री की क्या स्थिति हुई ? 

उत्तर : (i) राजा की चिंता का कारण राज्य की गरीबी, लोगों की कमजोरी व चारों ओर फैली भुखमरी थी। उसने साधु से राज्य के विषय में चर्चा करके कुछ उपाय करने की प्रार्थना की।

(ii) साधु ने राजा को बताया कि उसके राज्य कंचनगढ़ के नीचे सोने की खान है। राजा ने खुदाई करवाकर सोना प्राप्त किया और अपने राज्य में मुफ़्त भोजनालय और दवाखाने खुलवा दिए। चरागाह बनवाए और अन्य सुख-सुविधा के साधन उपलब्ध करवाए।

(iii) पड़ोसी रियासत के राजा के आक्रमण करने पर राजा सोने का कुछ भाग दे देता था क्योंकि उसकी प्रजा लड़कर खून बहाने के स्थान पर कुछ सोना देने का विचार रखती थी, क्योंकि मुफ्त सुविधाएँ पाकर लोग आलसी हो चुके थे।

(iv) कुछ कबूतर दाना चुग रहे थे और कुछ मरे पड़े थे। राजा के पूछने पर मंत्री ने बताया कि कबूतर भागते नहीं क्योंकि वे दाने के लालची हो गए हैं। राजा की आज्ञा से उन्हें मुफ़्त दाना डाला जाता है। इस दशा को देखकर राजा को कर्म करने का महत्त्व समझ में आ गया और उसने दाना डलवाना बंद कर दिया।

(v) राजा ने मंत्री को आदेश दिए कि आलसी और निकम्मों के लिए स्थापित सारे मुफ़्त भोजनालय बंद कर दिए जाएँ। परिश्रम करने वाला ही खाए। अब शत्रु को सोना नहीं दिया जाएगा। सेना मज़बूत की जाए और लड़ाई करके शत्रु को परास्त किया जाए।

प्रश्न.4 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए:- 

(i) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विलोम लिखिए:-  अपना, देव, नवीन, सम्मानित। 

 

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए – इच्छा, आदेश, शिक्षक। 

(iii) निम्नलिखित शब्दों में किन्हीं दो शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए –  सफेद, युवा, हिंसक, जागना। 

(iv) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के शुद्ध रूप लिखिये – कवित्री, अशीरवाद, -तग्य, विदूशी। 

 

(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए – चंपत होना, डींग हाँकना। 

 

(vi)कोष्ठक में दिए गए वाक्यों में निर्देशानुसार परिवर्तन कीजिए – 

     (a) प्राचीन काल में लोग पत्तों की बनी कुटिया में रहते थे। (रेखांकित का एक शब्द लिखते हुए वाक्य पुनः लिखिए)

     (b) बीमार होने के कारण सुमन समारोह में नहीं आ सकी। (इसलिए’ का प्रयोग कर वाक्य पुनः लिखिए, )

     (c) बच्चे आम तोड़ने के लिए वृक्षों पर चढ़ गए थे। (वचन बदलिए)

उत्तर :

(i) पराया, दानव/राक्षस, प्राचीन, अपमानित।

(ii) इच्छा-अभिलाषा, कामना। आदेश-आज्ञा, हुकम, समादेश। शिक्षक-अध्यापक, आचार्य।

(iii) सफ़ेदी, यौवन, हिंसा, जागृति।

(iv) कवयित्री, आशीर्वाद, कृतज्ञ, विदुषी।

(v) चोर भरे बाज़ार में महिला का पर्स छीनकर चंपत हो गया। कर्म करने से सफलता मिलती है, डींग हाँकने से नहीं।

(vi) (a) प्राचीनकाल में लोग पर्णकुटी में रहते थे।

       (b) सुमन बीमार थी इसलिए समारोह में नहीं आ सकी।

       (c) बच्चा आम तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ गया था।

भाग—B

साहित्य सागर-संक्षिप्त कहानियाँ 

          (Sahitya Sagar–Short Stories)

प्रश्न.5 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

        उसके अन्तस्तल में वह शोक जाकर बस गया था। वह प्रायः अकेला बैठा-बैठा शून्य मन से आकाश की ओर ताका करता। एक दिन उसने ऊपर आसमान में पतंग उड़ती देखी। न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा। विश्वेश्वर के पास जाकर बोला, ‘‘काका ! मुझे एक पतंग मँगा दो।’’ 

                                                                                  (काकी’-सियारामशरण गुप्त) [‘Kaki’—Siyaramsharan Gupt] 

(i) ‘उसके’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? उसके दुखी होने का क्या कारण था ? (ii) क्या देखकर उसका हृदय खिल उठा था ? उसने अपने पिता से क्या माँगा ? 

