राजस्थान के ऐतिहासिक स्रोत
Geetanjali Academy- By Jagdish Takhar
राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्रोत पुरातात्विक सामग्री, साहित्यिक सामग्री व पुरालेख सामग्री है।
- पुरातात्विक सामग्री: जैसे शिलालेख, ताम्रपत्र (दान-पत्र), सिक्के, शैलचित्र, स्मारक, मृण मूर्तियों, पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन आदि। पुरातात्विक सामग्री से अभिप्राय उस सामग्री से है जो खोजों व उत्खनन से मिली है। पुरातात्विक सामग्री अधिक विश्वसनीय, सामयिक व प्रामाणिक दस्तावेज़ है।
(i) शिलालेख: ये प्रायः पत्थरों, शिलाओं आदि पर खुदे हुये मिले है। इनकी भाषा संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी, उर्दू व फारसी है। अधिकांशतः ये महाजनी लिपि (हर्ष लिपि) में खुदे है। इनमें वंशावली, तिथियाँ, विशेष घटनाओं तथा शासन स्वरूप का उल्लेख होता है। जिन शिलालेखो में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों की यशोगाथा होती है, उसे ‘प्रशस्ति‘ कहते है, जैसे महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित ‘कीर्ति स्तम्भ की प्रशस्ति‘, महाराणा राजसिंह की ‘राज प्रशस्ति‘ आदि।
शिलालेख | स्थान | विशेष विवरण |
घोसु.डी शिलालेख ( द्वितीय शताब्दी ईसा पू.) | घोसु.डी गाँव (नगरी, चित्तौड़)
भाषा-संस्कृत, लिपि-ब्राह्मी |
इसमें भागवत धर्म का प्रचार, संकर्शण तथा वासुदेव की मान्यता और अश्वमेघ यज्ञ के प्रचलन का वर्णन |
भाबू्र अभिलेख (232 ई.पू.) सबसे पुराना ज्ञात | बैराठ (जयपुर) | सम्राट अशोक की बौद्ध आस्था का वर्णन |
अपराजित का शिलालेख 661 ई. | कु.डेश्वर मंदिर, नागदा (उदयपुर) | मेवाड़ की धार्मिक स्थिति का वर्णन |
मानमोरी का लेख 713 ई. | मानसरोवर झील (चित्तौडगढ़) का तट | ये अभिलेख कर्नल टॉड को मिला एवं इसमें चित्तौड़ की सामाजिक स्थिति की जानकारी है। |
चित्तौड़ का लेख 971 ई. | चित्तौडगढ़ | इसमें स्त्रियों के मन्दिर में प्रवेश को निषेध बताया है। |
बिजोलिया का लेख 1170 ई. | पार्श्वनाथ मंदिर, बिजौलिया (भीलवाड़ा) | सांभर व अजमेर के चौहान वंश की जानकारी |
चीरवे का शिलालेख 1428 ई. | चीरवा गाँव,
उदयपुर |
मेवाड़ के गुहिल शासक बप्पा से समरसिंह तक की जानकारी |
श्रृंगी ऋषि शिलालेख | श्रृंगी ऋषि स्थान (एकलिंग जी) | मेवाड़ के राणा हम्मीर से मोकल तक की जानकारी तथा भीलों के सामाजिक जीवन की जानकारी |
रणकपुर प्रशस्ति 1439 ई. | जैन चौमुखा मंदिर, रणकपुर | मेवाड़ के बप्पा रावल से कुम्भा तक का उल्लेख |
कुम्भलगढ़ अभिलेख 1460 ई. | कुम्भलगढ़ (राजसमंद) | मेवाड़ शासकों की शुद्ध वंशावली |
कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति 1460 ई. | चित्तौड़ दुर्ग में कीर्तिस्तम्भ पर उत्कीर्ण श्लोक | महाराणा कुम्भा द्वारा रचित चंडीशतक, संगीतराज, गीत गोविन्द टीका का उल्लेख है। |
आमेर का लेख 1612 ई. | आमेर (जयपुर) | कच्छवाहा वंश की मुगलों से सम्बन्धों की जानकारी |
राजप्रशस्ति (1676 ई.) | विश्व का सबसे बड़ा शिलालेख राजसमंद झील के किनारे रणछोड़ भट्ट द्वारा रचित | मेवाड़ के राजाओं व राजसिंह की उपलब्धियों का वर्णन |
अजमेर अभिलेख (1200 ई.) | राजस्थान में फारसी का सबसे पुराना अभिलेख | अढ़ाई दिन के झोपड़े की दीवार पर (अजमेर) इसमें मस्जिद निर्माण करने वाले व्यक्तियों के नाम हैं। |
धाई बी.पीर की दरगाह का लेख (1325 ई.) | (फारसी अभिलेख) | चित्तौडगढ़ इसमें चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद अंकित है। |
आहड़ ताम्रपत्र (दान-पत्र) 1206 ई. | आहड़ (उदयपुर) | इसमें गुजरात के सोलंकी राजाओं की वंशावली का वर्णन है। |
प्रतापगढ़ (ताम्रपत्र) 1641 ई. | प्रतापगढ़ (चित्तौडगढ़) | इसमें ‘टंकी‘ नामक कर का उल्लेख है, जो ब्राह्मणों पर लगता था। |
(ii) सक्के: सिक्के लेन-देन, व्यापार, राजकीय आय व आर्थिक व्यवस्था के स्तम्भ माने जाते है। ये सिक्के सोने, चाँदी, ताम्बे तथा सीसे के होते थे। राजस्थान में रेढ़ (टोंक) में चाँदी के ‘पंचमार्क सिक्के‘ मिले है जो कि भारत के प्राचीनतम सिक्के है तथा ये मालवा जनपद के सिक्के है। जोधपुर के महाराजा गजसिंह के समय गधिया सिक्के चलते थे। इन पर गधे के मुख अंकित थे। मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान जोधपुर के शासकों ने विजयशाही सिक्के चलाये तथा जयपुर में कच्छवाहा शासकों ने झाड़शाही सिक्के चलवाये। ब्रिटिश शासन के बाद चाँदी के कलदार सिक्कों का प्रचलन हुआ। अकबर को चित्तौड़ विजय के उपरान्त मेवाड़ में ‘एलची सिक्के‘ चले। चांदोड़ी सिक्के मेवाड़ में तथा अखैशाही सिक्के जैसलमेर में और स्वरूपशाही सिक्के उदयपुर में प्रचलित थे।