(iii) उसने उस चीज का प्रबंध कैसे किया ? क्या उसके इस कार्य को अपराध कहना उचित होगा ? समझाइए। 

 

(iv) विश्वेश्वर ने बालक के साथ कैसा व्यवहार किया ? संक्षेप में समझाते हुए उनके इस तरह के व्यवहार का कारण तथा सच्चाई जानने के बाद की स्थिति का भी वर्णन कीजिए। 

उत्तर : (i) ‘उसके’ शब्द का प्रयोग श्यामू के लिए किया गया है। उसके दुखी होने का कारण उसकी माँ की मृत्यु थी।

 

(ii) एक दिन श्यामू अकेला बैठा आकाश की ओर ताक रहा था तो उसने एक उड़ती पतंग देखी। पतंग देखकर उसका हृदय खिल उठा। उसने अपने पिता से एक पतंग माँगी।

(iii) पिता ने ‘हाँ’ करके भी श्यामू को पतंग लाकर नहीं दी तो उसने पिता के कोट से एक चवन्नी चुरा ली और सुखिया दासी के पुत्र भोला से पतंग मँगवा ली। यह कार्य चोरी के अपराध में आता है परंतु अपनी माँ के मोह में जकड़े श्यामू के लिए यह कतई अपराध न था।

(iv) विश्वेश्वर को अपने कोट से रुपया चोरी होने का पता चला तो वे श्यामू से पूछते हैं। डरकर भोला ने सारी कहानी बता दी। पिता ने श्यामू के दो तमाचे जड़ दिए और पतंग फाड़ डाली। परंतु जब उन्हें चोरी के कारण – का पता चला तो उनका सारा क्रोध शांत हो गया और उनके मन में पीड़ा जाग उठी।

प्रश्न.6 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

               विदेशों में उसके चित्रों की धूम मच गयी। भिखारिन और दो अनाथ बच्चों के उस चित्र की प्रशंसा में तो अखबारों के कॉलम के कॉलम भर गए। शोहरत से ऊँचे कगार पर बैठ चित्रा जैसे अपना सब कुछ भूल गयी। 

                                                                                       (दो कलाकार’-मन्नु भंडारी) [‘Do Kalakar’—MannuBhandari] 

(i) ‘उसके चित्रों’ से क्या तात्पर्य है ? समझाइए। 

(ii) चित्रा कौन थी ? उसके चरित्र की मुख्य विशेषता को बताइए। 

(iii) अरूणा कौन थी जब उसे भिखारिन वाली घटना का पता चला तो उसपर क्या प्रभाव पड़ा और उसने क्या किया ? 

 

(iv) चित्रकारिता और समाज सेवा में आप किसे उपयोगी मानते हैं और क्यों ? कहानी के      माध्यम से समझाइए। 

उत्तर :

(i) ‘उसके चित्रों’ से तात्पर्य चित्रा द्वारा बनाए गए चित्रों से है। वह एक श्रेष्ठ कलाकार थी और उसके चित्रों का संबंध जीवन से न होकर केवल कला से था।

(ii) चित्रा धनी पिता की इकलौती बेटी है। उसका शौक चित्रकला है। उसमें मानवता और संवेदना की कमी है। उसकी दृष्टि कला को कला के लिए मानने वाली है।

(iii) अरूणा चित्रा की सहपाठिन सखी थी। उसके जीवन का उद्देश्य मानवता की सेवा है। वह भिखारिन की मृत्यु पर उसके दोनों बच्चों को अपना लेती है।

(iv) चित्रकारिता और समाजसेवा में निश्चित रूप से समाजसेवा उपयोगी है क्योंकि इसका संबंध मानवता से है। जो कला जीवन को महत्त्व न दे, वह कला नहीं है। कला और कलाकार वही सार्थक है जो अरूणा की तरह संवेदना से भरा हो। चित्र जैसा भौतिकवादी कलाकार मानवता के लिए व्यर्थ है।

प्रश्न.7 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

            मैंने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली सी मूर्ति हमारी तरफ आ रही थी। मैंने कहा – ‘‘होगा कोई।’’ तीन गज की दूरी से दिख पड़ा, एक लड़का, सिर के बड़े-बड़े बाल खुजलाता चला आ रहा था। नंगे पैर, नंगे सिर, एक मैली सी कमीज़ लटकाए है। 

                                                                               (अपना-अपना भाग्य’-जैनेन्द्र कुमार)[‘Apna-Apna Bhagya’—Jainendra Kumar] 

(i) यहाँ पर किस बालक के सन्दर्भ में कहा गया है ? उस समय उसकी क्या स्थिति थी ? 

(ii) बालक ने अपने घर-परिवार के सम्बन्ध में क्या-क्या बताया ? 

(iii) इस समय उस बालक के सामने कौनसी समस्या थी ? क्या उस समस्या का हल हो पाया ? यदि नहीं तो क्यों ? 

 

(iv) इस कहानी के माध्यम से लेखक ने हमें क्या सन्देश देना चाहा है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। 

 

उत्तर : (i) यहाँ पर एक ऐसे निर्धन, असहाय और शोषित पहाड़ी बालक के विषय में कहा गया है जो बर्फ में ठिठुर कर दम तोड़ देता है। उसके सिर, पैर, नंगे थे। शरीर पर केवल एक मैली-सी कमीज़ थी।

 

(ii) बालक ने बताया कि वह गरीबी से तंग आकर नैनीताल भाग आया है। उसके माता-पिता पंद्रह कोस दूर गाँव में रहते हैं। उसके कई भाई-बहन और माँ-बाप भूखे रह रहे थे।

(iii) इस समय बालक के सामने रात काटने की और बर्फ के प्रकोप से बचने की समस्या थी। उसे उस दुकान पर से हटा दिया गया था, जहाँ वह काम करने के बाद सोता था। यह समस्या हल नहीं हो सकी क्योंकि वकील जैसे भद्रपुरुषों में मानवता नाम की कोई भावना नहीं थी।

(iv) प्रस्तुत कहानी द्वारा लेखक ने बताया है कि आज के लोगों में दया और मानवता की भावना शून्य होती जा रही है। लोग किसी विवश व अभावग्रस्त दुखी बालक पर दया नहीं दिखाते। वकील साहब जैसे लोग स्वार्थी, हृदयहीन और संवेदनहीन हैं। इसी निर्ममता ने बालक की जान ले ली।

साहित्य सागर – पद्य भाग 

       (Sahitya Sagar–Poems) 

प्रश्न.8 निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

              ‘‘मैया मेरी, चंद्र खिलौना लेहौं।। 

               धौरी को पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुथैहौं। 

               मोतिन माल न धरिहौं उर पर झुंगली कंठ न लैहौं। 

               जैहौं लोट अबहिं धरनी पर, तेरी गोद न ऐहौं।। 

                लाल कहैहौं नंद बाबा को, तेरो सुत न कहैहौं।।’’ 

                                                                                 (‘सूर के पद’-सूरदास) [‘Sur Ke Pad’–Surdas] 

(i) प्रस्तुत पद्य में कौन अपनी माता से ज़िद कर रहे हैं ? वे क्या प्राप्त करना चाहते हैं ? 