(iii) स्मारक: विभिन्न प्रकार के भवन जैसे महल, मंदिर, दुर्ग, समाधियाँ, छतरियाँ, स्तूप, हवेलियाँ आदि भी इतिहास के निर्माण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
(iv) मृण मूर्तियां, बर्तन, औजार: उत्खनन से मिट्टी की अनेक मूर्तियां, बर्तन तथा पत्थर, ताम्बे व लौहे के औजार प्राप्त हुये हैं जो कि इतिहास निर्माण के महत्वपूर्ण स्रोत है।
- पुरालेखीय स्रोत: लिखित दस्तावेज़ पुरालेख कहलाते हैं। इनमें बहियाँ, पट्टे, परवाने, फरमान, खरीता, रूक्के आदि सम्मिलित है। यह सब रिकॉर्ड राज्य के पुरालेख संग्रहालयों जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर व बीकानेर में सुरक्षित है। राजस्थान राज्य अभिलेखागार का मुख्यालय बीकानेर में स्थित है। 1955 में इसकी स्थापना जयपुर में हुई परन्तु 1960 में ये बीकानेर स्थानान्तरित हो गया। 16वीं शताब्दी में राजस्थान के शासकों में इस तरह का रिकॉर्ड रखा जाता था।
बहियाँ:
(i) जिन बहियोें में राजा के दैनिक कार्यों का उल्लेख होता था, उन्हें हकीक़त बही कहा जाता था।
(ii) जिन बहियों में राजा के शासकीय आदेशों की नकल होती थी, उन्हें हुक़ूमत बही कहा जाता था।
(iii) जिन बहियों में राजा को प्राप्त होने वाले महत्वपूर्ण पत्रों की नकल होती थी, उन्हें खरीता बही कहा जाता था।
(iv) शाही परिवार के विवाह सम्बन्धित आलेख विवाह बही में किये जाते थे।
(v) राजकीय भवनों, महलों पर होने वाले खर्च का लेखा-जोखा कठमाना बही में किया जाता था।
(vi) भूमि में रिकार्ड सम्बन्धी बही अडसट्ठा बही कहलाती थी।
खरीता: जो पत्र एक शासक द्वारा दूसरे शासक को भेजे जाते थे।
परवाना: जो पत्र एक शासक द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को भेजे जाते थे।
अखबारात: मुगल दरबार द्वारा प्रकाशित दैनिक समाचारों का संग्रह।
फरमान, रूक्के: ये मुगल सम्राट द्वारा शाही वंश के लोगों या विदेशी शासकों के नाम भेजे जाते थे।
निशान: शहजादों व बैगमों द्वारा लिखे पत्र थे।
- साहित्यिक सामग्री: इसके अंतर्गत संस्कृत, अपभ्रश, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, राजस्थानी भाषाओं में लिखे ग्रंथ आते हैं।
राजस्थान के विभिन्न अंचलों के प्राचीन नाम
प्राचीन नाम | अँचल | राजधानी | |
1 | यौद्धेय प्रदेश | गंगा नगर के आसपास के क्षेत्र | |
2 | जाँगल प्रदेश | बीकानेर व जोधपुर जिले | अहिच्छत्र पुर |
3 | सपाद लक्ष (सांभर) | जांगल प्रदेश का पूर्वी भाग | |
4. | मरू(मारवाड़) | जोधपुर | मंडोर |
5. | गुजर्रत्रा | जोधपुर का दक्षिण व पाली का समीपवर्ती भाग | |
6 | मांड (वल्ल व दुग्गल) | जैसलमेर, बाड़मेर का क्षेत्र | जैसलमेर |
7 | मेदपाट (मेवाड़) | उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौडगढ़, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा व डूंगरपुर क्षेत्र | चित्तौडगढ़ |
8 | शिवि | उदयपुर का क्षेत्र | मध्यमिका |
9 | बागड़ (व्याग्रघाट) | डूंगरपुर व बांसवाड़ा का क्षेत्र | |
10 | चंद्रवर्ती (अर्बुद प्रदेश) | सिरोही व आबू के आसपास का क्षेत्र | |
11 | ढूंढाड़ | जयपुर के आसपास का क्षेत्र | |
12 | हाड़ौती (हेय-हेय प्रदेश) | कोटा, बूँदी, बांरा व झालावाड़ का क्षेत्र | बूंदी |
13 | मालवा प्रदेश | झालावाड़ | |
14 | मत्स्य प्रदेश | पश्चिमी अलवर, जयपुर व भरतपुर का कुछ भाग | बैराठ |
15 | शूरसेन प्रदेश | पूर्वी अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली | मथुरा |
16 | कुरू प्रदेश | अलवर का उत्तरी भाग | |
17 | मेवात | अलवर | |
18 | मेरवाड़ा | अजमेर के आसपास का क्षेत्र | |
19 | श्रीमाल/भीनमाल/सुवर्ण गिरि | जालौर | |
20 | शेखावाटी | चुरू, सीकर व झुंझुनू | |
21 | भोमट डूंगरपुर | पूर्वी सिरोही व उदयपुर | |
22 | डांगक्षेत्र | धौलपुर, करौली व सवाई माधोपुर क्षेत्र |
नोट:
(i) अलवर ऐसी जगह है जो कि मत्स्य, शूरसेन व कुरू प्रदेश में बँटा था।
(ii) बीकानेर के राजा जांगलधर बादशाह कहलाते थे। जांगल प्रदेश की राजधानी अहिच्छत्रपुर थी।
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