(ii) उनकी माता कौन हैं ? वे अपने पुत्र को देखकर कैसा अनुभव कर रही हैं ? स्पष्ट कीजिए। 

(iii) खिलौना न मिलने की स्थिति में बाल -ष्ण अपनी माँ को क्या-क्या धमकियाँ दे रहे हैं ?  स्पष्ट कीजिए। 

 

(iv) रूठे हुए बालक को बहलाने के लिए माँ क्या कहती है ? बालक पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है ? सूरदास जी की भक्ति भावना का परिचय देते हुए समझाइए। 

 

उत्तर : (i) प्रस्तुत पद्य में कवि सूरदास ने वात्सल्य रस का चित्रण किया है। कृष्ण की बाल-लीला अद्भुत है। वे अपनी माता यशोदा से चाँद को खिलौने के रूप में माँग रहे हैं।

 

(ii) कृष्ण की माता यशोदा है। वे अपने पुत्र की बालसुलभ लीलाओं को देख-सुनकर मंत्रमुग्ध हो रही हैं। उन्हें अपने पुत्र के बाल हठ पर आनंद का अनुभव हो रहा है।

(iii) बाल कृष्ण अपनी माँ को दूध न पीने, चोटी न गुँथवाने, मोतियों की माला न पहनने, गले में झंगलि न पहनने धरती पर लेटने, गोद में न आने और यशोदा के स्थान पर नंद का पुत्र कहलाने की धमकियाँ दे रहे हैं।

(iv) यशोदा अत्यंत चतुराई से कृष्ण के कान में कहती हैं कि वे उसके लिए चंद्र से भी सुंदर दुलहन लाएँगी। माँ की यह रहस्य भरी बात सुनकर कृष्ण चंद्र रूपी खिलौना लेने का हठ भूल गए और तुरंत विवाह करवाने का हठ करने लगे। इस पद्य में सूरदास की वात्सल्य भाव की भक्ति का मनोरम वर्णन है।

प्रश्न.9 निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

                   ‘‘न्यायोचित सुख सुलभ नहीं 

                     जब तक मानव-मानव को 

                    चैन कहाँ धरती पर तब तक 

                    शांति कहाँ इस भव को ? 

                    जब तक मनुज-मनुज का यह 

                    सुख भाग नहीं सम होगा 

                    शमित न होगा कोलाहल 

                    संघर्ष नहीं कम होगा।“ 

                                   (स्वर्ग बना सकते हैं’-रामधारी सिंह ‘दिनकर’)[‘Swarg Bana Sakte Hai’—Ramdhari Singh ‘Dinkar’] 

 

(i) ‘भव’ शब्द का क्या अर्थ है ? कवि के अनुसार इस भव में शांति क्यों नहीं है ? 

(ii) शब्दों के अर्थ लिखिए – न्यायोचित, सम, सुलभ, कोलाहल। 

(iii) ‘शमित न होगा कोलाहल संघर्ष नहीं कम होगा’ पंक्ति का भावार्थ लिखिए। 

(iv) उपरोक्त पंक्तियाँ ‘दिनकर जी’ की किस प्रसिद्ध रचना से ली गई है ? कविता का केन्द्रीय भाव लिखते हुए बताइए। 

 

उत्तर :

(i) ‘भव’ शब्द का अर्थ है-संसार । कवि का विचार है कि जब तक मनुष्य को धरती पर न्यायसंगत सुख प्राप्त नहीं होते, तब तक संसार में शांति संभव नहीं।

(ii) न्याय की दृष्टि से उचित, समान, सुगम रूप से उपलब्ध, शोर।

(iii) इस पंक्ति का अर्थ है कि जब तक संसार में समाज-सापेक्ष दृष्टि नहीं उपजती, तब तक संघर्ष और असंतोष का शोर कम नहीं होगा।

(iv) प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर जी की प्रसिद्ध रचना ‘कुरुक्षेत्र’ से ली गई हैं। इस कविता का केंद्रीय भाव समतावाद से जुड़ा हुआ है। कवि का विचार है कि यदि हम प्रकृति द्वारा दी गई वस्तुओं व उपहारों का समान रूप से उपभोग करें तो यह धरती स्वर्ग बन सकती है और संघर्ष मिट सकते हैं।

प्रश्न.10 निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए रू-

             जन्मे जहाँ थे रघुपति जन्मी जहाँ थी सीता। 

            श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी पुनीत गीता।। 

           गौतम ने जन्म लेकर जिसका सुयश बढ़ाया। 

           जग को दया दिखाई, जग को दिया दिखाया।। 

           वह युद्धभूमि मेरी, वह बुद्धभूमि मेरी। 

           वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।। 

                                   (वह जन्मभूमि मेरी’- सोहनलाल द्विवेदी) [‘Wah Janamabhumi Meri’—Sohanlal Dwivedi] 

 

(i) प्रस्तुत कविता किस प्रकार की है इस कविता में किसका गुणगान किया गया है ? 