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- राज्य के दक्षिणी पूर्वी तथा पूर्वी भागों से प्राप्त पुरावशेषों से यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 1 लाख वर्ष पूर्व (पूर्व पाषाण काल) मानव पत्थरों से बेडोल औजारों का प्रयोग करता था। इस समय मानव राजस्थान में बनास, चम्बल, गम्भीरी, बेड़च और लूनी नदियों के किनारे निवास करता था।
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- मध्य पाषाण काल (50 हजार वर्ष पूव) में मानव आयताकार व गोल औजारों का प्रयोग करने लगा।
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- राजस्थान में मानव सभ्यता की आधार शिला उत्तर पाषाण काल (10 हजार वर्ष पूव) में रखी गई। इस काल में पहिये का आविष्कार हुआ, मानव ने खेती आरम्भ की और कपास की खेती कर कपड़ा बुनने का कार्य आरम्भ किया।
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- ऋग्वेद के अनुसार श्रीगंगानगर जिले की पूर्वी सीमा पर दृषद्वती नदी तथा पश्चिमी सीमा पर सरस्वती नदी (घग्घर) बहती थी। उस समय इस भाग को ब्रह्मवर्त कहते थे।
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- पहले थार के मरूस्थल की जगह टेथिस महासागर था। इस महासागर में दृषद्वती, सरस्वती व आहड़ नदियाँ आकर मिलती थी।
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- कालीबंगा (हनुमानगढ़) व आहड़ (उदयपुर) के उत्खनन से यह प्रमाणित होता है कि ये दोनों सभ्यताएँ सिन्धु घाटी सभ्यता (हडप्पा व मोहनजोदाड़ो) के समकालीन है।
- राजस्थान की प्राचीन सभ्यता की खोज सर्वप्रथम आरेल स्टाईल ने की थी।
1. कालीबंगा सभ्यता:
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- इस सभ्यता के अवशेष अनूपगढ़ के पास व कालीबंगा में मिले थे। इस स्थल की खोज सर्वप्रथम अमलानंद घोष ने 1952 ई. में की। 1961 से 1969 तक बी.वी.लाल और बी.के.थापर ने यहाँ उत्खनन कार्य किया। कालीबंगा हनुमानगढ़ जिले की प्राचीन सरस्वती (घग्घर) नदी के किनारे स्थित है। कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ ‘काली चूड़ियाँ‘ है। कालीबंगा सभ्यता राजस्थान की सबसे प्राचीन सभ्यता हैं।
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- कालीबंगा में दो टीलों का उत्खनन किया गया। पश्चिमी टीला छोटा (गढ़ी क्षेत्र), जिससे पूर्व हड़प्पाकालीन सभ्यता (2400 ई.पू.) के अवशेष प्राप्त हुये हैं तथा दूसरा पूर्वी टीला (नगर क्षेत्र), जिससे हड़प्पाकालीन सभ्यता (2300 ई.पू.) के अवशेष मिले हैं। दोनों टीले एक सुरक्षा प्राचीर से घिरे हैं। इसलिये इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है। राजस्थान सरकार ने कालीबंगा से प्राप्त पुरावशेषो के संरक्षण हेतु यहाँ एक संग्रहालय की स्थापना की है। पाकिस्तान में कोटदीजी नामक स्थान से प्राप्त अवशेष कालीबंगा के अवशेषों से मिलते-जुलते हैं।
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- कालीबंगा में उत्खनन से यह सिद्ध हुआ है कि यह एक नगरीय प्रधान सभ्यता थी। यहाँ नगर नियोजन सुनियोजित नक्शे के आधार पर किया गया था। सड़के एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। मकान कच्ची ईंटों (30 20 10 से.मी.) के बनाए जाते थे। ईटों को धूप में पकाया जाता था। घरों से गंदे पानी के निकास के लिये पक्की ईंटों की नालियाँ एवं शोषण पात्रों का प्रयोग होता था। कुएँ के निर्माण के लिये पक्की ईंटों का प्रयोग होता था। नालियाँ ढ़की हुई थी।
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- यहाँ की एक बस्ती एक सुरक्षात्मक दीवार (परकोटे) से सुरक्षित की गई थी। यह दीवार 4.10 मीटर चौड़ी थी, जिसका निर्माण कच्ची ईंटों (30 20 10 से.मी.) से किया गया था। यह दीवार उत्तर से दक्षिण की और 250 मीटर लंबी तथा पूर्व से पश्चिम की ओर 180 मीटर चौड़ी थी।
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- पश्चिम छोटे टीले से यहाँ दोहरे जुते हुये खेत के अवशेष मिले हैं। इस खेत में एक साथ दो फसलें जौं एवं गेहूँ उगाई जाती थी।
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- यहाँ उत्खन्न से लाल काले मृदभा.ड, हवन कुण्ड, चूड़ियाँ, तन्दूर के आकार के चुल्हे तथा छत पर जाने के लिये सीढ़ियां मिली हैं। इसके अलावा खड़िया मिट्टी से बनी मुद्राएँ भी मिली है। यहाँ के भवनों की छतें लकड़ी की तिलियों व मिट्टी से बनी होती थी।
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- पश्चिमी टीलें की खुदाई से एक बहुत बड़ा मिट्टी का चबूतरा मिला है।
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- यहाँ के निवासी मृतक के शव को गाड़ते थे तथा मृतक के पास बर्तन व गहने रखते थे।
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- यहाँ से प्राप्त मुहरों पर सैंधव लिपि (चित्र लिपि) मिली है। जो अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि के अक्षर एक-दूसरे के ऊपर लिखे हुये प्रतीत होते हैं तथा ये लिपि सम्भवतः दाएँ से बाएँ लिखी जाती होगी। इस सभ्यता से स्नानागार के अवशेष नहीं मिले हैं।
- कालीबंगा से प्राप्त एक मुहर पर व्याघ्र (बाघ) का चित्र अंकित हैं।
2. आहड़ सभ्यता: यह सभ्यता उदयपुर जिले में आहड़ (बेड़च) नदी घाटी में विद्यमान थी। यह सभ्यता दो स्थलों आहड़ (उदयपुर) व गिलुण्ड (राजसमंद) में विस्तृत थी। आहड़ पर्वत मालाओं व एक नदी से घिरी थी, जबकि गिलुंड नदी-घाटी व मैदान मे विस्तृत थी। गिलुंड के एक और बनास नदी थी। आहड़ संस्कृति ग्रामीण थी।
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- आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती नगरी था क्योंकि यहाँ प्राचीन काल में ताम्बे के औजार बनाने का प्रमुख केन्द्र था। आहड़ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय धातुकर्म था।
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- स्थानीय लोग आहड़ को धूलकोट, आघाटपुर या आघात दुर्ग भी कहते थे।
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- उत्खनन: इस स्थल का उत्खनन सर्वप्रथम 1953 ई. में अक्षय कीर्ति व्यास के नेतृत्व में हुआ। 1954-56 में रतन चंद्र अग्रवाल ने 1961-62 में एच. डी. सांकलिया के नेतृत्व में यहाँ उत्खनन हुआ।
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- यहाँ से लाल व काले मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) प्राप्त हुये हैं, जिन्हें उल्टी तपाई शैली से पकाया जाता था।
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- यहाँ के लोग धूप में पकाई ईंटों व पत्थरों से मकान बनाते थे। आहड़ से कच्ची ईंटों, गारे व पत्थर से बने मकान मिले हैं, जबकि गिलुंड से पक्की ईंटों की दीवारे मिली हैं।
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- यहाँ के लोग कृषि से परिचित थे तथा अन्न पकाकर खाते थे। इनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन पशुपालन था।
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- यहाँ के लोग अनाज का भंडारण बड़े-बड़े मृदभांड में करते थे। जिन्हें यहाँ ‘गोरे‘ व ‘कोठ‘ कहा जाता था।
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- यहाँ खुदाई से ताम्बे की छह मुद्राएँ व तीन मोहरें प्राप्त हुई हैं। एक मुद्रा पर त्रिशूल उत्कीर्ण है।
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- आहड़ में एक घर में एक साथ छह चूल्हे प्राप्त हुये हैं। इनमें से एक पर मानव हथेली की छाप भी प्राप्त हुई है।
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- यहाँ मातृदेवी व बैल की मृणमूर्ति और दीपक प्राप्त हुये हैं।
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- यहाँ के लोग मृतकों को आभूषणों के साथ दफनाते थे।
- यहाँ का प्रमुख उद्योग ताम्बा गलाना एवं इसके उपकरण बनाना था।
3.गणेश्वर सभ्यता (सीकर): गणेश्वर का टीला, तहसील – नीम का थाना, जिला सीकर में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है। यह सभ्यता 2800 ई. पूर्व विकसित हुई तथा ताम्रयुगीन संस्कृतियों में सबसे पुरानी है। इसलिये इसे ताम्रयुगीन संस्कृतियों की जननी कहा जाता है।
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- इस स्थल का उत्खनन 1977 ई. में आर. सी. अग्रवाल और विजय कुमार ने किया।
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- यह सभ्यता सीकर, झुंझुनू, जयपुर तथा भरतपुर तक फैली हुई है।
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- विश्व प्रसिद्ध खेतड़ी (झुंझुनू) यहाँ स्थित है।
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- यहाँ मकान पत्थरों के बनाए जाते थे तथा ईंटों का बिलकुल भी प्रयोग नहीं होता था।
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- लोग माँसाहारी थे तथा मछली पकड़ने के शौकीन थे। यहाँ मछली पकड़ने का काँटा मिला है।
- गणेश्वर सभी हड़प्पा स्थलों को ताम्र धातु की आपूर्ति करता था।
4. बैराठ सभ्यता (जयपुर): बैराठ (विराट नगर) प्राचीन समय में मत्स्य जनपद की राजधानी थी तथा मौर्यकाल में बौद्धधर्म का प्रमुख केन्द्र था। चीनी यात्री ‘फाह्यान‘ बैराठ में ही आया था।