(ii) कवि ने भारत को युद्धभूमि और बुद्धभूमि क्यों कहा है ? समझाकर लिखिए। 

(iii) प्रस्तुत कविता में जन्मभूमि की किन-किन प्रा-तिक विशेषताओं का उल्लेख किया गया है ? स्पष्ट कीजिए। 

 

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भारत को किन-किन महापुरुषों की भूमि कहा है ? कविता का केन्द्रीय भाव लिखते हुए स्पष्ट कीजिए। 

 

उत्तर :

(i) प्रस्तुत कविता देश-प्रेम से भरपूर कविता है। इसमें कवि ने भारतवर्ष की भूमि की प्रमुख विशेषताओं का गुणगान किया है।

(ii) कवि ने भारत को बुद्ध के कारण दया व अहिंसा का पुजारी स्वीकार किया है और इसे बुद्धभूमि कहा। दूसरी ओर आत्मसम्मान व मातृभूमि की रक्षा के लिए तैयार रहने वाले रण-बाँकुरों की ओर संकेत करके इसे युद्धभूमि कहा है।

(iii) प्रस्तुत कविता में जन्मभूमि को हिमालय की ऊँचाई, सिंधु की विशालता, गंगा, यमुना और त्रिवेणीजी की पवित्रता जैसी प्राकृतिक विशेषताओं के साथ जोड़ा है।

(iv) प्रस्तुत कविता में कवि ने भारत को राम-सीता, कृष्ण, गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों की भूमि कहा है। कवि के अनुसार यह जन्मभूमि आदर्शों, कर्मशीलता, मानवता और ममतामयी पवित्रता से जुड़े महापुरुषों की भव्य भूमि है।

नया रास्ता-सुषमा अग्रवाल 

प्रश्न.11 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

        ”मीनू ……… अरे मीनू कैसे कर सकती है ? यह रस्म तो शादीशुदा बहन ही कर सकती है। मीनू की तो अभी शादी भी नहीं हुई।“ 

(i) उपर्युक्त कथन की वक्ता कौन है उसका परिचय दीजिए। 

(ii) वक्ता ने क्यों कहा कि मीनू यह रस्म नहीं कर सकती ? यहाँ किस रस्म की बात हो रही है ? 

 

(iii) वक्ता की बात सुनकर मीनू तथा मीनू की माँ की स्थिति का वर्णन करते हुए बताइए कि क्या उसके द्वारा वह रस्म पूरी की गई थी ? स्पष्ट कीजिए। 

 

(iv) ”एक अविवाहित स्त्री को समाज में उचित सम्मान नहीं मिलता।“ उपन्यास के आधार पर अपने विचार लिखिए। 

 

उत्तर : (i) प्रस्तुत कथन की वक्ता मीनू की बुआ है। वह परंपराओं से चिपकी हुई स्त्री है। रीति-रिवाज़ों के नाम पर उसके विचार बहुत पुरातन हैं। वह रीति के नाम पर किसी को भी चोट पहुँचा सकती है।

 

(ii) मीनू की छोटी बहन आशा की शादी हो रही थी। एक रस्म के अनुसार बड़ी बहन को आरती उतारनी थी। परंतु मीनू की अभी तक शादी नहीं हुई थी। अतः वह बड़ी बहन होकर भी इस रस्म को नहीं निभा सकती थी।

(iii) बुआ की बात सुनकर मीनू की माँ ने दृढ़ता का परिचय दिया और निर्णय सुनाया कि मीनू ही वह रस्म निभाएगी। अतः पुरातनपंथी का विरोध करते हुए व्यवहारवादी दृष्टि अपनाई गई। विरोध व कटाक्ष की उपेक्षा करके मीनू ने आरती उतारी।