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- बैराठ में बीजक की पहाड़ी, भीम डूंगरी तथा महादेव डूंगरी आदि स्थानों पर प्रथम बार उत्खनन 1937 में दयाराम साहनी ने किया था तथा खुदाई से मौर्यकालीन व उससे पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
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- पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान एक वर्ष बैराठ में रहे थे।
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- बैराठ से पाषाणयुगीन व मौर्ययुगीन संस्कृतियों के अवशेष प्राप्त हुये हैं।
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- यहाँ पाषाणयुगीन हथियारों का एक बहुत बड़ा कारखाना था, जहाँ से कुल्हाड़ियाँ व औजार मिले हैं।
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- 1837 ई. में कैप्टन बर्ट ने बीजक डूंगरी पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण सम्राट अशोक का शिलालेख खोजा था। स्थानीय लोग इस लेख को ‘बीजक‘ कहकर पुकारते थे। इसलिये इस पहाड़ी का नामकरण भी ‘बीजक पहाड़ी‘ हो गया।
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- बीजक पहाड़ी पर सम्राट अशोक द्वारा निर्मित गोल बौद्ध मंदिर व बौद्ध मठ के अवशेष प्राप्त हुये हैं। यहाँ से सम्राट अशोक का भाब्रू शिलालेख भी प्राप्त हुआ है।
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- उत्खनन से प्राप्त मृतभा.ड पर त्रिरत्न व स्वास्तिक के चिन्ह मिले हैं।
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- यहाँ शैलखंडों पर शंख लिपि के प्रमाण मिले हैं। शंख लिपि में प्रयुक्त अक्षर शंख की आकृति से मेल खाते हैं।
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- विराट नगर में अकबर ने एक टकसाल खोली थी। जिसमें अकबर जहाँगीर व शाहजहाँ के काल में ताम्बे के सिक्के ढाले जाते थे।
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- ‘ह्वेनसांग‘ ने अपनी वृतांत यात्रा ‘सी यू की‘ में लिखा कि मिहिर कुल ने बौद्ध विहारों का विध्वंस किया था।
- नोट: राजस्थान में महाभारत कालीन पुरास्थल बैराठ (जयपुर) व नोह (भरतपुर) थे।
5. बागौर सभ्यता (भीलवाड़ा):
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- यह सभ्यता भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी के किनारे स्थित थी।
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- इसका उत्खनन 1967 में विरेन्द्रनाथ मिश्र ने किया।
- यहाँ से मध्यपाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। यहाँ मकान पत्थरों से बने थे तथा लोग बस्ती बनाकर रहते थे।
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- सुनारी (झुंझुनू): यहाँ से लौहयुगीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुये है। यहाँ अयस्क से लोहा बनाने की प्राचीनतम भट्टियाँ मिली है।
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- जोधपुरा (जयपुर): यहाँ से मौर्यकाल व कुषाणकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
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- नगरी (चित्तौडगढ़): नगरी (मध्यमिका) से शिवि जनपद के सिक्के प्राप्त हुये हैं
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- रैढ (टोंक): यहाँ से लौह सामग्री के विशाल भ.डार मिले हैं। इसे प्राचीन भारत का टाटा नगर भी कहा जाता है। यहाँ 2007 में एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है। इनके अलावा मालव जनपद की मुद्रा व भारत के सबसे पुराने पंचमार्क सिक्के मिले हैं।
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- मल्लाह (भरतपुर): यहाँ से एक हारफून नामक हथियार मिला है, जो कि बड़े जानवरों को मारने के काम आता था।
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- सोंथी (बीकानेर): इसे कालीबंगा प्रथम के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ से पूर्व हड़प्पाकालीन अवशेष मिले हैं। इसका उत्खनन सन् 1953 में अमलानंद घोष ने किया।
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- नलियासर (जयपुर): सांभर झील के समीप स्थित इस स्थल से चौहान युग से पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं व प्रतिहार कालीन मंदिर के अवशेष प्राप्त हुये हैं।
- तिलवाड़ा (बाड़मेर): यह स्थल बाडमेर जिले में लूनी नदी के किनारे स्थित था। इस स्थल से 500 ई.पू. से 200 ई. तक के अवशेष मिले हैं।
काल सभ्यता स्थल
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- आरम्भिक पाषाण कालीन स्थल (1.5 लाख वर्ष पूर्व): बैराठ (जयपुर), सीकर।
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- मध्य पाषाण कालीन स्थल (50 हजार से 10 हजार वर्ष पूर्व): बिलाड़ा (जोधपुर), रैढ़ (टोंक)
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- उत्तर पाषाण कालीन स्थल (10 हजार से 5 हजार वर्ष पूर्व): तिलवाड़ा (बाड़मेर), बागौर (भीलवाड़ा)।
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- महाभारत कालीन सभ्यता स्थल: नेह (भरतपुर), बैराठ (जयपुर)।
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- ईसा से आरम्भिक शताब्दियों तक के अवशेष स्थल: नगरी (चित्तौडगढ़), भीनमाल (जालौर), बैराठ व सांभर (जयपुर)।
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- महाभारत व रामायण काल में राजस्थान में मरू, जांगल व मत्स्य प्रदेश विद्यमान थे।
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- पांडव अपने वन प्रवास के दौरान बैराठ (विराट नगर), पुष्कर व आबू में रूके थे। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक वर्ष मत्स्य प्रदेश में बिताया था।
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- जनपद युग: आर्य धीरे-धीरे पंजाब से दक्षिण भारत की ओर आ गए व कबीलों में रहने लगे। इन कबीलों को जनपद कहा जाता था। 300 ई.पू. से 20 ई.पू. तक भारत में कुल 16 जनपद स्थापित हुये जिनमें से राजस्थान में प्रमुख जनपद निम्न थे:
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- मत्स्य: इस जनपद में जयपुर, अलवर, धौलपुर, भरतपुर व करौली के कुछ भाग सम्मिलित थे। इस जनपद की राजधानी बैराठ थी।
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- मालव: ये सिकन्दर के आक्रमण से पीड़ित होकर राजस्थान में टोंक व अजमेर में आकर बस गये। इन्होंने नगर (टोंक) को राजधानी बनाया। यह जनपद सर्वाधिक शक्तिशाली थी।
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- शिवि: ये सिकन्दर के आक्रमण से डरकर उदयपुर आ गये। इनकी राजधानी मध्यमिका (चित्तौड़) थी।
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- अर्जुनायन: ये भी सिकन्दर के आक्रमण से डरकर भरतपुर व अलवर में आकर बस गये।
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- यौद्धेय: ये गंगानगर-हनुमानगढ़ (उत्तरी राजस्थान) में रहते थे। ये कभी युद्ध नहीं हारे।
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- राजस्थान में मौर्य साम्राज्य के प्रमाण बैराठ में सम्राट अशोक के दो शिलालेखो (250 ई.पू.) से मिलते हैं। अशोक के त्रिरत्न अभिलेख से यहा स्पष्ट होता है कि राजस्थान के जनपदों पर चंद्रगुप्त मौर्य का राज था।
- मौर्यकाल में राजस्थान, सिंध, गुजरात और कोंकण मिलकर अपर जनपद (पश्चिम जनपद) कहलाते थे।
गुप्तकाल:
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- समुद्रगुप्त ने 350 ई. में क्षत्रप वंश के राजा रूद्रदामन को हराकर दक्षिणी राजस्थान पर अधिकार कर लिया, परन्तु चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अंतिम क्षत्रप राजा रूद्र को हराकर संपूर्ण राजस्थान पर अपना अधिकार कर लिया।
- राजस्थान के विभिन्न भागों पर गुप्त राजाओं का आधिपत्य 275 ई. से 499 ई. तक रहा।
हूण वंश:
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- इस वंश के राजा तोरमण हूण ने 503 ई. में गुप्त राजाओं को हराकर राजस्थान पर अपना अधिपत्य कर लिया।
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- गुप्त सम्राट बालादित्य ने मालवा के शासक यशोवर्मा की सहायता से 552 ई. में तोरमाण हुण के पुत्र मिहिर कुल को हराकर वापिस राजस्थान पर अधिकार जमा लिया।
- मिहिर कुल को भारत का अटिल्ला कहा जाता था।
वर्धन काल:
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- सातवीं शताब्दी के शुरू में हूणों के पतन के बाद गुर्जरों ने राजस्थान पर अधिकार कर लिया। इन्होंने भीनमाल (जालौर) को अपनी राजधानी बनाया।
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- प्रभाकर वर्धन ने गुर्जरों का राज समाप्त कर राजस्थान में वर्धन राज्य स्थापित किया।