(iv) हमारा समाज अविवाहित स्त्री को सम्मान देने के पक्ष में नहीं रहा है। परंतु आज युग व दृष्टि बदल रही है। शिक्षित स्त्रियाँ प्रायः देरी से शादी करती हैं। वे पहले अपने आधार को सुदृढ़ करना चाहती हैं। उनके विचार विवाह के संदर्भ में बदलते जा रहे हैं।

प्रश्न.12 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए –            

             आखिर सरिता को देखने का दिन आ ही गया। अमित के घर में विशेष चहल-पहल थी। अमितकी माताजी में विशेष उत्साह नजर आ रहा था। माताजी के कहने में आकर उसके पिता भी इस रिश्ते में रूचि लेने लगे थे। अमित की बहन मधु भी अपनी होने वाली भाभी को देखने के लिए उत्सुक थी। 

(i) अमित कौन है उसका संक्षिप्त परिचय दीजिये। 

(ii) विशेष चहल-पहल का क्या कारण था, इस अवसर पर अमित की स्थिति स्पष्ट कीजिए। (iii) मायारामजी को स्वर्ग की अनुभूति कहाँ और कैसे होती है और क्यों होती है ? 

(iv) अमित और सरिता के बीच हुई बातचीत को संक्षेप में लिखिये। 

उत्तर : (i) अमित मीनू को देखने आता है। उसकी माँ दहेज की लोभी है, परंतु वह विवाह के संदर्भ में व्यवहारवादी व मानवतावादी विचार रखता है। उसको दहेज जैसी कुप्रथा के प्रति घृणा है। इसीलिए वह अपनी माँ से धनीमल जैसे धनियों से रिश्ता तय न करने की बात करता है।

 

(ii) विशेष चहल-पहल का कारण यह था कि अमित के लिए सरिता को देखने का दिन आ गया था। मीनू और उसके माता-पिता को अमित के माता-पिता ने टालमटोल भरा पत्र लिख दिया था। वे धन की चकाचौंध में आ चुके थे। परंतु अमित इन लोगों के विपरीत उदास व चिंतित था।

(iii) धनीमल की कोठी पर पहुँचते ही मायाराम को लगा, जैसे वे स्वर्ग में आ गए हों। सबका विशेष स्वागत किया गया। धन की चमक ने मायाराम का मन मोह लिया।

(iv) अमित और सरिता की भेंट में सरिता ने बताया कि उसे घर के कामकाज में विशेष रुचि नहीं है। पिताजी शादी के बाद एक नौकर साथ भेज देंगे और सारा काम वही करेगा।

प्रश्न.13 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

                मीनू के हृदय में बचपन से ही अपंगों के लिए दया की भावना थी परन्तु मनोहर को तो वैसे भी वह बचपन से जानती थी। इसीलिए उसकी यह हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। मीनू ने मन ही मन निश्चय दिया कि वह किसी न किसी रूप में मनोहर की सहायता अवश्य करेगी। विवाह के फ़ालतू खर्च में से कुछ रुपये बचाकर अपाहिज मनोहर की सहायता करने का उसने संकल्प लिया। 

(i) मनोहर कौन था ? वह मीनू के पास क्यों आया था ? 

(ii) उसकी यह दशा कैसे हो गयी थी ? संक्षेप में समझाइए। 

(iii) मीनू ने मन ही मन क्या निश्चय किया और मनोहर की सहायता कैसे की ? 

(iv) मीनू के इस कार्य से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ? क्या आपने भी कभी किसी की इस प्रकार से सहायता की है समझाइए। 

 

उत्तर : (i) मनोहर राजो का चचेरा भाई है। वह मीनू के पास उसके विवाह में हाथ बँटाने आया है।

 

(ii) मनोहर को एक फैक्ट्री में नौकरी मिली थी। काम करते हुए उसका पैर मशीन में आ गया। साथ ही सीधे हाथ की दो अंगुलियाँ भी कट गईं।

(iii) मीनू के मन में बाल्यकाल से ही अपंगों के प्रति विशेष दया-भावना थी। उसने मन ही मन यह निश्चय किया कि वह विवाह के खर्च से कटौती करके असहाय मनोहर की सहायता करेगी। उसने विचार-विमर्श के बाद उसे पान की दुकान खुलवा देने का निर्णय श्रेष्ठ लगा और उसने दुकान खुलवाकर उसका जीवन सुधार दिया।

(iv) मीनू का यह त्याग और अपंग-प्रेम निश्चित रूप से आदर्श और अनुकरणीय है। हम सभी को शादी में इस प्रकार के व्यर्थ खर्च की कटौती करके उन दीन-दुखियों की सहायता करनी चाहिए। मैंने तो नहीं, परंतु मेरे पिता जी ने एक अपंग विधवा को फोन-बूथ खुलवा कर दिया था जिसके बाद उसका जीवन सहज हो गया था।

एकांकी संचय 

       (Ekanki Sanchay) 

प्रश्न.14 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

                अब भी आँखें नहीं खुलीं ? जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए दूसरों से चाहते हो वही दूसरे की बेटी को भी दो। जब तक तुम बहू और बेटी को एक-सा नहीं समझोगे, न तुम्हें सुख मिलेगा न शांति। 

                                                                                        (बहू की विदा’-विनोद रस्तोगी) [‘Bahu Ki Vida’—Vinod Rastogi]

(i) वक्ता का परिचय देते हुए कथन का सन्दर्भ लिखिए। 

(ii) ‘‘अब भी आँखें नहीं खुली ?’’ कहने से वक्ता का क्या अभिप्राय है ? पाठ के सन्दर्भ में समझाइए। 

 

(iii) एकांकी के अन्त में श्रोता क्या फैसला लेता है और क्यों ? समझाइए। 

(iv) इस एकांकी से आपको क्या शिक्षा मिलती है ? एकांकी के उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर : 

(i) प्रस्तुत कथन की वक्ता राजेश्वरी है। वह जीवनलाल नामक एक धनी व्यापारी की पत्नी है। प्रस्तुत कथन उस समय का है जब जीवनलाल की बेटी के ससुराल वाले उसे राखी के अवसर पर मायके भेजने से मना कर देते हैं।

(ii) ‘अब भी आँखें नहीं खुली’-का अभिप्राय यह है कि जीवनलाल हठी और लोभी है। वह धन के लोभ में आकर अपनी पुत्रवधू को राखी के अवसर पर मायके नहीं भेजता। इधर उसकी अपनी पुत्री के ससुराल वाले जब उससे वैसा ही व्यवहार करते हैं तो समाचार पाकर आँखें खुलने की चर्चा हो रही है।

(iii) एकांकी के अंत में जीवनलाल का हृदय परिवर्तन हो जाता है। अपनी पुत्री के साथ वैसा ही व्यवहार होते देख उसकी आँखें खुल गईं और उसने बहू को मायके के लिए विदा करने का निर्णय ले लिया।

(iv) प्रस्तुत एकांकी से यही शिक्षा मिलती है कि हमें बहू के रूप में अपने घर में आई दूसरों की बेटियों के प्रति ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जैसा हम अपनी बेटियों के साथ कभी भी नहीं देखना चाहते।

प्रश्न.15 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए-

                   आपके विवेक पर सबको विश्वास है। मैं आपसे निवेदन करने आई हूँ कि यद्यपि समय के फेर से आज हाड़ा, शक्ति और साधनों में मेवाड़ के उन्नत राज्य से छोटे हैं, फिर भी वे वीर हैं। मेवाड़ को विपत्ति के दिनों से सहायता देते रहे हैं। यदि उनसे कोई धृष्टता बन पड़ी हो, तो महाराणा उसे भूल जाएँ और राजपूत शक्तियों में स्नेह का सम्बन्ध बना रहने दें। 

                                                                (मात भूमि का मान’-हरिकृष्ण‘प्रेमी’)[‘Matribhoomi Ka Man’—Harikrishna ‘Premi’]

 

(i) प्रस्तुत कथन किसने, किससे कहा है ? स्पष्ट कीजिए। 

(ii) मेवाड़ को विपत्ति के दिनों में किसने सहायता दी है ? चारणी यह बात क्यों याद दिलाती है ? स्पष्ट कीजिए। 

 

(iii) चारणी ने महाराणा को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का क्या उपाय बताया ? यह कितना उचित था, इस सन्दर्भ में अपने विचार दीजिए। 