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- प्रभाकर वर्धन के पुत्र हर्षवर्धन ने गुर्जरों से भीनमाल छीन लिया और मालवा को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया। हर्षवर्धन ने राजस्थान के अधिकांश भाग पर 643 ई. तक राज किया।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के समय भीनमाल (जालौर) आया था।
राजस्थान का मध्यकालीन इतिहास (राजपूत काल)
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- वर्धन साम्राज्य के पतन के बाद भारत पुनः छोटे-छोटे राज्यों मे विभक्त हो गया। वर्धन वंश के पतन के बाद भारतीय इतिहास की प्रमुख घटना राजपूतों का उत्थान थी।
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- 7वीं से 12वीं शताब्दी का समय राजपूत काल कहलाता है। राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में निम्न मत प्रचलित है।
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- चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासों के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति गुरू वशिष्ठ के अग्निकु.ड से हुई है। इस अग्निकु.ड में प्रतिहार, परमार, चौहान और सोलंकी (चालुक्य) राजपूत उत्पन्न हुये है। ये अग्निकुंड आबू पर्वत में है।
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- गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार राजपूत वैदिक आर्यों की संतान हैं।
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- विदेशी इतिहास कारों ने राजपूतों को हूण व कुषाणों की संतान माना है, जबकि कर्नल जेम्स टॉड ने इन्हें सीथियन माना है।
- आधुनिक सिद्धांत के अनुसार राजपूतांे की उत्पत्ति वैदिक काल के क्षत्रियों से हुई है। अतः राजपूत विशुद्ध भारतीय है। राजस्थान के राजपूत वंश निम्न है:
गुर्जर प्रतिहार
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- गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन मुख्यतः 8वीं से 10वीं सदी तक रहा है। आरम्भ में इनकी शक्ति का प्रमुख केन्द्र मारवाड़ था। उस समय यह क्षेत्र गुर्जरात्रा (गुर्जर प्रदेश) कहलाता है। गुर्जर प्रदेश के स्वामी होने के कारण प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहा जाने लगा। उस समय की मंदिर स्थापत्य शैली को गुर्जर प्रतिहार शैली कहा जाने लगा। गुर्जर प्रतिहारों ने 6वीं से 11वीं शताब्दी तक अरबों के आक्रमणों को रोके रखा।
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- गुर्जर प्रतिहारों का अधिपत्य राजस्थान के अलावा कन्नौज व बनारस तक भी था। कन्नौज 8वीं से 9वीं सदी तक व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। इसलिये कन्नौज पर अधिकार हेतु गुर्जर-प्रतिहारों, बंगाल के पालवंश और दक्षिण के राष्ट्रकूटों के मध्य 100 वर्षों तक त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ। अंत में गुर्जर प्रतिहार वंश के नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. में कन्नौज के शासक चक्रायुद्ध को हराकर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया व 100 वर्षीय युद्ध को समाप्त किया।
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- राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की दो शाखाओं का अस्तित्व था। (1) मंडोर शाखा (2) भीनमाल (जालौर) शाखा।
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- मुहणोत नैणसी के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाएँ थी। इनमें से मंडोर शाखा सबसे प्राचीन थी। राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की प्रारंभिक राजधानी मंडोर (जोधपुर) थी। मंडोर के प्रतिहार क्षेत्रीय थे।
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- नागभट्ट प्रथम: प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने 8वीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर भीनमाल (जालौर) को अपनी राजधानी बनाया। बाद में उज्जैन उनकी शक्ति का प्रमुख केन्द्र रहा।
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- नागभट्ट द्वितीय (815-833 ई.): इसने 816 ई. में कन्नौज के शासक को हटाकर 100 वर्षीय युद्ध को समाप्त किया और कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। इस समय प्रतिहार उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली वंश हो गया। नागभट्ट द्वितीय ने अरब आक्रमणों को कई समय तक रोके रखा।