 

(iv) ‘मातृभूमि का मान’ कैसी एकांकी है ? शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करते हुए बताइए। 

उत्तर : (i) प्रस्तुत संवाद चारणी ने महाराणा लाखा से कहा है। वह मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा के सेना के सैनिक वीरसिंह की साथी है जो बूंदी का रहने वाला है।

 

(ii) मेवाड़ को उसकी विपत्ति के दिनों में हाड़ा जैसे छोटे राज्य सहायता देते रहे हैं। चारणी यह बात इसलिए याद दिलाना चाहती है क्योंकि वह संपूर्ण राजपूत राज्यों में स्नेह और एकसूत्रता का बंधन देखना चाहती है।

(iii) चारणी ने महाराणा को बूंदी का एक नकली दुर्ग बनाने और उसका नाश करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का उपाय बताया। यह उपाय ऐसा था कि किसी राजपूत राज्य की हानि भी न होती और महाराणा की प्रतिज्ञा भी पूरी हो जाती। यह ऐसा उत्तम उपाय था कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

(iv) प्रस्तुत एकांकी में हाड़ा राजपूत वीरसिंह के बलिदान का चित्रण है। वह नकली दुर्ग को प्राणों से प्रिय मानकर बूंदी की रक्षा करते-करते मेवाड़ की भारी सेना के सामने अपना बलिदान देता है। इस बलिदान से यह लाभ हुआ कि राजपूतों की एकता का मार्ग प्रशस्त हो गया और मातृभूमि के मान को सर्वोपरि रखने वाले वीरसिंह की गाथा अमर हो गई।

प्रश्न.16 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए – 

                 बेटा, बड़प्पन बाहर की वस्तु नहीं – बड़प्पन तो मन का होना चाहिए। और फिर बेटा घृणा को घृणा से नहीं मिटाया जा सकता। बहू तभी पृथक होना चाहेगी जब उसे घृणा के बदले घृणा दी जाएगी। लेकिन यदि उसे घृणा के बदले स्नेह मिले तो उसकी समस्त घृणा धुँधली पड़कर लुप्त हो जाएगी। 

                                                                                  (सूखी डाली’-उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’)[‘Sukhi Dali’—Upendranath ‘Ashka’] 

(i) प्रस्तुत कथन का वक्ता कौन है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(ii) श्रोता ने वक्ता को छोटी बहू के संबंध में क्या बताया था ? 

(iii) वक्ता ने परिवार में एकता बनाये रखने का क्या उपाय निकाला ? क्या वे इसमें सफल हुए ? स्पष्ट कीजिए। 

 

(iv) प्रस्तुत एकांकी किस प्रकार की एकांकी है ? इस एकांकी लेखन का क्या उद्देश्य है ?

उत्तर :

(i) प्रस्तुत कथन के वक्ता दादा हैं जिनका नाम मूलराज है। वे परिवार के मुखिया हैं।

(ii) श्रोता परेश दादा मूलराज से कहता है कि छोटी बहू बेला का इस घर में मन नहीं लगता। उसे घर का कोई भी सदस्य पसंद नहीं करता। सभी उसकी निंदा करते हैं। अत: वह स्वतंत्र घर बसाकर रहना चाहती है।

(iii) वक्ता ने परिवार में एकता बनाए रखने के लिए परेश को सुझाव दिया कि वह बेला को साथ ले जाकर बाज़ार से उसकी पसंद की चीजें खरीदवा दे। वे यह भी कहते हैं कि वे घर में सभी को समझा देंगे कि कोई भी बेला का अपमान नहीं करेगा। वे इसमें सफल होते हैं क्योंकि घर के सभी सदस्य बेला को अधिक सम्मान देने लगते हैं जिसकी प्रतिक्रिया में छोटी बहू को बदलना पड़ता है।

(iv) प्रस्तुत एकांकी एक पारिवारिक एकांकी है जिसमें उपेंद्रनाथ अश्क ने संदेश दिया है कि यदि दूरदर्शिता, सूझबूझ और व्यावहारिकता से काम लिया जाए तो पारिवारिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने से हमारे परिवार बिखरने से बचाए जा सकते हैं।

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