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- मिहिर भोज (836-885 ई.): नागभट्ट द्वितीय का पौत्र मिहिर भोज प्रतिहार वंश का सर्वाधिक कुशल प्रशासक था। इसे आदिवराह की उपाधि मिली थी। इसके समय प्रतिहार सबसे शक्तिशाली थे। मिहिर भोज के दक्षिण विजयी अभियानों को राष्ट्र कूट शासक ध्रुव ने रोक दिया।
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- 1018 ई. में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और प्रतिहारांे को मारवाड़ से निकाल दिया। इस वंश का अंतिम शासक यशपात था।
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- किराडू (बाड़मेर) का सोमेश्वर मंदिर गुर्जर प्रतिहार शैली से बना है।
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- भोज प्रथम के शासन काल में ग्वालियर प्रशस्ति की प्रशंसा की गई।
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- ओसियां के महावीर स्वामी जैन मंदिर का निर्माण वत्सराज प्रतिहार के शासन काल में हुआ।
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- महामारू शैली का प्रचलन गुर्जर प्रतिहारों के काल में ही हुआ।
- प्रारंभिक प्रतिहार शासकों की जानकारी उधोतन सूरी द्वारा रचित ‘कुवलयमाला‘ से मिलती है।
राजस्थान में प्रचलित प्रसिद्ध सिक्के | |
सिक्के का नाम | स्थान/शासक |
झाड़शाही, मोहम्मद शाही | जयपुर |
विजयशाही, भीमशाही, गधिया व फदिया | जोधपुर |
अखैशाही | जैसलमेर |
चांदोड़ी, स्वरूपशाही,भीलाड़ी | मेवाड़ |
उदयशाही | डूंगरपुर |
मदनशाही | झालावाड़ |
आलमशाही | प्रतापगढ़ |
गजशाही | बीकानेर |
तमंचाशाही | धौलपुर |
गुमानशाही | कोटा |
कलदार | ब्रिटिशकाल में |
अखयशाही | अलवर |
राजस्थान के प्रमुख राजवंश तथा उनके राज्य | |
राजवंश | राज्य |
चौहान वंश | सांभर, अजमेर, रणथम्भौर, नाडोल, जालौर, सिरोही, हाड़ौती |
गुहिल वंश | मेवाड़ (उदयपुर, चित्तौड, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, शाहपुरा, राजसमंद) |
राठौड़ वंश | जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़ |
कच्छवाहा | ढूंढाड़ (जयपुर, आमेर), अलवर |
यादव | करौली, जैसलमेर |
परमार | आबू, मालवा, जालौर |
भाटी | जैसलमेर |
झाला | झालावाड़ |
जाट वंश | भरतपुर, धौलपुर |
मुस्लिम नवाब | टोंक |
गुर्जर-प्रतिहार | गुर्जरात्रा, मारवाड़, भीनमाल |
राजस्थान के विभिन्न राज्यों की स्थापना | |||
राज्य | वंश | संस्थापक | वर्ष |
शाकम्भरी (अजमेर) | चौहान | वासुदेव | 551 ई. |
रणथम्भौर | चौहान | गोविन्दराज | 1194 ई. |
जालौर | चौहान | कीर्तिपाल | 1181 ई. |
नाडोल | चौहान | लक्ष्मण | 983 ई. |
बूँदी | हाड़ा चौहान | देवीसिंह | 1240 ई. |
कोटा | हाड़ा | चौहान माधोसिंह | 1625 ई. |
मेवाड़ | गुहिल | गुहिल | 566 ई. |
मेवाड़ | गुहिल | बप्पा रावल | 728 ई. |
बागड़ | गुहिल | समर सिंह | 1177 ई. |
डूंगरपुर | गुहिल | पृथ्वीराज | 1527 ई. |
बाँसवाड़ा | गुहिल | जगमाल सिंह | 1527 ई. |
प्रतापगढ़ | गुहिल | प्रताप सिंह | 1699 ई. |
शाहपुरा | गुहिल | सुजान सिंह | 1631 ई. |
मारवाड़ | राठौड़ | राव सीहा | 1256 ई. |
बीकानेर | राठौड़ | राव बीका | 1465 ई. |
किशनगढ़ | राठौड़ | किशन सिंह | 1609 ई. |
आमेर | कच्छवाहा | धोलाराय | 967 ई |
ढूंढाड़ (जयपुर) | कच्छवाहा | दुल्हेराय | 1137 ई. |
अलवर | कच्छवाहा | प्रताप सिंह | 1771 ई. |
जैसलमेर | भाटी | राव जैसल | 1155 ई. |
करौली | यादव | विजय पाल | 1348 ई. |
भरतपुर | जाट | चूड़ामण | 1720 ई. |
टोंक | पिण्डारी | अमीर खाँ | 1817 ई. |
महत्वपूर्ण स्थानों के प्राचीन नाम | |||
वर्तमान नाम | प्राचीन नाम | वर्तमान नाम | प्राचीन नाम |
अजमेर | अजयमेरू | जोधपुर | मरूभूमि |
धौलपुर | कोठी | झालरापाटन | ब्रजनगर |
करौली | गोपालपाल (कल्याणपुर) | जैसलमेर | मांड |
श्रीगंगानगर | रामनगर | झालावाड़ | खींचीवाड़ा |
चित्तौडगढ़ | चित्रकूट | महावीर जी | चांदन |
बीकानेर | जांगल | बूँदी | हाड़ौती |
मण्डोर | माण्डवपुर | रामदेवरा | रूणैचा |
हनुमानगढ़ | भटनेर | नागौर | अहिच्छत्रपुर |
बैराठ (जयपुर) | विराटनगर | चित्तौडगढ़ | खिज्राबाद |
सांचौर (जालौर) | सत्यपुरी | भीनमाल (जालौर) | भिल्लमाल |
जालौर | जाबालीपुर (जलालाबाद) | अनूपगढ़ | चुघेर |
सांभर (जयपुर) | सपादलक्ष | तारागढ़ | गढबीठली |
बयाना (भरतपुर) | श्रीपंथ | जयपुर | ढूंढाड़ |
अलवर | आलोर (साल्वपुर) | जयसमंद | ढेबर |
प्रतापगढ़ | कांठल | ओसियां (जोधपुर) | उकेर |